प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और MBS के नाम से प्रसिद्ध सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बीच दो पक्षीय वार्ता हुई। इस वार्ता को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुशी जाहिर की है। इसके बाद पाकिस्तान को जैसे मिर्ची लग गई। पाकिस्तान के अखबारों ने इस मुलाकात को लेकर अपनी भड़ास निकाली है।
दरअसल, तरफ जी-20 से हटकर भारत और सऊदी अरब के प्रमुखों ने सोमवार (11 सितंबर) को नई दिल्ली में द्विपक्षीय बैठक की। इस दौरान 8 समझौते पर दस्तखत किए गए। प्रिंस सलमान ने भारत को शानदार बाजार निवेश के लिए पसंदीदा जगह बताया।
इतना ही नहीं, दोनों देशों ने अपने संयुक्त बयान में वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ कमर कसने का भी ऐलान किया है। दोनों देशों के रिश्तों की इस गर्माहट और आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई पर पड़ोसी देश पाकिस्तान बौखला गया है। पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान ही भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए जिम्मेवार है।
पाकिस्तान ने सऊदी को दी नैतिकता की दुहाई
पाकिस्तान के अखबार डॉन ने जी-20 पर लिखे अपनी संपादकीय में भड़ास निकाली है। इसमें लिखा गया है कि यूरोपीय संघ के साथ दुनिया की 19 शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं के समूह ने अफ्रीकी संघ को स्वीकार कर लिया, जबकि शी जिनपिंग की गैर-मौजूदगी साफ थी। इससे मेजबान देश के साथ-साथ ब्लॉक के पश्चिमी सदस्यों को एक अस्पष्ट संदेश भेजा गया। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी इससे दूर रहे।
डॉन (Dawn) वही अखबार है, जिसे पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना ने अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के मुखपत्र के तौर पर स्थापित करने के लक्ष्य के साथ निकाला था। आज से 81 साल पहले दिल्ली में 26 अक्टूबर 1941 को यह अखबार लॉन्च किया गया था। अब ये पाकिस्तान के इरादों के मुखपत्र की तरह काम कर रहा है। जी-20 पर लिखे इसके संपादकीय में इसकी स्पष्ट छाप दिखती है।
सऊदी को तंज कसते हुए इसमें लिखा गया है, “पाकिस्तान को यह भी महसूस करना चाहिए कि कश्मीर में भारत के क्रूर मानवाधिकार रिकॉर्ड के बावजूद, पश्चिमी देशों के साथ-साथ हमारे मुस्लिम भाई भी कम फिक्रमंद हैं और दिल्ली के साथ व्यापार करने के लिए उत्सुक हैं। दुखद वास्तविकता यह है कि अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में आर्थिक प्रभुत्व नैतिकता पर हावी हो जाता है।” पाकिस्तान इतना चिढ़ा हुआ है कि बार-बार कश्मीर के मुद्दे पर अनैतिकता का रवैया अपनाने के बावजूद वो सऊदी के प्रिंस को नैतिकता की दुहाई देने से बाज नहीं आ रहा है।
डॉन आगे लिखता है, “आधिकारिक घोषणा में बल के प्रयोग और किसी भी राज्य की क्षेत्रीय संप्रभुता के उल्लंघन की निंदा की गई, लेकिन इस शिखर सम्मेलन में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की साफ तरह से आलोचना नहीं की गई। जबकि कथित तौर पर समूह के सदस्यों के बीच व्यापक भू-राजनीतिक मतभेदों को पाटने के लिए एक समझौता समाधान निकाला गया था।”
हालाँकि अपने संपादकीय में उसने ये भी लिखा है, “जहाँ तक पाकिस्तान का सवाल है, हमारे आंतरिक मुद्दों की वजह से हम इन अंतरराष्ट्रीय भू-आर्थिक नेटवर्क में सक्रिय खिलाड़ियों के बजाय बड़े पैमाने पर दर्शक हैं। इसलिए, अगर हम इस वैश्विक व्यापार नेटवर्क का हिस्सा बनना चाहते हैं और अगर हम चाहते हैं कि कश्मीर जैसे मुद्दों पर हमारी आवाज़ सुनी जाए तो हमें पहले अपनी आंतरिक कमियों को दूर करना होगा।”
