प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टेक्सास के ह्यूस्टन शहर में होने वाली ‘Howdy Modi’ रैली का समय जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है, वैसे-वैसे दो बातें साफ़ होतीं जा रहीं हैं- पहली, कि यह कोई आम ‘राजनीतिक विरोध’ नहीं है, बल्कि राजनीति का चोगा ओढ़कर खड़ी कोई उससे कहीं ज़्यादा बदरंग ताकत है (जैसे कश्मीर के कट्टरपंथी इस्लाम और जिहादी उन्माद से उपजी हिन्दुओं के प्रति असहिष्णुता को एक ‘राजनीतिक समस्या ‘बताया गया), और दूसरी यह कि इसमें शामिल लोग भी कोई आम हिंदुस्तानी या भारतवंशी नहीं, बल्कि या तो पाकिस्तानी हैं, या खालिस्तानी और जिहादी ताकतें, जिनका हिंदुस्तान से खून या पासपोर्ट का तो रिश्ता हो सकता है, लेकिन वे हिंदुस्तानी किसी भी लिहाज से नहीं कहे जा सकते।
ऑपइंडिया ने पहले ही बताया था कि कैसे 22 सितंबर को होने वाले कार्यक्रम के ‘विरोध प्रदर्शन’ के लिए लोगों के इकट्ठे होने की जगहें अधिकतर (16) मस्जिदें, और एक खालिस्तानी गुरुद्वारा है। इनकी सूची इस प्रकार है:
- मस्जिद अबू बक्र
- मरयम इस्लामिक सेंटर
- मस्जिद अत-तक्वा
- मस्जिद हमज़ा (मिशन बेंड इस्लामिक सेंटर)
- बीयर क्रीक इस्लामिक सेंटर/ मस्जिद अल-मुस्तफा
- वुडलैंड्स मस्जिद
- इस्लामिक सेंटर ऑफ बेटाउन
- एमएएस कैटी सेंटर
- मदरसा इस्लामिया
- अल-नूर सोसायटी ऑफ ह्यूस्टन
- इस्लामिक एजुकेशन सेंटर
- पियरलैंड इस्लामिक सेंटर
- मस्जिद अल सलाम
- सिख नेशनल सेंटर
- मिशकाह सेंटर
- सिप्रस मस्जिद
- बिलाल मस्जिद नॉर्थ
इन मस्जिदों में से कुछ की पहचान क्लेरियन प्रोजेक्ट द्वारा कट्टरपंथी इस्लाम को बढ़ावा देने के रूप में की गई है। इनमें से एक इस्लामिक एजुकेशन सेंटर और मस्जिद अत-तक्वा है।
विरोध-प्रदर्शन करने वाले सिख आयोजकों ने ह्यूस्टन क्रॉनिकल से बात की और उनकी टिप्पणियों से यह स्पष्ट है कि वे खालिस्तानी आंदोलन से जुड़े हुए हैं। विरोध करने वाले सिख आयोजकों में से एक जगदीप सिंह है, जो 2020 पंजाब जनमत संग्रह की दिशा में काम कर रहा है। सिख नेशनल सेंटर के अध्यक्ष हरदाम सिंह आज़ाद ने कहा, “यह स्वतंत्रता के लिए एक विरोध रैली है।” इससे यह बात स्पष्ट है कि यह विरोध रैली अलगाववादियों द्वारा आयोजित की जाएगी।
दूसरी ओर, जो समुदाय विशेष वाले ह्यूस्टन में मोदी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं, वे कश्मीरी अलगाववादी हैं। वे खुलेआम भारत से कश्मीर की आज़ादी की गुहार लगा रहे हैं।
I just spoke at @HoustonTX – Houston City Council – against #HowdyModi. Provided all 16 city council members with a 50+ page packet of three articles about #Modi, the #RSS (and its white supremacist connection and inspiration by the Nazis, and the RSS in America. pic.twitter.com/EYPCPhUyWF
— Pieter Friedrich (@FriedrichPieter) September 17, 2019
इसकी जड़ कहाँ तक जाती है, यह देखने के लिए ऑपइंडिया के एक विश्वस्त सूत्र ने भी इस विरोध प्रदर्शन के लिए रजिस्टर किया। उसके बाद हमें एक ईमेल मिला।
