पिछले 2 महीने से लापता पाकिस्तान के निर्वासित पत्रकार साजिद हुसैन (Sajid Hussain) की लाश स्वीडन के उप्साला (Uppsala) शहर की फाइरिस नदी में मिला है। यह सूचना स्वीडन पुलिस ने जारी की है। साजिद हुसैन बलूचिस्तान में पाकिस्तान की ओर से किए जा रहे मानवाधिकार उल्लंघनों पर बेबाकी से लिखते थे। वे पाकिस्तान सरकार की ज्यादतियों के खिलाफ लगातार आवाज उठाते रहते थे और उन्होंने स्वीडन में शरण ले रखी थी।
साजिद हुसैन पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के मूल निवासी थे और वहाँ सरकार की ओर से होने वाली ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाते थे। साजिद हुसैन की हत्या में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के शामिल होने का शक जताया जा रहा है। साजिद हुसैन की मौत की खबर पहले बलूचिस्तान टाइम्स द्वारा पब्लिश की गई जिस न्यूयॉर्क टाइम्स के पत्रकार द्वारा कन्फर्म किया गया।
Disturbing news from Sweden. Sajid Husain, chronicler of human rights abuses in Baluchistan, has been found dead, weeks after his unexplained disappearance. https://t.co/M6dLYciMcx
— Declan Walsh (@declanwalsh) May 1, 2020
स्टॉकहोम से लगभग 60 किलोमीटर उत्तर में उप्साला में साजिद हुसैन एक प्रोफेसर के तौर पर अंशकालिक सेवाएँ दे रहे थे। वह बलूचिस्तान टाइम्स के मुख्य संपादक भी थे। साजिद हुसैन ने एक ऑनलाइन मैगजीन शुरू की थी जिसमें वे नशा, तस्करी और जबरन लापता करने जैसे अपराधों और बलूचों के उत्पीड़न जैसे मुद्दों पर प्रमुखता से लिखते थे।
साजिद ने 2012 में ही पाकिस्तान छोड़ दिया था। इसके बाद वह ओमान, यूएई, युगांडा जैसे देशों से होते हुए स्वीडन में 2017 से रह रहे थे। पाकिस्तान छोड़ने के पीछे कारण यह था कि वह लगातार पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई के निशाने पर थे। साजिद को आखिरी बार स्टॉकहोम से उप्साला के लिए ट्रेन से जाते हुए देखा गया था।
बलूचिस्तान (HRCB) की मानवाधिकार परिषद के अनुसार, “हुसैन स्टॉकहोम में रह रहे थे और अपने काम और पढ़ाई की वजह से उन्होंने 2 मार्च को उप्साला में निजी छात्र आवास में जाने का फैसला किया। उप्साला पहुँचने के बाद वह दोपहर 2 बजे तक अपने दोस्तों के संपर्क में रहे, उसके बाद उसका फोन बंद हो गया, जिस कारण वह अपने परिवार और दोस्तों के सम्पर्क में नहीं थे।”
साजिद हुसैन के रहस्यमय ढंग से गायब होने के बाद, उनके शुभचिंतकों द्वारा उनके ठिकाने की पहचान के लिए एक सोशल मीडिया अभियान चलाया गया था। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (सीपीजे), रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) जैसे समूहों ने स्वीडिश अधिकारियों से आग्रह किया कि वे उनका पता लगाएँ। RSF के बयान में विदेशों में रहने वाले पत्रकारों को निशाना बनाने में पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों की भागीदारी पर भी प्रकाश डाला गया था।