Monday, November 18, 2024
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अब्दुल मजीद को आधी रात फाँसी: जानिए, हाउस नंबर 677 में कैसे गिरी थी 20 लाशें

एक नौकर शेख मुजीब को गोली लगने की खबर दौड़कर उनकी बीवी को देता है। पीछे से सैनिक भी वहॉं आ धमके और गोली चलानी शुरू कर दी। देखते-देखते सारे लोग मारे गए। तभी एक जीप आकर रुकी और उसमें से मेजर फारूक रहमान बाहर निकला। मेजर हुदा ने उसके कान में फुसफुसाकर कहा ‘सब खत्म हो गए।’

बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की हत्या में शामिल अब्दुल मजीद को फाँसी की सज़ा दे दी गई है। उसे ढाका सेंट्रल जेल में फाँसी दी गई। इंस्पेक्टर जनरल (जेल) ब्रिगेडियर जनरल एकेएम मुस्तफा कमाल पाशा ने बताया कि उसे शनिवार रात 12:10 पर लटकाया गया। उन्होंने बताया कि इस सज़ा-ए-मौत के प्रत्यक्षदर्शी के रूप में एक मजिस्ट्रेट और एक पुलिस अधिकारी उपस्थित थे। ढाका सेंट्रल जेल को केरानीगंज में स्थानांतरित किए जाने के बाद यह पहली फाँसी है।

हालाँकि, आधी रात को ही कई लोग कोरोना वायरस के कारण लगे प्रतिबंधों की अवहेलना करते हुए जेल के सामने भीड़ बनाकर इकट्ठे हो गए। अब्दुल मजीद को फाँसी से पहले उसकी पत्नी को उससे मिलवाया गया, क्योंकि यही उसकी अंतिम इच्छा थी। उसके मृत शरीर को दफनाने के लिए भोला ले जाया जाएगा। हालाँकि, छात्र लीग के नेता सहित वहाँ के दो सांसदों ने कहा है कि वे अपने एरिया में ऐसा नहीं होने देंगे। क़ानून मंत्री अनिसुल हक़ ने फाँसी की सज़ा के बाद कहा:

“हमने लोगों से वादा किया हुआ है कि हम उस सज़ा के क्रियान्वयन में देरी नहीं करेंगे, जो देश की अदालतों ने दिया है। हम फरार रहे छठे दोषी के मामले में भी ऐसा करने में सफल रहे हैं। जब तक जजमेंट को पूरी तरह अमल में नहीं हो जाता, यह जारी रहेगा।”

बंगबंधु रहमान के 5 अन्य हत्यारे भी हैं जो फ़िलहाल फरार हैं। शुक्रवार को अब्दुल मजीद के परिवार के 5 लोगों ने उससे मुलाक़ात की थी, जिसमें उसकी बीवी शामिल नहीं थी। उसे ढाका से 7 अप्रैल को गिरफ़्तार किया गया था। फ़ौज में सेवा देने के बाद विभिन्न सरकारी पदों पर रहा मजीद 20 वर्षों से फरार चल रहा था। मजीद शेख मुजीबुर रहमान के 12 हत्यारों में शामिल था। वो पाकिस्तान और भारत में डेरा जमाने से पहले लीबिया में छिपा हुआ था।

उसने 20 साल से भारत में होने की बात पूछताछ में स्वीकार की थी। बीते 4 सालों से वह कोलकाता में रह रहा था। शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश की आज़ादी के प्रमुख शिल्पकारों में से एक थे। उनकी बेटियाँ प्रधानमंत्री शेख हसीना और और शेख रेहाना उस हत्याकांड में बच गई थीं, क्योंकि ये दोनों उस समय विदेश में थीं। शेख हसीना की आवामी लीग ने सत्ता में आते ही हत्यारों को फाँसी दिए जाने की पहल शुरू कर दी थी।