आईएमईईसी पर भी निकाली कोफ्त
पीएम नरेंद्र मोदी ने शनिवार (9 सितंबर 2023) को दिल्ली में ‘इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर’ (IMEEC) लॉन्च किया। इस परियोजना में अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ-साथ सऊदी अरब की भी महत्वपूर्ण भूमिका है।
ये इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर एक प्रस्तावित व्यापार और निवेश गलियारा है, जो भारत को मिडिल ईस्ट और यूरोप को रेल नेटवर्क से जोड़ेगा। इसके बाद उन्हें भारत से एक शिपिंग रूट के माध्यम से लिंक किया जाएगा। इस प्रोजेक्ट में अंतरमहाद्वीपीय परिवहन, ऊर्जा और डेटा लिंकेज शामिल हैं।
इसे चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की काट माना जा रहा है। माना जा रहा है कि IMEEC नए व्यापार और निवेश के अवसर पैदा करेगा। इसके साथ ही कनेक्टिविटी में सुधार होने से आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
ये आर्थिक गलियारा भारत की चीन पर निर्भरता को कम करेगा। इससे चीन की सिल्क रोड की अहमियत कम हो जाएगी और भारत से सऊदी अरब-तुर्की होते हुए यूरोप तक सीधे माल की आवाजाही हो पाएगी।
इसे लेकर डॉन लिखता है कि एक और बड़ी घोषणा भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे की शुरुआत थी। ये एक विशाल योजना है, जिसे आधुनिक ‘स्पाइस रूट’ के तौर पर बताया जा है। इससे अरब प्रायद्वीप के जरिए भारत को यूरोप से जोड़ने के लिए डिज़ाइन किया गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसे ‘वास्तविक बड़ा सौदा’ करार दिया है।
ऐसा लगता है कि G20 के साथ ही G7 खुद को पश्चिमी नेतृत्व वाले ओल्ड ब्वॉयज क्लब से अधिक खुद को ‘समावेशी’ संगठनों में बदलने की कोशिश कर रहे हैं, जो साउथ ग्लोबल के देशों को आमंत्रित करने के लिए तैयार हैं। ओल्ड ब्वॉयज क्लब से मतलब समान सामाजिक या शैक्षिक पृष्ठभूमि वाले अमीर लोगों के कारोबार या निजी मामलों में एक-दूसरे की मदद करने वाले सिस्टम से हैं।
साउथ ग्लोबल दुनिया के वे देश हैं, जिनके आर्थिक और औद्योगिक विकास का स्तर अपेक्षाकृत कम आँका जाता है। आमतौर पर ये अधिक औद्योगिक देशों के दक्षिण में स्थित हैं। पाकिस्तान भी ऐसे देशों में से एक है। जाहिर है कि वो खुद के लिए भी फिक्रमंद है।
डॉन आगे लिखता है कि ब्रिक्स और एससीओ के विस्तार ने इन बदली हुई प्राथमिकताओं में भूमिका निभाई होगी। यही वजह है कि अफ्रीकन यूनियन को एक भागीदार के तौर पर पेश किया गया है। भू-अर्थशास्त्र और भू-राजनीति भी इस खेल में शामिल है, जिसमें स्पाइस रूट बीआरआई और रूस के नेतृत्व वाले अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे को टारगेट कर रहा है। ‘इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर’ की मदद से भारत ‘ग्लोबल साउथ’ का नेता बनकर उभर सकता है और चीन के लिए चुनौती पेश कर सकता है।
डॉन ने आगे लिखा है कि G20 सदस्य होने के बावजूद बीजिंग को भारत और यूरोप को जोड़ने वाली नई परियोजना में शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया। यह योजना इजरायल को अरब राज्यों से जोड़ने में भी काम आएगी। दरअसल मौजूदा वक्त में भारत या उसके आसपास के देशों से सामान जहाजों के जरिए स्वेज नहर से होते हुए भूमध्य सागर पहुँचता है। इसके बाद ये जहाज यूरोपीय देशों में प्रवेश करते हैं।
