ईरान में हिंसक प्रदर्शन के चलते पूरे देश की शांति व्यवस्था पर खतरा मंडरा रहा है। इस हिंसक और उपद्रवी प्रदर्शन के दौरान कई बैंकों और सरकारी संपत्तियों को निशाना बनाया गया। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस सम्बन्ध में ईरान के एक मंत्री अब्दुल रज़ा रहमानी फ़ज़ली ने जानकारी दी कि अभी तक की इस हिंसा में करीब 731 बैंकों और 140 सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुँचा है। उन्होंने कहा कि इन्हें जला कर राख कर दिया गया।
फ़ज़ली के मुताबिक प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षाबालों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले 50 से भी ज्यादा बेस नष्ट कर दिए गए। उन्होंने बताया कि यह प्रदर्शन 15 नवम्बर को तब शुरू हुए जब दामों की बढ़ोतरी का ऐलान किया गया। इन प्रदर्शनों में तकरीबन दो-लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए थे। इस भीड़ ने 70 गैस स्टेशनों को भी आग के हवाले कर दिया।
लन्दन के एक मानवाधिकार संगठन – एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 25 नवम्बर को इस सम्बन्ध में कहा कि इस प्रदर्शन की हिंसा में अभी तक करीब 143 लोग मारे जा चुके हैं। संस्था ने दावा किया कि सरकार के खिलाफ यह सबसे भीषण क्रांति है। इससे पहले सन् 2009 में भी ऐसी एक क्रांति हुई थी जब ईरान के प्रशासन ने ‘ग्रीन रेवोल्यूशन’ पर प्रदर्शनों को कुचलने की कोशिश की थी।
हालाँकि, ईरान सरकार ने इस संस्था द्वारा पेश किए मौत के आँकड़े से पूरी तरह इनकार किया है। उनका पक्ष है कि इस दौरान सुरक्षाबलों के लोग भी मारे गए और हज़ार लोगों को गिरफ्तार किया गया है। जबकि न्यूयॉर्क की एक मानवाधिकार एजेंसी सेण्टर फॉर ह्यूमन राइट्स इन ईरान ने दावा किया है कि गिरफ्त में लिए गए लोगों की तादाद 4000 के करीब है।
प्रदर्शनकारियों द्वारा सभी शीर्ष नेताओं के इस्तीफे की माँग के बाद ये प्रदर्शन सियासी हो गए। जबकि स्थानीय सरकार ने इस उग्र प्रदर्शन को भड़काने के लिए अमेरिका, इजराइल तथा सऊदी अरब पर आरोप लगाए हैं। बता दें कि अमेरिका ने ईरान पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए थे, उसके बाद से ही ईरान के तेल निर्यात करने में काफी गिरावट आई है। इसके बाद से ही ईरान तथा लिबनान में कई हथियारबंद गुटों ने सरकार के खिलाफ महँगाई को लेकर प्रदर्शन शुरू कर दिए।