पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम फजल के प्रमुख मौलाना फजलुर्रहमान के नेतृत्व में आजादी मार्च में शामिल प्रदर्शनकारी उनके इस्तीफे पर अड़े हुए है। इस मुश्किल वक्त में उस सेना ने भी उनका साथ छोड़ दिया है जिसकी वे कठपुतली माने जाते हैं। पाकिस्तानी सेना ने बुधवार (6 नवंबर) को कहा कि इस संकट से सरकार को उबारने के लिए वह मध्यस्थता नहीं करेगी। सेना ने साफ शब्दों में कहा है कि आज़ादी मार्च एक राजनीतिक गतिविधि है और सेना का इससे कोई लेना-देना नहीं है।
डॉन की ख़बर के अनुसार, सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल आसिफ गफूर ने एक निजी चैनल से कहा कि सेना प्रमुख जनरल क़मर जावेद बाजवा ने पहले ही राजनीतिक नेताओं को एक प्रणाली तैयार करने और एक ऐसा माहौल बनाने का प्रस्ताव दिया था जो चुनावों में सेना की भूमिका को समाप्त कर सके।
राजनीति और चुनाव में सेना के हस्तक्षेप को लेकर उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना ने हमेशा कानून और संविधान के मुताबिक, लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों का समर्थन किया है। हमारी जिम्मेदारियॉं हमें किसी भी तरह की राजनीतिक गतिविधि में शामिल होने की अनुमति नहीं देते हैं। गौरतलब है कि पाकिस्तान के विपक्षी दलों ने सेना की बढ़ती भूमिका पर चिंता जताई है। उनका आरोप है कि सेना और ख़ुफ़िया एजेंसियों ने बीते साल चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित किया था।
मेजर जनरल गफूर ने कहा कि सेना चुनावों में तभी सम्मिलित होती है जब सरकार द्वारा संविधान के तहत सहायता के लिए अपेक्षित हो। उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं है कि संविधान हमें कोई भूमिका देता है या हमें इसकी ज़रूरत है। यह हमेशा सरकार का निर्णय होता है। अन्य पार्टियों का भी इनपुट है। सेना की इस मामले में कोई भूमिका नहीं है।”
सैन्य प्रवक्ता ने JUI-F सिट-इन द्वारा बनाई गई राजनीतिक स्थिति को परिभाषित करने में सेना की किसी भी भूमिका को उन्होंने ख़ारिज कर दिया। उन्होंने कहा, “Sit-in एक राजनीतिक गतिविधि है। एक संस्था के रूप में सेना की न तो उसमें कोई भूमिका है और न ही अतीत में होगी…यह मामले से निपटने के लिए सरकार और विपक्ष के लिए है। यह उनका डोमेन और उनका काम है। ”
सेना ने आजादी मार्च को समाप्त करने में रूचि दिखाने से ऐसे वक्त में इनकार किया है जब इमरान के तख्तापलट को लेकर अटकलें लगाई जा रही है। हाल ही में संडे गार्डियन की रिपोर्ट में बताया गया था कि पाकिस्तानी सेना अब इमरान ख़ान की जगह पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के प्रमुख बिलावल भुट्टो जरदारी को देश का प्रधानमंत्री बनाने की योजना पर काम कर रही है।
ऐसा देखा जा रहा है कि हर परिस्थिति में पाकिस्तान का साथ देने वाला चीन का भी इमरान खान पर से भरोसा हटता जा रहा है। इमरान के इस्तीफे की माँग को लेकर कराची से इस्लामाबाद तक होने वाले ‘आजादी मार्च’ से भी यह साफ हो रहा है कि इमरान खान अब सभी तरफ से (मतलब जनता भी त्रस्त है, वो जिन्होंने उन्हें पीएम की कुर्सी तक पहुँचाया) अपना समर्थन खो रहे हैं।