चीन की कम्युनिस्ट सरकार लगातार नेपाल के आंतरिक मामलों में अपनी घुसपैठ कर रही है। आज से वहाँ संसद सत्र शुरू हो रहा है, ऐसे में चीन ने नेपाल के राजनीतिक दलों पर खुले तौर पर दबाव बनाया है कि वह अमेरिकी प्रोजक्ट एमसीसी (मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन) के बिल को संसद से पास न होने दें।
कथिततौर पर, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अंतरराष्ट्रीय विभाग के उपमंत्री शेन झोऊ ने विडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए ये दबाव बनाने का काम किया है, जिसका खुलासा नेपाल की सरकारी एजेंसी ने किया है। एजेंसी ने बताया कि चीन की वामपंथी पार्टी के विदेश विभाग के उपमंत्री ने सोमवार को देर रात नेपाल के प्रमुख विपक्षी दल नेकपा एमाले के महासचिव शंकर पोखरेल को वीडियो कॉन्फ्रेंस की थी। इस दौरान उन्होंने विपक्षी नेता MCC पर पुनर्विचार करने को कहा।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एजेंसी ने बताया कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान शेन झोऊ ने विपक्षी नेता को ये भी बताया कि उनकी सत्तारूढ़ दल नेपाली कॉन्ग्रेस, माओवादी, एकीकृत समाजवादी और जनता समाजवादी पार्टी के नेताओं से बातचीत हो गई है। चीन के उपमंत्री ने दावा किया है कि सत्तारूढ़ दल उनके विचारों से सहमत हैं और विपक्षी दल के नाते नेकपा एमाले को भी इस पर विचार करना चाहिए।
अब जहाँ चीन के उपमंत्री इस तरह के दावे कर रहे हैं। वहीं ओली की नेकपा एमाले को लेकर कहा जा रहा है कि उन्हें यूएस प्रोजेक्ट एमसीसी से कोई समस्या नहीं है। वह चाहते हैं कि ये जल्द से जल्द संसद में पारित हो, लेकिन यदि ऐसा हुआ तो सत्तारूढ़ पार्टियों में फूट आ जाएगी और संभव है कि गठबंधन टूट जाए। यही वजह है कि चीन लगातार नेपाल के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप कर रहा है।
बता दें कि प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउवा की पार्टी नेपाली कॉन्ग्रेस इस बिल के समर्थन में है, लेकिन उनके सहयोगी दल माओवादी, एकीकृत समाजवादी और जनता समाजवादी पार्टी तीनों ही इसका विरोध कर रहे हैं। ये सभी पार्टियाँ चीन की करीबी हैं।
2017 में साइन हुई थी यूएस से MCC पर डील
जानकारी के अनुसार नेपाल ने मई 2017 में जब इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट को लेकर चीन के साथ बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव समझौते पर विचार किया था, उस समय अमेरिका ने भी अपने प्रयास तेज कर दिए थे और मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन (MCC) नेपाल कॉम्पैक्ट बनाने के लिए सितंबर 2017 में नेपाल के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इन्हीं प्रोजेक्ट्स के चलते दोनों देशों ने नेपाल में दौरा भी किया।
अक्टूबर 2019 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आए और 2.75 बिलियन डॉलर समझौतों पर हस्ताक्षर किए। वहीं अमेरिका का मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन $600 मिलियन यानी (₹47,84,25,15,000) का है। जिसमें 500 मिलियन डॉलर ( ₹ 37,96,62,50,000) अमेरिका और नेपाल की ओर से 130 मिलियन डॉलर (₹ 9,87,12,25,000) लगने हैं।
इस एमसीसी नेपाल कॉम्पेक्ट में दो परियोजनाएँ हैं- पहली 300 किलोमीटर 400 किलोवोल्ट बिजली ट्रांसमिशन लाइन और 100 किलोमीटर पूर्व-पश्चिम राजमार्ग में अपग्रेड। मौजूद जानकारी के अनुसार, इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य गरीबी से लड़ना है। काठमांडू के जल संसाधन विश्लेषक रत्न संसार श्रेष्ठ ने बताया कि मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन द्वारा उत्पादित बिजली स्थानीय खपत के लिए नहीं होगी बल्कि केवल भारत को निर्यात के लिए होगी। नतीजतन, इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को सीधे तौर पर कोई फायदा नहीं होगा।
नेपाल की जमीन पर चीन का अतिक्रमण
बता दें कि नेपाल में चीन का हस्तक्षेप कोई नई बात नहीं है। चीन की ओर से लगातार नेपाल पर दबदबा बनाने का प्रयास होता रहा है। इसी क्रम में उन्होंने रुई नामक गाँव पर कब्ज़ा किया था। यह नेपाल के गोरखा जिले में स्थित है। इसके अलावा चीनी सेना ने पिछले साल नेपाल के कोडारी गाँव में घुसकर गाँव के लोगों के साथ हिंसा की और उन्हें डराया-धमकाया था। चीनी सेना ने उनसे यह भी कहा था कि उनका कोडारी गाँव चीन के झांगमू प्रांत का हिस्सा है, जो कि तिब्बत (टीएआर) में आता है।
पुरानी बात करें तो साल 2011 में भी चीन ने नेपाल में एक ‘फ्रेंडशिप पुल’ का निर्माण किया था और व्यापार के नाम पर चीनियों द्वारा यहाँ की दैनिक आमद शुरू हो गई थी। अब चीन इस कोडारी कस्बे पर अपना दावा करते हुए इसे अपनी सीमा के भीतर झांगमू शहर का हिस्सा बताता है और नेपाल सरकार इसके आगे लाचार और बेबस नजर आती है। वहीं जब बात भारत की होती है तो यही नेपाल कालापानी के तीन गाँवों पर अपना अधिकार दिखाता है और नेपाली मीडिया इसे भारतीय अतिक्रमण कहने से गुरेज नहीं करती।