नेपाल की सांसद सरिता गिरी को नेपाल के एक संवेदनशील मुद्दे पर अपनी बात रखने की भारी कीमत चुकानी पड़ी है। दरअसल, सरिता गिरी ने भारत के कुछ इलाकों को नेपाल में शामिल करने वाले मानचित्र का विरोध किया था। जिसके बाद उनके राजनीतिक दल समाजवादी पार्टी ने उनकी सदस्यता समाप्त करने की सिफारिश कर दी है।
मंगलवार के दिन समाजवादी पार्टी के महासचिव राम सहाय प्रसाद यादव की अगुवाई में दल के एक टास्क फ़ोर्स ने सरिता गिरी की पार्टी सदस्यता और संसदीय सीट समाप्त करने की सिफारिश की। इस टास्क फ़ोर्स के दूसरे सदस्य मोहम्मद इश्तियाक के अनुसार सरिता गिरी ने दल के संसदीय निर्देशों का पालन नहीं किया जिसके आधार पर उनके खिलाफ यह माँग उठाई गई है। यह संविधान संशोधन विधेयक कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा समेत मानचित्र में तमाम संशोधन करने के लिए प्रस्तावित किया गया था। जिसका सांसद गिरी ने विरोध किया और यह हमारे दल के निर्देशों का उल्लंघन था।
हालाँकि, सांसद सरिता गिरी ने विधेयक पर एक संशोधन का प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया था। जिस प्रस्ताव को उनके दल के मुख्य सचेतक उमा शंकर अरगारिया ने वापस लेने का निर्देश दिया था। जिसे गिरी ने सिरे से अस्वीकार कर दिया था, इसके बाद उनके दल के तमाम नेता उनके विरोध में उतर आए थे।
दरअसल, पिछले कुछ समय से नेपाल के भीतर सरकार को कई मोर्चे पर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इन चुनौतियों और विरोध के स्वरों को दबाने के लिए केपी ओली शर्मा ने यह पैंतरा आज़माया था। क्योंकि मुद्दा राष्ट्र-वाद से जुड़ा हुआ था इसलिए कोई विरोध में खुल कर सामने नहीं आया लेकिन सभी के ठीक विपरीत सांसद सरिता गिरी ने अपनी आवाज़ उठाई।
इसके बाद वह एक-एक करके लगभग सारे ही राजनीतिक दलों के निशाने पर आ गईं। उन्हें चौतरफा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, उनके घर पर हमला हुआ और उन्हें लगातार धमकियाँ मिल रही हैं। यहाँ तक कि उन पर खुद की पार्टी के लोग तक तंज कस रहे हैं, उन्हें भारत की भक्त तक कहा जा रहा है।
सांसद सरिता गिरी का क़सूर केवल इतना है कि उन्होंने नए नक्शे के लिए संविधान में संशोधन के लिए सरकार से सवाल कर दिया। वह केवल इतना जानना चाहती थीं कि किस आधार पर तमाम इलाकों को नेपाल में शामिल करने का दावा किया जा रहा है? उन्होंने साफ़ शब्दों में कहा कि कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा पर दावा करने के लिए सरकार के पास कोई आधार नहीं है।
इतना ही नहीं यह सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के भी खिलाफ है, जिस आदेश के मुताबिक़ अगर सरकार किसी राष्ट्रीय प्रतीक में बदलाव करना चाहती है तो उसके लिए आधार अनिवार्य रूप से होना चाहिए। सरकार ने इस विधेयक में नए मानचित्र को शामिल करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं दी हैं। ऐसे तो हमारा सीमा विवाद चीन के साथ भी है, हम उस क्षेत्र की ज़मीन को नेपाल में शामिल क्यों नहीं कर पा रहे है?
अंत में उन्होंने नए मानचित्र का विरोध करते हुए अपनी पार्टी के खिलाफ जाकर सदन में एक संशोधन प्रस्ताव भी पेश किया। साथ ही इस बात की पुरजोर माँग उठाई कि पुराना मानचित्र ही प्रभावी रहे। जिसके बाद अध्यक्ष ने प्रतिनिधि सभा की रूल बुक की धारा 122 का हवाला देते हुए उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। अंत में सांसद सरिता गिरी सदन से बाहर की ओर चली गईं।
जून की शुरुआत में नेपाल संसद की प्रतिनिधि सभा में संविधान संशोधन का प्रस्ताव पेश किया गया था। नेपाल के केपी शर्मा ओली सरकार की तरफ से जिस दिन विवादित मानचित्र संबंधित संविधान संशोधन प्रस्ताव को संसद में पेश किया गया था, उसी दिन नेपाल के राजपत्र में इसे प्रकाशित भी कर दिया गया था। इससे पहले इस विवादित नक्शे का विरोध करने के लिए समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता पार्टी का विलय कराकर नई पार्टी जनता समाजवादी पार्टी बनाई गई थी। इसी पार्टी से सरिता गिरि सांसद हैं।
लेकिन, इसके बाद संभावित विरोध की इस हालात में उनकी पार्टी उनके साथ नहीं खड़ी हुई थी। प्रमुख प्रतिपक्षी दल नेपाली कॉन्ग्रेस तो पहले ही इस प्रस्ताव का समर्थन करने का ऐलान किया था। यह बात हैरान करने वाली थी कि अक्सर भारत के पक्ष में रहने वाली नेपाल की मधेशी पार्टी ने भी संसद में इस बिल का विरोध नहीं किया था। जनता समाजवादी पार्टी की सांसद सरिता गिरि ऐसी पहली सांसद सामने आईं जिन्होंने इस संविधान संशोधन का विरोध किया था। सरिता गिरि ने ये भी दावा किया था कि नेपाल की जनता भी नहीं चाहती है कि मानचित्र को लेकर भारत के साथ कोई विवाद हो। उनकी राय थी कि नेपाल का नया मानचित्र जारी करने से पहले नेपाल को भारत से बातचीत करनी चाहिए थी।