जैसा कि आप देख सकते हैं, ईमेल की शुरुआत “अस्सलामवालेकुम” से होती है। इसके बाद इसमें बताया जाता है कि कुछ ‘उदारमना दानदाताओं’ ने प्रदर्शन स्थल NRG स्टेडियम के लिए लक्ज़री बसों का इंतज़ाम किया है। इसके अलावा 20 सितंबर, 2019 के इस ईमेल में आश्वासन भी है कि यह बीएस सेवा हर दस मिनट पर चलती रहेगी, और बसों के लिए किसी पंजीकरण की भी ज़रूरत नहीं है।
लेकिन महज़ तीन दिन पहले, 17 सितंबर तक, इनके पास यह सब नहीं था। सोशल मीडिया पर प्रदर्शन में हिस्सा लेने आने वालों को पीने का पानी तक अपने आप लेकर आने के लिए कहा जा रहा था। कुछ बसों का इंतज़ाम ज़रूर था, लेकिन न ही उनके लक्ज़री होने का ज़िक्र था, न ही इतनी बड़ी संख्या का कि हर दस मिनट पर लोगों को बसें ले आएँ-ले जाएँ। साथ ही, नए पैम्फलेट में दिख रहे किसी “Coalition partners” का भी ज़िक्र तीन दिन पहले तक नहीं था।
लेकिन उनका जो ताज़ा पैम्फलेट ईमेल के साथ हमें मिला, उसमें तो नए ही डिटेल्स थे।
पुराने पैम्फलेट में कोई “Coalition partners” नहीं थे, तो नए वाले में इनकी भीड़ इकठ्ठा हो गई! ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि क्या यह लक्ज़री बसें इन्हीं “Coalition partners” की तो नहीं हैं? कहीं यही “Coalition partners” तो वे ‘उदारमना दानदाता’ नहीं हैं, जिनकी पहचान किन्हीं कारणों से प्रदर्शन में हिस्सा लेने आ रहे लोगों को नहीं बताई जा रही है?
पाकिस्तान कनेक्शन, वो भी खालिस इमरान खान वाला
इन “Coalition partners” की खोजबीन में सबसे पहला कनेक्शन जो निकल कर सामने आता है, वह है दुनिया के सबसे क्रूर, जिहादी, मानवाधिकार के भक्षक देशों में से एक पाकिस्तान का है। कुछ मामलों में तो यह कनेक्शन भी भी सेना की गोद में बैठे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी PTI से सीधा-सीधा निकलता है।
HKSCA
HKSCA का पूरा मतलब है ‘Houston-Karachi Sister City Association’. इस संस्था का घोषित लक्ष्य ह्यूस्टन में कराची की पैठ और प्रभाव बढ़ाना है।
PAGH
Pakistan Association of Greater Houston (PAGH) ने एक गैर-लाभकारी सामाजिक संगठन के रूप में रजिस्ट्रेशन करवाया हुआ है, और ह्यूस्टन और उसके आसपास के पाकिस्तानी कनेक्शन रखने वाले अमेरिकियों के लिए सामाजिक, मज़हबी आदि प्रकार के जलसे करने के लिए फंडिंग का इंतज़ाम करना इसका लक्ष्य है। यह किसी राजनीतिक पार्टी से तार जुड़े न होने का दावा करती है।
PTI भी है “Coalition partners”
इस पूरे कुचक्र के “Coalition partners” में सीधे-सीधे इमरान ‘तालिबान’ खान की पाकिस्तान में सत्तारूढ़ पार्टी PTI की अमेरिकी शाखा भी है।
‘Secular’ नाम, जिहादी काम
‘Sound Vision’, ‘Emgage’, ‘CAIR’ जैसे ‘सेक्युलर’ और ‘नॉर्मल’ नाम वाले भी कई संगठन इसके “Coalition partners” हैं। इनके नाम भले जितने भी ‘नॉर्मल’ हों, यह सभी संगठन ऊपर उल्लिखित HKSCA, PAGH, PTI USA LLC जैसे ही खतरनाक संगठन हैं।
कश्मीर प्रोपेगंडा है Sound Vision का विज़न
Sound Vision नाम रख कर इस्लामिस्ट और कश्मीरी प्रोपेगंडा फैलाने वाली इस वेबसाइट का एक प्रोजेक्ट है FreeKashmir.org.
