प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के नेतृत्व में भारत ने वो कर दिखाया, जो कुछ महीने पहले तक असंभव सा लग रहा था। न सिर्फ G20 समिट का भव्य आयोजन नई दिल्ली में सफल हुआ, बल्कि समूह ने जो संयुक्त घोषणा-पत्र जारी किया, उसमें भी सर्व-सम्मति बन गई। वो भी तब, जब दुनिया रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर बँटी हुई है। भारत ने रूस की निंदा करवाए बिना इस घोषणा-पत्र को पारित करवा दिया, साथ ही ये सन्देश भी दे दिया कि ये युद्ध का काल नहीं है। इसके लिए भारत के अधिकारियों ने भी खूब मेहनत की।
G20 में भारत के ‘शेरपा’ अमिताभ कांत ने बताया कि 200 घंटे तक चले नॉन-स्टॉप बातचीत के बाद G20 के डिक्लेरेशन पर सर्व-सहमति बनी। संगठन के 18वें समिट के दौरान भारत के अधिकारियों का एक पूरा समूह इसमें लगा हुआ था। इसमें जॉइंट सेक्रेटरी इनम गंभीर और नागराज नायडू काकनर शामिल थे। इनलोगों ने 300 से अधिक द्विपक्षीय बैठकों में हिस्सा लिया और 15 ड्राफ्ट्स तैयार किए। यही कारण रहा कि G20 समिट के पहले ही दिन सर्वसम्मति से डिक्लेरेशन पास हो गया।
इसमें सबसे कठिन था जियोपॉलिटिकल पैरा, यानी रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर सबको एकमत में लाना। इसके लिए 200 घंटों की बातचीत, 300 बैठकें और 15 ड्राफ्ट्स लगे। अमिताभ कांत ने दोनों अधिकारियों को धन्यवाद करते हुए कहा कि इस कार्य में उन दोनों के सहयोग के लिए वो आभारी हैं। आइए, आपको बताते हैं कि ईनम गंभीर कौन हैं। वो भारतीय विदेश मंत्रालय की जॉइंट सेक्रेटरी हैं, जिन्हें G20 में भी इस पद पर रखा गया। वो 2005 बैच की भारतीय विदेश सेवा (IFS) अधिकारी हैं।
उन्होंने भारत की G20 अध्यक्षता की नीतियों को निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाई है। इससे पहले वो न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में संस्था के अध्यक्ष की वरिष्ठ सलाहकार (शांति एवं सुरक्षा मामले) के रूप में काम कर चुकी हैं। उन्होंने UNGA (यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली) के 74वें अधिवेशन के दौरान इस पद पर काम किया था। मेक्सिको और अर्जेंटाइना जैसे दक्षिण अमेरिकी देशों में भारतीय दूतावास में कार्यरत रहीं ईनम गंभीर स्पेनिश भाषा में दक्ष हैं।
उन्होंने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान को लेकर भारत की विदेश नीति तैयार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 2011-16 के बीच उन्होंने अलग-अलग पदों पर रहते हुए ये जिम्मेदारियाँ निभाईं। वो न्यूयॉर्क में UN में भारत के परमानेंट मिशन के रूप में भी काम कर चुकी हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से गणित विषय में मास्टर्स ऑफ साइंस की डिग्री प्राप्त की है। साथ ही उन्होंने यूनिवर्सिटी और जेनेवा से एडवांस इंटरनेशनल सिक्योरिटी में भी मास्टर्स किया था। UN में उन्हें 2 बार भारत की तरफ से पाकिस्तान को जवाब देने का मौका मिला और उन्होंने पाकिस्तान की बखिया उधेड़ दी थी।
अब बात करते हैं नागराज नायडू काकनुर की, जो फ़िलहाल जॉइंट सेक्रेटरी के पद पर हैं और चीनी भाषा में दक्ष हैं। यूक्रेन संबंधी विषय पर ड्राफ्ट तैयार करने और मोलभाव में उन्होंने ही नेतृत्व किया। उन्होंने 76वें UNGA अधिवेशन के अध्यक्ष अब्दुल्ला शाहिद के चीफ कैबिनेट के रूप में काम किया था। अब्दुल्ला शाहिद ने कहा था कि नागराज नायडू एक बहुत अच्छे कूटनीतिज्ञ हैं, जो संकट के समय में काम आते हैं और मेहनत और प्रतिबद्ध हैं। साथ ही वो संयुक्त राष्ट्र में भारत के डिप्टी परमानेंट रिप्रेजेन्टेटिव रहे हैं।
