महात्मा गाँधी की परपोती आशीष लता रामगोबिन (56) को धोखाधड़ी और जालसाजी मामले में दक्षिण अफ्रीका के डरबन की एक अदालत ने सोमवार (7 जून 2021) को सात साल जेल की सजा सुनाई। उन पर इंडिया से एक कंसाइनमेंट को लाने के लिए इंपोर्ट और कस्टम ड्यूटी को मैनेज करने के नाम पर बिजनेसमैन एसआर महाराज से 6.2 मिलियन रैंड (करीब 3.23 करोड़ रुपए) हड़पने का आरोप था। इससे होने वाले लाभ को व्यवसायी के साथ बाँटने का भी उन्होंने वादा किया था।
बता दें कि लता रामगोबिन इला गाँधी और दिवंगत मेवा रामगोबिंद की बेटी हैं। डरबन स्पेशलाइज्ड कमर्शियल क्राइम कोर्ट ने उन्हें सजा सुनाई। 2015 में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई थी। राष्ट्रीय अभियोजन प्राधिकरण (एनपीए) के ब्रिगेडियर हंगवानी मुलौदज़ी ने कहा था कि लता रामगोबिन ने संभावित निवेशकों को भरोसा दिलाने के लिए जाली चालान और दस्तावेज पेश किए थे। इसमें उन्होंने दावा किया था कि भारत से लिनन के तीन कंटेनर भेजे जा रहे हैं।
Ashish Lata Ramgobin was found guilty in a six-million rand fraud and forgery case, and has been sentenced to 7 years in jail.https://t.co/JXZAknt2bR
— Hindustan Times (@htTweets) June 8, 2021
उस समय महात्मा गाँधी की पड़पोती को 50,000 रैंड की जमानत पर रिहा कर दिया गया था। लता रामगोबिन के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि उन्होंने न्यू अफ्रीका अलायंस फुटवियर डिस्ट्रीब्यूटर्स के डायरेक्टर महाराज से अगस्त 2015 में मुलाकात की थी।
महाराज की कंपनी कपड़े, लिनन और जूते का आयात और निर्माण और बिक्री करती है। इसके अलावा वह दूसरी कंपनियों को प्रॉफिट-शेयर के आधार पर फाइनेंस भी करती है। उस मुलाकात के दौरान लता रामगोबिन ने महाराज को बताया था कि उन्होंने दक्षिण अफ्रीकी अस्पताल ग्रुप नेटकेयर के लिए लिनन के तीन कंटेनर आयात किए हैं।
एनपीए की प्रवक्ता नताशा कारा ने सुनवाई के दौरान बताया कि लता राम गोबिन ने कहा था कि उन्हें इम्पोर्ट कॉस्ट और कस्टम ड्यूटी का भुगतान करने के लिए फाइनेंशियल दिक्कतों का सामना करना पड़ा था और हार्बर बंदरगाह पर सामान क्लियर कराने के लिए पैसे की आवश्यकता थी।
नताशा कारा ने बताया, “लता ने महाराज को सलाह दी थी कि सामान को क्लियर करवाने के लिए उन्हें 62 लाख रैंड की जरूरत है। बाद में उन्होंने माल डिलीवर करने और भुगतान के सबूत के तौर पर नेटकेयर का चालान महाराज को भेज दिया था।”
कारा ने कहा, “लता रामगोबिन ने नेटकेयर के बैंक खाते से लेन-देन करने की पुष्टि की थी। रामगोबिन की पारिवारिक साख और नेटकेयर के डॉक्यूमेंट्स के कारण महाराज ने कर्ज लेने के लिए उनके साथ लिखित समझौता किया था।” हालाँकि, जब महाराज को दस्तावेज़ के फर्जी होने का पता चला तो रामगोबिन के साथ कोई समझौता नहीं हुआ और उन्होंने आपराधिक आरोप लगाए।
लता रामगोबिन इंटरनेशनल सेंटर फॉर अहिंसा एनजीओ की संस्थापक, कार्यकारी निदेशक हैं। वे खुद को पर्यावरण, सामाजिक और राजनीतिक हितों पर ध्यान देने वाली कार्यकर्ता बताती हैं।