बिना एक नए पैसे के सबूत के हिंदुस्तान के कश्मीर पर अत्याचारों की झूठी कहानी सुनाना ही इस वेबसाइट का कामधंधा लगता है। साथ ही Sound Vision की जड़ें खुले तौर पर इस्लामी हैं, और मकसद केवल समुदाय विशेष, और खासकर कि उनके युवाओं, के हितों को ही आगे बढ़ाने के लिए दूसरे धर्म वालों के साथ ‘आपसी समझदारी’ को बढ़ावा देना है। और अब चूँकि निष्ठा ही इस्लाम और इस्लामी उम्मत के प्रति है, इसलिए कश्मीर भी उनके लिए इस्लामीकरण करने के लिए ही ज़रूरी है। यह पाकिस्तान की ही लाइन है, जिसमें वह भी कश्मीर का मतलब केवल कश्मीर के इस्लाम समर्थकों को ही मानता है।
Emgage के लिए समुदाय विशेष से होने का मतलब हिंदुस्तान से नफ़रत
Emgage भी ‘नॉर्मल’ नाम की आड़ में केवल समुदाय विशेष के ही हितों की चिंता करने वाली संस्था है। यही नहीं, वह हिंदुस्तान के ख़िलाफ़ प्रोपेगंडा भी करती है- जिसका हिस्सा एक ओर हिंदुस्तानी कथित अल्पसंख्यकों (जिनके लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि देश के संसाधनों पर उनका पहला हक़ है) की तुलना चीन में उइगरों के साथ सच में हो रहे मानवाधिकारों के हनन के शमिल है, और दूसरी ओर Emgage साम्प्रदायिक तनाव को ‘Xenophobia’ (बाहरी नस्लों से मूलनिवासियों की नफ़रत) बताकर खुद ही यह नैरेटिव चलाने की कोशिश करती है कि मजहब विशेष की पहली निष्ठा हिंदुस्तान नहीं होना चाहिए, क्योंकि वे यहाँ ‘बाहरी नस्ल’ हैं।
With a combined population of over 221 million Muslims, India and China’s Muslims are being targeted and human rights violations are occuring.
— Emgage Action (@EmgageAction) September 13, 2019
Millions are under threat by the forces of bigotry and xenophobia. The world, still, remains quit. https://t.co/583ND7yyh8
We are seeing this trend from India to Europe and right here at home. Only through our unanimous rejection of these voices can we defeat them and protect our cherished freedoms and values.” – Emgage CEO @WaelAlzayat
— Emgage Action (@EmgageAction) September 6, 2019
यह Emgage कितनी कट्टरपंथी संस्था है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसका सीईओ वैल एन अल्ज़ायत लिंडा सारसोर जैसे नफ़रती इस्लामियों का समर्थक है। और लिंडा सारसोर का इतिहास यह है कि वे इस्लाम में सुधार लाने और उससे कट्टरपंथ निकालने की बात करने वाली अयान हिरसी अली को औरत होने लायक नहीं समझतीं।
9/11 की आरोपित रही है CAIR
मोदी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन के अगले “Coalition partner” का नाम है CAIR (Council of American Islamic Relations)। इस पर एक समय न केवल 9/11 में सहायक होने का शक था, बल्कि उससे किसी तरह बच निकलने के बाद भी आज तक किसी-न-किसी इस्लामी कट्टरपंथी के साथ हर समय इसके तार निकल ही आते हैं। Investigativeproject.org नामक एक खोजी पत्रकारिता करने वाले संगठन में अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया था कि CAIR के संस्थापकों के तार ऐसी संस्थाओं से जुड़े हैं जिन्हें अदालतों ने जिहादी संगठन हमास का समर्थक माना था। यही नहीं, CAIR को कट्टरपंथी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड ने अपने अमेरिकी ‘नेटवर्क’ में शामिल बताया था।
