जापान की राजधानी टोक्यो में चल रहे ओलंपिक खेलों में चीन के दो खिलाड़ियों को स्वर्ण पदक जीतने के बाद माओ का बैज पहने हुए देखा गया, जिसके बाद विवाद शुरू हो गया है। माओ से-तुंग, जिसे माओ जेदोंग भी कहा जाता है, नरसंहार के मामले में वो जर्मनी के हिटलर और रूस के स्टालिन से भी चार कदम आगे था। माओ को 5-8 करोड़ो मौतें के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। उसे दुनिया का सबसे बड़ा नरसंहारक भी कहा जाता है।
चीनी-ऑस्ट्रेलियाई एक्टिविस्ट बडीकॉओ ने टोक्यो ओलंपिक से आईं इन तस्वीरों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि चीन में खूँखार ‘कल्चरल रेवोलुशन’ के लिए जिम्मेदार माओ का बैज पहनना सही नहीं है। उन्होंने कहा कि ये बैच चीन के उसी खूनी अभियान का प्रतीक है, जिसने करोड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। दुर्भाग्य से उनमें बडीकॉओ के दादा-दादी भी शामिल थे। उन्होंने माओ को तानाशाह बताते हुए लिखा कि सत्ता के नशे में चूर होकर उसने अपने पागलपन भरे ‘सोशल इंजीनियरिंग’ के लिए ये सब किया था।
चीन की ट्रैक साइक्लिस्ट जोंग टीआंशी और बाओ शांजू नामक महिला खिलाड़ियों ने स्वर्ण पदक लेते समय चीन का तानाशाह माओ का बैज पहन रखा था। ओलंपिक खेलों का नियम है कि उसके माध्यम से किसी राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। लोग पूछ रहे हैं कि क्या दोनों खिलाड़ियों की ये हरकत इस नियम का उल्लंघन नहीं? ‘राजनीतिक प्रोपेगंडा’ के लिए उनका मेडल वापस लेने की माँग की जा रही है।
Why wear Mao Badge in #Olympics is not ok?
— 巴丢草 Badiucao (@badiucao) August 3, 2021
Its a symbol for China‘s deadly cultural revolution.
And Mao is a dictator who killls tens of millions people including my grandparents with his crazy social engineering and political persecution for personal power obsession. https://t.co/m7icLKKkVC
बता दें कि 1958-62 में माओ ने सबसे ज्यादा कत्लेआम करवाया था। लोगों से उनके घर और उनकी संपत्तियाँ छीन ली गई थीं। लोगों को भोजन तक सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी से ही मिलता था और इसी की एवज में लोगों से मनचाहे काम कराए जाते थे। सरकार के काम में किसानों और मजदूरों का उपयोग किया जाता था, जिन्हें इसकी एवज में कोई मेहनताना तक नहीं मिलता था। 30 लाख लोग ऐसे थे, जिन्हें कड़ी प्रताड़ना देकर उनकी हत्या की गई थी।
इन 4 वर्षों में ही माओ के कारण 4.5 करोड़ लोगों की मौत हुई थी। इनमें अधिकतर को भूखे रख कर मारा गया था। माओ के इस अभियान का नाम था ‘द ग्रेट लीप फॉरवर्ड’, जिसके तहत इतने लोग मारे गए थे। हालाँकि, इतिहास में इसकी उतनी चर्चा नहीं होती जितनी हिटलर और स्टालिन की। जब एक क्षेत्र में माओ के कुछ विरोधी सक्रिय हो गए थे तो सिर्फ उस एक इलाके में मात्र 3 सप्ताह में 13,000 सरकार विरोधियों को मार डाला गया था।
लेकिन, इस पर ज्यादा बात नहीं हुई क्योंकि चीन में इस मुद्दे पर किताब लिखने की किसी की हिम्मत नहीं है और इसके लिए रिसर्च करना भी मुश्किल है। माओ ही ‘पीपल्स रिपलब्लिक ऑफ चाइना’ का संस्थापक था। माओ और उसके साथी कम्युनिस्ट नेताओं ने चीन के समाज को ‘पुनर्गठित’ करने की बात कहते हुए तमाम क्रूरता की थी। 1967 में जब चीन के कई शहरों में उसकी नीतियों के कारण अराजकता फैली थी तो उसने अपनी ही जनता के साथ क्रूरता के लिए सेना लगा दी थी।