वहीं अमेरिका, कनाडा और लैटिन अमेरिकी देशों तक सामान पहुँचाने के लिए जहाजों को भूमध्य सागर से होते हुए अटलांटिक महासागर जाना होता है। आईएमईईसी के पूरा होने के बाद सामान दुबई से इजरायल के हाइफा बंदरगाह तक ट्रेन से जा सकता है और उसके बाद आसानी से यूरोप में प्रवेश पा सकता है।
पीएम मोदी और सऊदी की दोस्ती से पाक को एतराज
सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान का भारत के पीएम मोदी के साथ बहुत अच्छा दोस्ताना संबंध है, जो एक-दूसरे की नीतियों में भी साफ तौर से दिखाई देता है। दरअसल पीएम बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने खाड़ी देशों के साथ रिश्तों को मज़बूत करने पर खासा जोर दिया। इसमें सऊदी अरब ने भी अहम भूमिका निभाई है।
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साल 2016 और 2019 में दो बार सऊदी अरब का दौरा कर चुके हैं। इस दौरान भारत-सऊदी अरब के बीच कई अहम मुद्दों पर रजामंदी हुई और कई समझौते हुए। वहीं, 2019 में भारत यात्रा के बाद क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान का यह दूसरा दौरा था।
सऊदी अरब मध्य-पूर्व में एक बड़ी शक्ति है। खासकर इस्लामिक देशों पर इसका बड़ा असर है। यही वजह है कि पीएम मोदी ने सऊदी अरब से नजदीकी पाकिस्तान को रास नहीं आ रही है। भारत सऊदी अरब को मध्य पूर्व में अपने सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदारों में से एक के तौर में देखता है।
दोनों देशों की रिश्तोें में गर्माहट का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दोनों देशों के बीच वर्ष 2022-2023 में व्यापार 52.8 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया। इसी तरह, सऊदी अरब ने अपने सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘ऑर्डर ऑफ अब्दुलअज़ीज़ अल सऊद’ से पीएम मोदी को नवाजा। इससे साबित होता है कि सऊदी अरब की नजर में भारत का क्या कद है।
आतंकवाद पर मिलकर कसेंगे लगाम
सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान बिन अब्दुलअज़ीज़ अल सऊद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोमवार को नई दिल्ली में वार्ता में कई अहम फैसले भी लिए गए। दोनों देशों ने 45 पैरा का संयुक्त बयान जारी किया। इसके 30वें पैरा में आतंकवाद से निपटने के लिए प्रतिबद्धता जताई गई।
इसमें कहा गया, “दोनों पक्षों ने सभी देशों से दूसरे देशों के खिलाफ आतंकवाद के इस्तेमाल को नकारने की अपील की है।” इसके अलावा आतंकवादी कामों को अंजाम देने के लिए मिसाइलों और ड्रोन सहित हथियारों तक पहुँच को रोकने की जरूरत पर जोर दिया गया।
इसके अलावा दोनों देश इस बात पर भी सहमत हुए हैं कि आतंकवाद जहाँ भी मौजूद हैं, वहाँ इसके इंफ्रास्ट्रकचर को खत्म किया जाए। इसके साथ ही आतंकवाद फैलाने वालों को कानून के दायरे में तेजी से लाकर उन्हें सजा देने की बात कही गई है।
संयुक्त बयान में दोनों देशों ने आतंकवाद से लड़ने और इसके वित्त पोषण पर लगाम लगाने के लिए के लिए सुरक्षा सहयोग बढ़ाने पर भी बल दिया। दोनों पक्षों ने माना कि आतंकवाद अपने सभी रूपों में इंसानियत के लिए सबसे गंभीर खतरा है।
दोनों देश इस बात पर भी सहमत हुए कि आतंक के किसी भी कृत्य को किसी भी तरह से न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है। दोनों ही देशों ने आतंकवाद को किसी खास नस्ल, धर्म और संस्कृति से जोड़ने की बात को खारिज किया। दोनों पक्षों ने सभी देशों से किसी भी देश के खिलाफ आतंकवाद के इस्तेमाल को खारिज करने को कहा।