अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के बाद वहाँ अराजकता का माहौल है। इसका असर भारत में अलग-अलग मिलिट्री एकेडमी में ट्रेनिंग ले रहे 180 अफगानिस्तान मिलिट्री के जवानों और कैडेट्स पर भी पड़ा है। उनके समक्ष इस बात की चिंता है कि ट्रेनिंग पूरी होने के बाद वो कहाँ जाएँगे? उनकी इन्हीं मुश्किलों को देखते हुए भारत सरकार ने इन जवानों को ट्रेनिंग पूरी होने के बाद 6 महीने का ई वीजा देने का निर्णय लिया है। ताकि इस दौरान वो अपने भविष्य को लेकर निर्णय ले सकें।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस बीच भारत की विभिन्न मिलिट्री एकेडमी में प्रशिक्षण ले रहे 140 जवानों और कैडेट्स ने बेहतर भविष्य की तलाश में बड़ी संख्या में कनाडा, ब्रिटेन और जर्मनी समेत दूसरे देशों में वीजा के लिए अप्लाई किया है। वहीं कुछ जवानों ने भारत में अपना भविष्य तलाशने का निर्णय लिया है। फिलहाल इनकी ट्रेनिंग का सारा खर्च अफगानिस्तान में राष्ट्र निर्माण के प्रयासों के तहत भारत सरकार ही वहन कर रही है।
एएनआई को सरकारी सूत्रों ने बताया, “हमारी अकादमियों में प्रशिक्षण लेने वाले सभी अफगान कैडेटों और सैनिकों को छह महीने का ई-वीजा दिया जाएगा। उनके पास इस अवधि में अपने भविष्य के बारे में अपनी कार्रवाई के बारे में निर्णय लेने का विकल्प है।” सूत्रों का कहना है कि देश की प्रशिक्षण अकादमियों में ट्रेनिंग ले रहे इन सैनिकों को उन एजेंसियों के संपर्क में रखा गया है, जो पहले से ही देश में रह रहे अफगानों के साथ मिलकर काम कर रही हैं।
उल्लेखनीय है कि 180 अफगान बलों को ‘कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम’ के तहत यह प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसी महीने इन सैनिकों को लेकर रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट ने कहा था कि सरकार को हालात की जानकारी है। मंत्री के मुताबिक, अकादमियों में ट्रेनिंग ले रहे सैनिकों का प्रशिक्षण चलता रहेगा और इसके बारे में सरकार द्वारा निर्धारित नीतियों के तहत फैसले लिए जाएँगे।
केंद्रीय मंत्री ने कहा, “वे फिलहाल ट्रेनिंग ले रहे हैं। वे खुद चिंतित हैं। मैंने उनसे बातचीत नहीं की है, लेकिन इसको लेकर अधिकारियों को बताया है। हमें बताया गया है कि वे और उनके परिजन परेशान हैं। वे अच्छे लोग हैं। उन्हें ट्रेनिंग मिलेगी और सरकार की नीतियों के हिसाब से आगे देखेंगे।” जवानों और अधिकारियों को इंडियन मिलिट्री एकेडमी देहरादून, ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी चेन्नई और एनडीए खड़गवासला में ट्रेनिंग दी जा रही है।
रक्षा अधिकारियों ने कहा कि इन अधिकारियों और कैडेटों के प्रशिक्षण और अन्य खर्च भारत द्वारा 2001 के बाद अफगानिस्तान में राष्ट्र निर्माण के प्रयासों के तहत वहन किया जा रहा था। गौरतलब है कि तालिबान ने अगस्त में अफगानिस्तान का शासन अपने हाथ में ले लिया, जिसके बाद से वहाँ के हालात खराब हैं।