पिछले दिनों हॉन्ग कॉन्ग और अब ताइवान में हुए चुनाव में लोकतंत्र समर्थक उम्मीदवारों ने अभूतपूर्व जीत हासिल कर चीन को तगड़ा झटका दिया है। ताइवान और हॉन्ग कॉन्ग की जनता ने लोकतंत्र समर्थक उम्मीदवारों को जबरदस्त वोटों से विजयी दिलाकर साबित कर दिया कि वो लोकतंत्र के समर्थक हैं। ताइवान के मतदाताओं ने स्वशासित द्वीप ताइवान को अलग-थलग करने के चीन के अभियान को सिरे से नकारते हुए अपनी प्रथम महिला नेता और राष्ट्रपति साई इंग वेन को दूसरी बार चुनाव में विजयी बनाया है। ये नतीजे चीन समर्थक शासन के लिए काफी चुभने वाले साबित हुए हैं। हॉन्ग कॉन्ग के चुनाव नतीजों को कमतर बताने और उस पर अविश्वास जताने को लेकर चीन की सरकारी मीडिया ने कई खबरें भी प्रकाशित कीं।
वहीं ताइवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन ने रिकॉर्ड स्तर पर 80 लाख मतों के साथ विपक्षी कुओमिनटांग पार्टी के खान ग्वो यी को करारी शिकस्त देते हुए एक बार फिर से चीन को आगाह किया कि वह ताइवान द्वीप को बल के प्रयोग से हड़पने का ख्याल त्याग दे। उन्होंने कहा कि यह दुनिया जानती है कि ताइवान के लोगों को स्वतंत्र लोकतांत्रिक मूल्य और जीवन जीने की कला से कितना प्रेम है। साई इंग वेन को दूसरी बार शानदार तरीके से विजयी बनाकर यहाँ के मतदाताओं ने चीनी दखल, उसके अधिनायकवादी दृष्टिकोण और विस्तृत चाइना की अवधारणा को पूरी तरह से खारिज कर दिया है।
इसी तरह नवंबर में हॉन्ग कॉन्ग में जिला परिषद चुनाव में लोकतंत्र समर्थक उम्मीदवारों ने शानदार प्रदर्शन किया था। इन उम्मीदवारों ने विरोधियों पर अभूतपूर्व बढ़त बना कर साफ कर दिया था कि देश की जनता लोकतंत्र समर्थकों के साथ है। हॉन्ग कॉन्ग में लोकतंत्र समर्थकों ने कुल 452 सीटों में से 278 सीटें पर विजय हासिल करके नया इतिहास रच दिया। इनकी तुलना में चीन समर्थक उम्मीदवार केवल 42 सीटों पर ही जीत हासिल कर सके थे। ताइवान में साई इंग वेन की जीत पर हॉन्ग कॉन्ग के लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता जोशुआ वोंग ने भी खुशी जताई है। उन्होंने सोशल मीडिया पर ताइवान की जीत पर खुशी जाहिर करते हुए इसे ‘हॉन्ग कॉन्गवासियों के लिए अनमोल पल’ बताया।
बता दें कि ताइवान और हॉन्ग कॉन्ग दो ऐसे देश हैं, जिस पर चीन अपना कब्जा जताना चाहता है। चीन सन 1949 के गृह युद्ध के बाद से ही ताइवान पर अपना अधिकार जताता आ रहा है। साई ने आशा जताई कि बीजिंग अब यह समझ गया होगा कि प्रजातांत्रिक ताइवान को किसी डंडे के जोर पर कब्जाया नहीं जा सकता है। एक ओर जहाँ ताइवान खुद को स्वतंत्र और संप्रभु मानता है, वहीं चीन का मानना है कि ताइवान को किसी भी तरह चीन में शामिल होना चाहिए। चीन इसके लिए बल प्रयोग करने के लिए भी तैयार है।
चीन यह दावा करता आ रहा है कि वह बल प्रयोग से ताइवान को पुनर्गठित करने में सक्षम है। लेकिन अब उसे ये ख्याल छोड़ देना चाहिए। ताइवान और हॉन्ग कॉन्ग पर कब्जा करके चीन एक ग्रेटर चीन का सपना देख रहा था। मगर दोनों देशों की जनता ने लोकतंत्र समर्थक उम्मीदवारों को जीत दिलाकर चीन के अरमानों पर पानी फेर दिया है। यहाँ के मतदाताओं ने हॉन्ग कॉन्ग की तरह ही चीन के ‘एक देश दो सिस्टम’ की राजनीतिक व्यवस्था को खारिज कर दिया है।
ताइवान की अपनी चुनी हुई सरकार, संविधान और सेना है। इसके बावजूद चीन आज भी ताइवान को एक सार्वभौमिक सरकार के रूप में मान्यता देने से कतराता आया है, बल्कि ताइवान को मान्यता दिए जाने पर उस से संबंध तोड़ने की चेतावनी देता आ रहा है। चीन किसी भी उस देश के साथ राजनयिक संबंध नहीं रखता जो ताइवान को एक स्वतंत्र देश की मान्यता देता है। हालाँकि कई देशों के साथ ताइवान के व्यापारिक संबंध भी हैं।
असल में ताइवान के बदले सुरों में चीन को खुली बगावत की बू करीब दो महीने पहले आई। जब नवंबर में गोल्डन हॉर्स फिल्म समारोह में सम्मानित फिल्म निर्देशक फू यू ए ने अपने भाषण में ताइवान को स्वतंत्र देश माना। इससे वहाँ उपस्थित चीन समर्थकों ने हंगामा किया। तब राष्ट्रपति इंग विन ने हस्तक्षेप किया और साफ-साफ कहा कि ताइवान चीन का हिस्सा नहीं है। इसके बाद चीन के कान खड़े हो गए। तब से दोनों चीन देशों के बीच तनाव है।
हॉन्ग कॉन्ग में भी चीन विरोधी उम्मीदवारों की हार ने चीन के होश उड़ा दिए। मतदान के दिन लोगों की लंबी लंबी कतारों से ही पता चल गया था कि हॉन्ग कॉन्ग में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को लेकर काफी उत्साह है। दरअसल यह चुनाव इस बात की जाँच के लिए भी था कि आम लोग यहाँ चल रहे चीन विरोधी आंदोलन को कितना समर्थन देते हैं। अब इन परिणामों से इस आंदोलन पर भी मुहर लग गई है।