Sunday, November 17, 2024
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घाटी में घुसपैठ के लिए पाकिस्तान सरकार और सेना ने रचा था षड्यंत्र: पूर्व पाक मेजर जनरल ने ‘रेडर्स इन कश्मीर’ में किया खुलासा

किताब के लेखक मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अकबर खान ने एक बात स्वीकार की है कि घाटी में पैदा हुए विवाद में सीमा पार मुल्क पाकिस्तान की अहम भूमिका थी। किताब में कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की सरकार और सेना के नकारात्मक और भयावह रवैये का विस्तार से उल्लेख था, आखिर कैसे लाहौर और पिंडी में पूरा षड्यंत्र रचा गया था।

“26 अक्टूबर (1947) को, पाकिस्तानी सेना ने बारामुला पर कब्जा कर लिया था, जहाँ 14,000 में से केवल 3,000 ही बच गए थे। सेना अब श्रीनगर से केवल 35 मील की दूरी पर थी जब महाराजा (हरि सिंह) ने अधिग्रहण के कागजात दिल्ली भेजकर मदद माँगी।” यह उस किताब ‘रेडर्स इन कश्मीर’ (Raiders in Kashmir) का अंश है जिसमें पाकिस्तानी सरकार को उसके ही अपने पूर्व मेजर जनरल ने अकबर खान ने बेनकाब किया है।

हाल ही में प्रकाशित ‘रेडर्स इन कश्मीर’ (Raiders in Kashmir) किताब का विमोचन जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान द्वारा आयोजित किए गए ऑपरेशन गुलमर्ग के दशकों बाद किया गया था। किताब के लेखक मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अकबर खान ने एक बात स्वीकार की है कि घाटी में पैदा हुए विवाद में सीमा पार मुल्क पाकिस्तान की अहम भूमिका थी। किताब में कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की सरकार और सेना के नकारात्मक और भयावह रवैये का विस्तार से उल्लेख था, आखिर कैसे लाहौर और पिंडी में पूरा षड्यंत्र रचा गया था।

लाहौर में रची गई पूरी साज़िश  

अकबर खान अपनी किताब में लिखते हैं, “26 अक्टूबर (1947) को पाकिस्तानी सेना ने बारामूला पर कब्ज़ा कर लिया था, जहाँ 14 हज़ार लोगों में से सिर्फ़ 3 हज़ार लोग बचे थे। पाकिस्तान सेना श्रीनगर से सिर्फ 35 मील की दूरी पर मौजूद थी जब महाराजा (हरि सिंह) ने मदद के लिए अधिग्रहण के दस्तावेज़ दिल्ली भेजे थे।” 

लेखक ने किताब में लिखा कि मुस्लिम लीग (सत्ताधारी दल) के तत्कालीन नेता मियाँ इफ्तिकारुद्दीन ने साल 1947 के सितंबर महीने की शुरुआत में उनसे एक हैरान करने वाली बात कही। उन्होंने जम्मू कश्मीर पर कब्ज़ा करने की योजना के बारे में विस्तृत जानकारी माँगी।         

घाटी में थी सशस्त्र आन्दोलन की तैयारी 

इसके बाद अकबर खान ने लिखा, “आखिरकार मैंने एक योजना तैयार की थी जिसका शीर्षक था, ‘कश्मीर में सशस्त्र आन्दोलन’ (Armed revolt in kashmir)। धीरे-धीरे हमें एक बात समझ आई कि हमारी (पाकिस्तान) तरफ से किया जाने वाला सार्वजनिक हस्तक्षेप आलोचना का शिकार होगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए हमने कश्मीरियों में अलगाव की भावना पैदा करके उन्हें मज़बूत करने का प्रयास किया। इसके अलावा हमें इस बात का भी ध्यान रखना था कि जिस वक्त यह सब चल रहा हो उस वक्त भारत की तरफ से कोई सैन्य मदद नहीं आने पाए।” 

पाकिस्तानी सरकार और सेना की रही भूमिका 

इसके बाद अकबर खान ने घाटी में बने भयावह हालातों में पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व की भूमिका के भी पुख्ता सबूत दिए। घाटी के हालातों के लिए पाकिस्तानी शीर्ष नेतृत्व को ज़िम्मेदार ठहराते हुए अकबर खान लिखते हैं, “मुझे लाहौर में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ बैठक में  शामिल होने के लिए बुलाया गया था। वहाँ पहुँचने पर पहले मुझे प्रांतीय सरकारी सचिवालय (Provincial Government Secretariat) के सरदार शौकत हयात खान (पंजाब सरकार में तत्कालीन मंत्री) के दफ्तर में होने वाली शुरूआती बैठक का हिस्सा बनना था।” 

वहाँ मैंने कुछ लोगों के हाथ में प्रस्तावित योजना देखी, जिसके मुताबिक़, “22 अक्टूबर को पाकिस्तानी सेना द्वारा सीमा पार करने पर योजना की शुरुआत हो गई। इसके बाद 24 अक्टूबर को मुज़फ्फराबाद और डोमल पर हमला किया गया जहाँ से डोगरा टुकड़ी को वापस जाना था। अगले दिन यह टुकड़ी श्रीनगर सड़क की तरफ आगे बढ़ी और उरी स्थित डोगरा पर कब्ज़ा कर लिया। 27 अक्टूबर को भारतीय सेना वहाँ पहुँची।”  

पाकिस्तान के कई बड़े नेता हुए थे शामिल 

नतीजा यह निकला कि 27 अक्टूबर की शाम पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने भारतीय सेना के हस्तक्षेप करने के बाद लाहौर में बैठक बुलाई। यह बैठक पूर्णतः अनाधिकारिक थी, इस बैठक में कई अहम लोगों को बुलावा भेजा गया था। जिसमें इस्कंदर मिर्ज़ा (तत्कालीन रक्षा सचिव, बाद में गवर्नर जनरल), चौधरी मोहम्मद अली (तत्कालीन सेक्रेटरी जनरल, बाद में प्रधानमंत्री), अब्दुल कयूम खान (तत्कालीन मुख्यमंत्री फ्रंटियर प्रोविंस) और नवाब ममदोत (तत्कालीन मुख्यमंत्री पंजाब) इसके अलावा अकबर खान और ब्रिगेडियर स्लियर खान को बुलाया गया था। 

लश्कर भी हुए षड्यंत्र में शामिल

अपनी किताब के अंतिम हिस्से में अकबर खान लिखते हैं, “मैंने प्रस्ताव दिया कि जम्मू कश्मीर को ख़त्म करने के लिए हमें रास्तों को पूरी तरह बंद करना होगा, जिससे भारत की तरफ से जम्मू कश्मीर को मिलने वाले हर तरह की मदद रोकी जा सके। मैंने ऐसा नहीं कहा था कि इस काम के लिए सेना का इस्तेमाल किया जाए और खुद सरकार इसमें शामिल हो। मेरा सिर्फ इतना कहना था कि इस काम के लिए सिर्फ स्थानीय और आदिवासी लोग आगे आएँ। इसमें लश्कर का भी उपयोग किया जा सकता है।” यानी अकबर खान के अनुसार पाकिस्तान सेना ने स्थानीय लोगों के साथ मिल कर घाटी के कई इलाकों में घुसपैठ और आक्रमण किया। 

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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