Saturday, November 16, 2024
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PM मोदी को मिला मिस्र का सर्वोच्च राजकीय सम्मान: राष्ट्रपति अब्देल फतह ने ‘ऑर्डर ऑफ द नील’ से किया सम्मानित, जानें क्या है इसकी खासियत

इस पेंडेंट को फैरोनिक शैली के फूलों तथा फ़िरोज़ा और रूबी रत्नों से सजाया जाता है। पेंडेंट के बीच में, नील नदी को दर्शाने वाला एक उभरा हुआ प्रतीक बना होता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिस्र के सर्वोच्च राजकीय सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ द नील’ से सम्मानित किया गया। मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी ने उन्हें इस सम्मान से नवाजा। इससे पहले पीएम मोदी ने राजधानी काहिरा में बनी हजार साल पुरानी अल-हकीम मस्जिद का दौरा किया था।

क्या है ‘ऑर्डर ऑफ द नील’

‘ऑर्डर ऑफ द नील’ सम्मान की स्थापना साल 1915 में मिस्र के सुल्तान हुसैन कामेल ने की थी। यह सम्मान मिस्र के लिए उपयोगी सेवा प्रदान करने वाले व्यक्तियों को दिया जाता है। साल 1953 में राजशाही समाप्त होने से पहले भी यह सम्मान सबसे बड़े सम्मानों में से एक था। इसके बाद साल 1953 में मिस्र के गणतंत्र बनने के बाद ‘ऑर्डर ऑफ द नील’ को मिस्र के सर्वोच्च राजकीय सम्मान के रूप में दिया जाने लगा।

‘ऑर्डर ऑफ द नील’ शुद्ध सोने से बना एक हेक्सागोनल पेंडेंट होता है। इसमें सोने के तीन वर्गाकार ग्रुप होते हैं। इन ग्रुप्स पर फैरोनिक के प्रतीक गढ़े होते हैं। पहले ग्रुप में बुराइयों के खिलाफ राज्य की रक्षा करने का संदेश होता है। दूसरा ग्रुप नील नदी द्वारा लाई गई समृद्धि और खुशी का संदेश देता है। वहीं तीसरा ग्रुप धनार्जन और शांति का संदेश देता है। इस पेंडेंट को फैरोनिक शैली के फूलों तथा फ़िरोज़ा और रूबी रत्नों से सजाया जाता है। पेंडेंट के बीच में, नील नदी को दर्शाने वाला एक उभरा हुआ प्रतीक बना होता है।

मिस्र की दो दिवसीय यात्रा पर गए प्रधानमंत्री जब अल-हकीम मस्जिद गए तो वहाँ बोहरा समुदाय के लोग पहले से ही उपस्थित है। बोहरा समुदाय के लोग इस मस्जिद का जीर्णोद्धार करा रहे हैं और इसके साथ ही इसके रख-रखाव का जिम्मा भी इन्हीं लोगों पर है। भारत से भी इस मस्जिद के लिए बहुत मदद मिलती है।

11वीं सदी में बने अल-हकीम मस्जिद में लोगों के साथ बातचीत और गले मिलते हुए पीएम मोदी का वीडियो सामने आया है। इसमें प्रधानमंत्री मुस्कुराते नजर आ रहे हैं। इस दौरान बोहरा समुदाय के लोगों ने उन्हें मस्जिद की तस्वीर भी उपहार में दिया।

काहिरा स्थित इस ऐतिहासिक मस्जिद का नाम 16वें फातिमिद खलीफा अल-हकीम (985-1021) के नाम पर रखा गया है। मस्जिद का निर्माण मूल रूप से अल-हकीम के पिता खलीफा अल-अजीज ने 10वीं शताब्दी के अंत में शुरू कराया था, जिसे 1013 में पूरा किया गया था।

हेलियोपोलिस वॉर मेमोरियल

पीएम नरेंद्र मोदी हेलियोपोलिस वॉर मेमोरियल जाकर वीरगति प्राप्त किए लगभग 4000 भारती जवानों को श्रद्धांजलि दी। हेलियोपोलिस कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव सीमेटरी (पोर्ट ट्वेफिक) उन भारतीय जवानों की याद में बनाया गया है, जिन्होंने पहले विश्व युद्ध के दौरान मिस्र और फिलिस्तीन में मित्र देशों की सेनाओं की तरफ से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे।

बताते चलें कि 1914 से 1919 से चले प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटेन ने 11 लाख भारतीय जवानों को लड़ने के लिए भेजा था। इनमें से 74,000 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे। इन भारतीय जवानों को फ्रांस, ग्रीस, उत्तरी अफ्रिका, मिस्र, फिलिस्तीन और ईराक में दफना दिया गया था। इसके अलावा 70,000 भारतीय जवान अपाहिज होकर वापस लौटे थे।

इस युद्ध में भारतीय जवानों को 9,200 से अधिक वीरता पुरस्कार मिले थे, जिनमें ब्रिटिश सेना का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार विक्टोरिया क्रॉस भी शामिल थे। इस युद्ध ने उत्कृष्ट पराक्रम दिखाने के लिए 11 भारतीयों को विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था। इन जवानों को ब्रिटिश सेना की तरफ से महज 15 रुपए महीना वेतन मिलता था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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