चीन के अत्याचारों से परेशान तिब्बत के लोग विश्व के कोने-कोने में अपनी आवाज उठा रहे हैं। इसी क्रम में यूरोप में रहने वाले तिब्बतियों ने भी इटली के मिलानो में अपनी तीसरी बैठक की है। इस बैठक में चीन द्वारा तिब्बत में लागू किए जा रहे शिक्षा तंत्र, जीरो कोविड पॉलिसी जैसे मुद्दों को उठाया गया।
बोर्डिंग स्कूल में बच्चों को डाल रहा चीन
यूरोप में बसे तिब्बतियों ने यह बैठक 1-2 अक्टूबर को की थी। प्रेस रिलीज के मुताबिक यूरोपीय देशों से आए समुदाय के तमाम प्रतिनिधि (अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव) इस बात से चिंतिंत हैं कि चीनी सरकार तिब्बत में बोर्डिंग स्कूल का सिस्टम लागू कर रही है जिसमें 4 साल से कम उम्र वाले बच्चे जबरन डाले जा रहे हैं। स्कूल में उन्हें चीनी भाषा सिखाई जा रही है और राष्ट्रवादी शिक्षा के नाम पर तिब्बती भाषा, संस्कृति और सभ्यता को मिटाया जा रहा है।
कोविड और DNA के नाम पर तिब्बतियों पर अत्याचार
बैठक में उन वीडियोज पर भी चर्चा हुई जो हाल फिलहाल में चीन से आईं। इनमें दिख रहा है कि कैसे जीरो-कोविड पॉलिसी के नाम पर तिब्बतियों को क्वारंटाइन सेंटरों में बिन टेस्ट के कैद किया गया, उन्हें सड़ा खाना दिया गया। लोग इतने तंग हो गए कि कुछ ने आत्महत्या तक की। उस रिपोर्ट पर भी चिंता जाहिर की गई जो बताती है कि 2016 से 2022 के बीच में चीन ने 10 लाख से ज्यादा तिब्बतियों के डीएनए कलेक्ट किए हैं। इनमें महिला बच्चे भी शामिल हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवाज उठाने का आह्वान
बैठक में चीन द्वारा लागू किए जा रहे शिक्षा तंत्र को रोकने के लिए, जीरो कोविड पॉलिसी के नाम पर तिब्बतियों को प्रताड़ित करने के खिलाफ, मास डीएनए कनेक्शन के खिलाफ आवाज उठाने को कहा गया।
इसके साथ ही यूरोपीय देशों की सरकारों, सांसदों और यूरोपियन संघ के साथ यूएन से अपील की गई कि वो लोग चीन को ये सब करने से रोकें। बैठक में शामिल तिब्बत समुदाय के प्रतिनिधियों ने शपथ ली कि वो तिब्बतियों के बद्तर हालातों के बारे में लोगों को बताएँगे और खासकर इन तीन मुद्दों पर तिब्बत के लिए ताकत जुटाएँगे।
बता दें कि तिब्बतियों पर चीन के अत्याचार लगातार बढ़ रहे हैं। इसी गुस्से में पिछले दिनों दिल्ली में भी उन्होंने चीन दूतावास के सामने प्रदर्शन किया था।