लद्दाख में चीनी सैनिकों को उनके आक्रामक रुख का करारा जवाब दिया भारत की सेना ने। महाशक्ति बनने का ढोंग रचने वाले चीन को यह ग्लोबल बेइज्जती के जैसा लगा। 29-30 अगस्त की रात को हुए इस घटनाक्रम के बाद से चीनी मीडिया लगातार प्रोपेगेंडा फैला रहा है।
वामपंथी देश चीन में मीडिया कुछ और नहीं बल्कि सरकार का मुखपत्र होता है। ऐसा ही एक मुखपत्र है ग्लोबल टाइम्स (Global Times)। इसका संपादक है हू शिन (Hu Xijin)। इन्हें खबरों से मतलब नहीं होता, इनका काम है चीन सरकार की नीतियों को इंग्लिश में लिख कर पूरी दुनिया तक पहुँचाना।
लद्दाख में मुँह की खाने के बाद सबसे पहले चीनी संपादक ने जो ट्वीट किया, उसको देखिए।
The south bank of Pangong Lake is under actual control of China. In 1962, the Chinese army beat the Indian army there. This time it is the Indian army that tried to break the status quo. I hope India will not make the same mistake.
— Hu Xijin 胡锡进 (@HuXijin_GT) August 31, 2020
Indian troops again pulled a stunt at border. They always think China will make concessions to provocative actions in consideration of overall situation. Don't misjudge the situation anymore. If there is a conflict in Pangong Lake, it will only end in new defeat of Indian army. pic.twitter.com/u3RyV7Slh8
— Hu Xijin 胡锡进 (@HuXijin_GT) August 31, 2020
अपने यहाँ (मतलब अपने देश के) के संपादक सोशल मीडिया पर कभी-कभी अपने विचार भी लिख देते हैं। चीन में ऐसा नहीं है। शक के आधार पर ऐसा मान भी लिया जाए कि ग्लोबल टाइम्स के संपादक हू शिन ने अपने विचार ट्वीट किए हैं तो आइए एक नजर डालते हैं इस वेबसाइट में प्रकाशित हुए संपादकीय पर।
अपने संपादकीय के छठे पैराग्राफ में ग्लोबल टाइम्स लिखता है:
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि नई दिल्ली (मतलब भारत) शक्तिशाली चीन का सामना कर रहा है। पीएलए (चीनी सेना) के पास उसके देश के हर इंच की सुरक्षा करने के लिए पर्याप्त बल है। चीनी लोगों ने अपने सरकार को समर्थन दिया है, जो भारत को भड़काने की कोशिश नहीं कर रहा, लेकिन वह चीन के क्षेत्र में अतिक्रमण करने की अनुमति भी नहीं देता है। दक्षिण-पश्चिमी सीमा क्षेत्रों में चीन रणनीतिक रूप से दृढ़ (मजबूत) है और किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार है। यदि भारत शांति से रहना चाहता है तो चीन इसका स्वागत करता है। यदि भारत प्रतिस्पर्धा में शामिल होना चाहता है, तो चीन के पास भारत की तुलना में अधिक उपकरण और क्षमता है। यदि भारत सैन्य प्रदर्शन (मतलब सीमा पर सैनिकों को खुली छूट) करना चाहेगा, तो पीएलए (चीनी सेना) भारतीय सेना को 1962 की तुलना में अधिक गंभीर नुकसान करवाने के लिए बाध्य है।
चीनी मीडिया की गीदड़-भभकी बहुत हुई। अब बात वैश्विक परिदृश्य की। 2020 न तो 1962 है और न ही आज का भारत तब जैसा है। तब के भारतीय नेतृत्व और आज के भारतीय नेतृत्व में बहुत अंतर है। वैश्विक परिदृश्य की बात करें तो 59 ऐप्स के हटने भर से चीन बिलबिला गया है। अगर 159 पर चोट किया जाए तो चीनी शीर्ष नेतृत्व पागलखाना तलाशता फिरेगा।
चीनी मीडिया को अपने संपादकीय पन्ने या स्पेस को पैसा, बाजार, कंपनी, TikTok जैसे मुद्दों तक सीमित रखना चाहिए। इसी में उनकी भलाई है। युद्ध न हम चाहते हैं न विश्व। लेकिन क्षमता किसमें कितनी है, यह गलवान से लेकर 29/30 अगस्त की रात को पैंगोंग त्सो (PangongTso) में हुए घटनाक्रम से समझा जा सकता है।