उन्होंने 4 बार अलग-अलग जिम्मेदारियाँ देकर चीन भेजा गया था। उन्होंने 2000-2003 में बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास में सेकंड एवं थर्ड सेक्रेटरी (स्पेशल प्रोजेक्ट्स) के रूप में काम किया था। 2003-06 में उन्हें हॉन्गकॉन्ग स्थित भारतीय काउंसलेट में काउंसल (राजनीतिक एवं वाणिज्यिक) के रूप में काम करने की जिम्मेदारी मिली थी। 2009-12 में वो बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास में फर्स्ट सेक्रेटरी एन्ड काउंसलर (इकोनॉमिक एन्ड कमर्शियल अफेयर्स) के रूप में कार्यरत रहे।
चीन के गुआंगझोउ में 2013-15 में वो भारतीय काउंसलेट में काउंसल रहे। नई दिल्ली में केंद्रीय विदेश मंत्रालय में लौटने के बाद वो 2015-17 में इसके इकोनॉमिक डिप्लोमेसी डिवीज़न में जॉइंट सेक्रेटरी/डायरेक्टर जनरल के पद पर रहे। उन्होंने अमेरिका के मेडफोर्ड सहित फ्लेचर स्कूल ऑफ लॉ एन्ड डिप्लोमेसी से मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की थी। ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया ने भारत द्वारा तैयार किए गए डिक्लेरेशन को सर्वसम्मति प्रदान करवाने में बड़ी भूमिका निभाई।
इसमें रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले की चर्चा किए बिना सामान्य तौर पर सभी देशों को एक-दूसरे की क्षेत्रीय संप्रभुता का सम्मान करने का सन्देश दिया गया। अन्य अधिकारियों, जिन्होंने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उनमें अभय ठाकुर का भी नाम है। अभय ठाकुर भारतीय विदेश मंत्रालय में एडिशनल सेक्रेटरी हैं। उन्हें G20 में ‘डिप्टी’ (Sous शेरपा) का पद मिला है। वो मॉरीशस और नाइजीरिया में भारत के राजदूत रह चुके हैं। विदेश मंत्रालय में नेपाल और भूटान से डील करने का अनुभव उनके पास है। वो रूसी भाषा के जानकार भी हैं।
इसी तरह एक नाम 2005 बैच के IFS अधिकारी आशीष सिन्हा का है। मैड्रिड, काठमांडू, नैरोबी और न्यूयॉर्क में काम कर चुके आशीष सिन्हा स्पेनिश भी बोलते हैं। पिछले 7 वर्षों से वो कई समझौतों में भारत के लिए मोलभाव करते रहे हैं। G20 में शामिल बड़े वैश्विक नेताओं ने इस डिक्लेरेशन की तारीफ़ की है। यहाँ तक कि भारत में विपक्षी पार्टी कॉन्ग्रेस के नेता शशि थरूर भी इन IFS अधिकारियों के कायल हो गए। उन्होंने अमिताभ कांत को बधाई देते हुए कहा कि भारत ने एक दक्ष IFS अधिकारी खो दिया, क्योंकि उन्होंने IAS में जाना पसंद किया।
Well done @amitabhk87! Looks lile the IFS lost an ace diplomat when you opted for the IAS! "Negotiated with Russia, China, only last night got final draft," says India's G20 Sherpa on 'Delhi Declaration' consensus.
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) September 9, 2023
A proud moment for India at G20! https://t.co/9M0ki7appY
शशि थरूर खुद भारत के विदेश राज्यमंत्री रहे हैं और IFS अधिकारी के रूप में UN में काम कर चुके हैं। उन्होंने अमिताभ कांत के एक बयान को शेयर किया, जिसमें उन्होंने बताया था कि कैसे G20 समिट के एक रात पहले ही डिक्लेरेशन को लेकर सर्वसम्मति बनी थी। केरल कैडर के 1980 बैच के IAS अधिकारी रहे अमिताभ कांत ‘नीति आयोग’ के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उन्होंने बताया कि पहले ड्राफ्ट पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएँ आई थीं और किसी को नहीं लग रहा था कि सब सहमत होंगे, लेकिन प्रयास जारी रखा गया। पहला, दूसरा, तीसरा… और 15वें ड्राफ्ट में सहमति बनी।