अगर इस हत्याकांड की बात करें तो इसे बांग्लादेश की राजधानी ढाका के धनमंडी स्थित रोड नंबर 32 के हाउस नंबर 677 में 15 अगस्त 1975 को अंजाम दिया गया था। उस घर में एक साथ 20 लाशें गिरी थीं। इस नरसंहार से पहले 1971 में धनमंडी के इस घर को पाकिस्तानी सैनिकों ने घेर रखा था। एक परिवार करीब नौ महीने से घर में बंधक बना हुआ था। किसी भी वक्त उस परिवार के हर सदस्य मौत के घाट उतारे जा सकते थे। लेकिन एक भारतीय कर्नल ने अपने तीन जवानों के साथ मिलकर उस परिवार को सुरक्षित बाहर निकाल लिया।

बंगबंधु के साथ उनके परिवार को बचाने वाले भारतीय कर्नल थे अशोक तारा। लेकिन, 15 अगस्त 1975 को बांग्लादेश की सेना के ही कुछ बागी अफसरों ने बंगबंधु सहित उनके पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया।अशोक रैना की किताब ‘इनसाइड रॉ’ के मुताबिक आरएन काव ने उस वक्त शेख मुजीब से कहा था कि उनकी हत्या की साजिश को लेकर पुख्ता सूचनाएँ हैं और वे इससे जुड़े विवरण उन्हें भेजेंगे। मार्च 1975 में रॉ के एक शीर्ष अधिकारी ने ढाका पहुॅंच कर शेख मुजीब को इस साजिश में शामिल अधिकारियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। लेकिन, वे फिर भी नहीं माने।

सलील त्रिपाठी ने अपनी किताब ‘द कर्नल हू वुड नॉट रिपेंट’ में बताया है कि बागी अधिकारियों के अपने मिशन पर निकलने के बावजूद शेख मुजीब को अंदाजा तक नहीं था कि उनकी हत्या का मिशन शुरू हो चुका है। बांग्लादेश के सेनाध्यक्ष जनरल शफीउल्ला को सेना की दो बटालियन के बिना किसी आदेश के शेख मुजीब के घर की ओर बढ़ने की सूचना मिली।

उन्होंने शेख मुजीब को फोन मिलाया, लेकिन लाइन व्यस्त थी। बहुत कोशिशों के बाद उनका शेख मुजीब से संपर्क हुआ। शेख मुजीब गुस्से में बोले, “शफीउल्ला तोमार फोर्स आमार बाड़ी अटैक करोछे। तुमि जल्दी फोर्स पठाओ (तुम्हारे फोर्स ने मेरे घर पर हमला किया है, जल्दी सेना भेजो)।” इसी दौरान पीछे से गोलियों की आवाज सुनाई पड़ी और पूरे परिवार का सफाया हो गया।

एंथनी मैस्करेनहास अपनी किताब ‘बांग्लादेश ए लेगसी ऑफ ब्लड’ में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखते हैं, “शेख मुजीब को देखते ही मोहिउद्दीन नर्वस हो गया। उसके मुॅंह से केवल इतना ही निकला, सर आपनी आशुन (सर आप आइए)। मुजीब ने चिल्ला कर कहा-क्या चाहते हो? क्या तुम मुझे मारने आए हो? भूल जाओ। पाकिस्तान की सेना ऐसा नहीं कर पाई। तुम किस खेत की मूली हो?”

तभी स्टेनगन लिए मेजर नूर ने प्रवेश किया और मोहिउद्दीन को धक्का देते हुए पूरी स्टेनगन खाली कर दी। मुजीब मुँह के बल गिरे। उनका पसंदीदा पाइप उनके हाथ में था।

‘द कर्नल हू वुड नॉट रिपेंट’ के मुताबिक एक नौकर शेख मुजीब को गोली लगने की खबर दौड़कर उनकी बीवी को देता है। पीछे से सैनिक भी वहॉं आ धमके और गोली चलानी शुरू कर दी। देखते-देखते सारे लोग मारे गए। तभी एक जीप शेख मुजीब के घर के सामने आकर रुकी और उसमें से मेजर फारूक रहमान बाहर निकला। मेजर हुदा ने उसके कान में फुसफुसाकर कहा ‘सब खत्म हो गए।’

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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