वैश्विक स्तर पर जारी चीन का विरोध धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा है। दुनिया के तमाम देशों का रवैया चीन के लिए बेहद आलोचनात्मक है। इस कड़ी में अमेरिका की दावेदारी कहीं ज़्यादा रही है। अमेरिका के विदेश मंत्री माईक पॉम्पियो ने गुरूवार के दिन कहा ह्यूस्टन स्थित चीनी वाणिज्य दूतावास जासूसी का अड्डा बन चुका है। हाल ही में अमेरिका ने इस वाणिज्य दूतावास को बंद करने का आदेश दिया था।
पॉम्पियो ने इस बारे में कई अहम बातें कही, उनके मुताबिक़ चीन के इस काउंसलेट में कई गैर कानूनी गतिविधियाँ चल रही थीं। साथ ही तमाम अमेरिकी कंपनी के व्यापार सम्बन्धी दस्तावेज़ भी चुराए जा रहे थे।
“अंततः हमने यह फैसला लिया है कि इस सप्ताह में चीन का यह वाणिज्य दूतावास बंद कर दिया जाएगा। यहाँ जासूसी और अमेरिकी बौद्धिक विषय वस्तु (intellectual property) की चोरी के अलावा कुछ और नहीं होता है।”
इसके बाद पॉम्पियो ने चीन की वामपंथी सरकार के तौर तरीकों पर भी कई उल्लेखनीय बातें कही। उन्होंने कहा दुनिया के हर बड़े देश को चीन का सामना करने के लिए आगे आना पड़ेगा। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विचारधारा ही ऐसी है जिसके तहत वह दुनिया के नेतृत्व का सपना देखते हैं। इस सोच का आधार चीनी वामपंथ है।
चीन के नागरिकों की स्थिति पर बोलते हुए पॉम्पियो ने कहा, “वामपंथी झूठे होते हैं। वह सिर्फ झूठ बोलते हैं लेकिन सबसे बड़ा झूठ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपने 140 करोड़ लोगों के लिए बोलती है जो हमेशा निगरानी में रहते हैं। उन्हें कुछ भी नहीं बोलने के लिए डराया और धमकाया जाता है। चीन की सरकार अपने देश के भीतर स्वभाव में पूरी तरह एथोरिटेटिव हो चुकी है और दुश्मनी के लिहाज़ से उसका रवैया लगभग सभी के लिए बेहद आक्रामक है।”
We can’t face this challenge alone. UN, NATO, G7, G20, our combined economic, diplomatic, & military power is surely enough to meet this challenge, if we direct it clearly. Maybe it’s time for a new grouping of like-minded nations, a new alliance of democracies: US Secy of State https://t.co/SyWYBZbY2V pic.twitter.com/LlzrTYJrFh
— ANI (@ANI) July 23, 2020
पॉम्पियो ने आगे कहा “अगर आज़ाद दुनिया वामपंथी चीन को नहीं बदलती तो वामपंथी चीन हमें बदल कर रख देगा।”
इसके अलावा पॉम्पियो ने चीन के वुहान से शुरू हुए कोरोना वायरस पर भी कई बातें कही। उन्होंने कहा, “अगर चीन ने पहले ही दुनिया को महामारी के खतरे से आगाह कर दिया होता तो आज हालात सामान्य होते। दशकों तक हमारे नेताओं ने चीन के मतभेद पैदा करने वाले नेताओं के शब्दों को नज़र अंदाज़ किया है। जो कि दुनिया के लिए किसी चेतावनी से कम नहीं था, आज हमें जिस तरह की शासन पद्धति का सामना करना पड़ रहा है उसका कारण यही है।”
पॉम्पियो ने यह भी कहा हम इस चुनौती का सामना अकेले नहीं कर सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ, नाटो, G7, G20 और हमारी संयुक्त आर्थिक-रक्षा शक्ति के साथ इस चुनौती का सामना करना संभव होगा। शायद यही सही समय है एक तरह की सोच रखने वाले देशों के साथ आने का। दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशों को साथ आना होगा शायद तभी हम कुछ कर पाने में सक्षम होंगे।
इसके अलावा पॉम्पियो ने कहा चीन ने हमारे ट्रेड सीक्रेट्स और बौद्धिक विषय वस्तु चुराए जिसके चलते लाखों अमेरिकी नागरिकों को अपनी नौकरी गँवानी पड़ी। इसलिए चीन के खिलाफ कड़ा कदम उठाना बहुत ज़रूरी हो गया था।
अमेरिका के निक्सन पुस्तकालय में विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने अमेरिका और चीन के संबंधों पर विस्तार से अपनी राय रखी। इस पुस्तकालय का नाम रिचर्ड निक्सन के नाम पर रखा गया है जिन्होंने अमेरिका और चीन के संबंधों की नींव रखी थी। इस पहल के पहले तक चीन और अमेरिका के बीच किसी भी तरह के सम्बन्ध नहीं थे। अमेरिका और चीन के रिश्तों की नींव लगभग 4 दशक पहले 1970 में पड़ी थी। इस कोशिश के तहत अमेरिका की टेबल टेनिस टीम पहली बार चीन गई थी।
इसके कुछ साल बाद 1972 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन 8 दिन के चीन के दौरे पर गए थे। इसे ‘पिंग पॉन्ग डिप्लोमेसी’ भी कहा जाता है। इतना कुछ होने के बाद अमेरिका और चीन के बीच पहली बार कूटनीतिक संबंध स्थापित हुए थे। फिर अमेरिकी डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति जिम कार्टर ने चीन के साथ 636 बिलियन डॉलर का समझौता किया था। यह समझौता पूरी तरह चीन के पक्ष में था।