यह संस्था अमेरिका की जिहादियों के खिलाफ कार्रवाई पर पलीता लगाने की कोशिश करने के लिए जाना जाता है। अमेरिकी सांसद इल्हान उमर ने इसी के मंच से 9/11 के जिहादी हमले को “कुछ लोगों ने कुछ-कुछ किया” बताकर हल्का करने की कोशिश की थी।
खालिस्तानी भी नहीं हैं पीछे
जुलाई, 2019 में हिंदुस्तान की सरकार ने Sikhs for Justice (SFJ) को आतंकी संगठन घोषित कर दिया था, क्योंकि वह पंजाब को खालिस्तान बनाने के लिए अगले साल (2020) में जनमत संग्रह की माँग करती है।
यह संगठन फ़िलहाल ब्रिटेन में बैठकर अपनी आतंक्की गतिविधियों को अंजाम देता है, और इसपर ISI के इशारों पर चलने का आरोप है। इसके ‘कानूनी सलाहकार’ गुरपतवंत सिंह पन्नूँ को WhatsApp तक पर प्रतिबंधित कर दिया गया है। पिछले सितंबर में हुई इस घटना के बाद उसने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह को धमकी भरा एक वीडियो भी इंटरनेट पर अपलोड किया था। इसके अलावा खालिस्तानियों की पाकिस्तानी साठगाँठ इस बात से भी दिखती है कि एक कनाडाई खालिस्तानी संगठन ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और सेना प्रमुख जनरल बाजवा को सम्मानित किया था।
ऊपर दिए गए मोदी-विरोधी प्रदर्शन के पैम्फलेट में SFJ नहीं, बल्कि पन्नूँ को सीधे-सीधे नाम लेकर आयोजक के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है।
यही नहीं, मज़े की बात यह है कि अपने नागरिक अधिकारों का दुरुपयोग कर दो कश्मीरी अमेरिकियों ने ‘Kashmir Khalistan Referendum Front’ नामक संगठन की आड़ सिविल शिकायत दाखिल कर मोदी को ‘समन’ भिजवा दिया ह्यूस्टन के सिटी कोर्ट का। गुप्तचर एजेंसियों का मानना है कि इस हरकत के पीछे भी SFJ ही है।
झूठी हाइप की कोशिश
इसके अलावा अपने कार्यक्रम में ‘वजन’ डालने के लिए ऐसे लोगों और समूहों का नाम भी “Coalition partners” में शामिल किया गया है, जिनकी ज़मीनी तो छोड़िए, इंटरनेट पर भी इस कार्यक्रम के बाहर मौजूदगी नहीं है। जैसे यह ‘Stop Nazi Modi’. सारे सबूत इसी तरफ इशारा कर रहे हैं कि इस कार्यक्रम के “Coalition partners” की भीड़ बढ़ाने के लिए इसे ईजाद किया गया है, और इसके बाहर इस समूह का कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। इसके बारे में इंटरनेट पर सर्च करने पर मोदी की ह्यूस्टन रैली के विरोध का ही एक निमंत्रण मिलता है।
यानि इस सभी सबूतों की बिना पर इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि जिहादियों और खालिस्तानियों की ‘कोटरी’ के बाहर इस विरोध प्रदर्शन को लेकर प्रतिक्रिया बेहद ठंडी है। ऐसे में ‘हवा’ बनाए रखने के लिए जिहादी और खालिस्तानी एक तरफ़ अपनी आतंकी मानसिकता के अधिक-से-अधिक लोगों को ही जुटा कर उसे आम हिन्दुस्तानियों और भारतवंशियों के मोदी-विरोध के रूप में दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, और दूसरी ओर अपने असली आयोजकों, असली ‘उदारमना दानदाताओं’ का नाम उजागर करने से बचने के लिए ‘Stop Nazi Modi’ जैसे फ़र्ज़ी समूह भी बना रहे हैं।