जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री हैं फारूक अब्दुल्ला। बेटा भी मुख्यमंत्री थे। इनके अब्बा भी थे। खानदानी कह सकते हैं। देश के एक राज्य के मुख्यमंत्री (पूर्व ही सही) से मन नहीं भरा तो अब तालिबान को ले कर बोल रहे हैं। कह रहे हैं कि अफगानिस्तान में वे अच्छी सरकार चलाएँगे।
तालिबान को लेकर फारूक अब्दुल्ला ने जो कहा, उन्हीं के शब्दों में पढ़ते हैं।
“मुझे उम्मीद है कि वे (तालिबान) इस्लामी सिद्धांतों का पालन करते हुए उस देश (अफगानिस्तान) में सुशासन देंगे और मानवाधिकारों का सम्मान भी करेंगे। उन्हें हर देश के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध विकसित करने का प्रयास भी करना चाहिए।”
#WATCH | "I hope they (Taliban) will deliver good governance following Islamic principles in that country (Afghanistan) & respect human rights. They should try to develop friendly relations with every country," says National Conference chief Farooq Abdullah in Srinagar pic.twitter.com/b6hXNn2Bhr
— ANI (@ANI) September 8, 2021
अफगानिस्तान पर शासन कर रहे तालिबान को पाकिस्तान और चीन पहले ही अपना समर्थन दे चुके हैं। अब जब सरकार की घोषणा भी कर दी गई है, तो इन दोनों देशों का समर्थन तो है ही। लेकिन बाकी देश अभी फूँक-फूक कर कदम रख रहे हैं। वहाँ की परिस्थितियों को आँक रहे हैं। भारत की सरकार भी कोई जल्दबाजी में नहीं है। लेकिन कुछ नेताओं को कौन समझाए?
फारूक अब्दुल्ला ऐसे ही नेता हैं। आतंक, इस्लाम, मुस्लिम… ये सारे शब्द सुन कर बेचैन हो जाते हैं। कभी कहते हैं कि अल्लाह करे कि चीन की ताकत से अनुच्छेद 370 वापस आ जाए। कभी कहते हैं कि कश्मीरी नहीं बने रहना चाहते भारतीय। कभी इन पर गंभीर आरोप पर भी लगता है कि आतंकी के बेटे का MBBS में एडमिशन भी करवाए थे।
खैर। तालिबान पर अपनी जुबान खोलने से पहले केंद्र सरकार की राय-रवैये को पढ़ लेते तो अच्छा रहता। लेकिन पढ़ लेंगे तो “…भारत के ताबूत में आखिरी कील” वाला स्टेटमेंट कैसे दे पाएँगे?
आपको बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान ने अंतरिम सरकार का गठन कर लिया है। वहाँ के प्रधानमंत्री मुल्ला हसन अखुंद होंगे। जबकि अब्दुल गनी बरादर को वहाँ का डिप्टी पीएम बनाया गया है। वैश्विक आतंकियों की लिस्ट में मोस्ट वॉन्टेड रहे सिराजुद्दीन हक्कानी को अफगानिस्तान का गृह मंत्री बनाया गया है।