अफगानिस्तान में तालिबान आने के बाद गैर-मुस्लिमों का वहाँ से पलायन आम बात हो गई है। इसी क्रम में बीते दिनों 60 सिखों का एक समूह अपने साथ गुरु ग्रंथ साहिब लेकर भारत लौट रहा था, लेकिन रास्ते में उन्हें तालिबानियों ने रोक लिया। अब इस समूह ने पीएम मोदी से मदद की अपील की है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार गुरु ग्रंथ साहिब के साथ 60 अफगान सिखों का एक समूह बीते शनिवार (10 सितंबर 2022) को दिल्ली पहुँचने वाला था, लेकिन अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्रालय (Foreign Ministry) ने प्रोटोकॉल का हवाला देते हुए गुरु ग्रंथ साहिब को अफगानिस्तान से बाहर नहीं ले जाने दिया।
अफगान सरकार के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि अफगानिस्तान के सूचना एवं संस्कृति मंत्रालय ने गुरु ग्रंथ साहिब को देश से बाहर ले जाने पर आपत्ति जताई है। अफगानिस्तान से बाहर गुरु ग्रंथ साहिब को तब तक नहीं ले जाया जा सकता, जब तक मंत्रालय से इसे यहाँ से ले जाने की मंजूरी नहीं मिलती। इस मामले में तमाम सिखों को नियमों का पालन करने के निर्देश भी दिए गए हैं।
अब इस मामले में अमृतसर स्थित सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) के अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी ने तालिबान के इस फैसले की निंदा करते हुए तालिबान सरकार के निर्णय को सिखों के धार्मिक मामलों में सीधा हस्तक्षेप करना बताया है। हरजिंदर सिंह धामी ने इस मामले में कहा,
“अगर अफगान सरकार वास्तव में सिखों की परवाह करती है तो उसे उनके जीवन, संपत्ति और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। उन्हें पूजा स्थलों पर हमलों से परेशान नहीं करना चाहिए।”
धामी के मुताबिक अफगानिस्तान में अल्पसंख्यक बन चुके सिखों पर अत्याचार कर उन्हें अपने ही देश को छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
इसके अलावा धामी ने भारत सरकार, प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय से इस मामले में हस्तक्षेप करने और अफगानिस्तान में सिखों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की है। वहीं आईडब्ल्यूएफ के अध्यक्ष पुनीत सिंह चंडोक ने कहा, “अफगानिस्तान का संस्कृति मंत्रालय गुरु ग्रंथ साहिब को अपने देश की विरासत का ही एक भाग समझता है।”
चंडोक ने कहा, “जब हम अधिकारियों के पास पहुँचे तो उन्हें बताया गया कि उनकी यात्रा पर कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन वे गुरु ग्रंथ साहिब नहीं ले जा सकते हैं। हम अफगान शासन से अफगान सिखों को धार्मिक ग्रंथ भारत लाने की अनुमति देने और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुरूप धार्मिक स्वतंत्रता की सुविधा देने का आग्रह करते हैं।”