तुर्की में 12 वीं के छात्र-छात्राओं को ‘जिहाद’ की तालीम दी जा रही है। बच्चे-बच्चे को पढ़ाया जा रहा है कि जिहाद चाहे कैसा भी हो अल्लाह के नाम पर अगर इसे अंजाम दिया जाए तो जन्नत के रास्ते खुल जाते हैं। ये खुलासा हाल में कुछ रिपोर्ट्स के जरिए हुआ है जिनमें दावा किया गया कि तुर्की के शिक्षा मंत्रालय ने 12 वीं के सिलेबस में जिहाद के टॉपिक को एड करवा रखा है।
इन रिपोर्ट्स में बताया गया है कि तुर्की के शिक्षा मंत्रालय ने साल 2019 में 12वीं के बच्चों के लिए दो खंड की किताब प्रकाशित की थी। इस किताब का नाम ‘फंडामेंटल्स ऑफ रिलिजियस नॉलेज- इस्लाम 2’ है। इसी में एक चैप्टर है जो जिहाद की तालीम देता है।
यह कहता है, युद्ध समेत हर कार्य जो अल्लाह के नाम पर किए जाएँ वो इस जिहाद के कॉन्सेप्ट में आते हैं। इसमें बताया गया कि जिहाद को दिल से, जुबान से, हाथ से या हथियार से कैसे भी किया जा सकता है।
किताब में लिखा गया, “हमारे पूर्वज जिन्होंने शहादत को सबसे बड़ी चीज समझी और जिहाद के लिए निकल पड़े… उन्होंने यही कहा था- अगर मैं मरा तो शहीद कहलाऊँगा और बचा तो गाजी…इस तरह पूर्वज हमारे कभी भी शहीद होने से पीछे नहीं हटे।”
बता दें कि जिहाद से जुड़ी तालीम 2019 में तुर्की में 891000 छात्रों को दी गई जबकि 2020 में यही पढ़ाई 894100 छात्रों को करवाई गई। इसमें सिखाया गया।
MEMRI की रिपोर्ट से आइए समझते हैं कि किताब में जिहाद के चैप्टर में मुख्य बातें कौन सी हैं:
- इसमें सिखाया गया है कि जिहाद, इस्लाम में इबादत का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है। जिहाद में युद्ध समेत सभी कार्य आते हैं जो अल्लाह के नाम को और रौशन करने के लिए किए गए हों।
- स्कूल की किताब में उल्लेख है कि जिहाद को बढ़ावा देने की बात कुरान में भी है और इसका जिक्र पैगंबर मोहम्मद ने हदीस में भी किया है।
- जिहाद का अर्थ- किताब में अच्छाई की बुराई से लड़ाई को, सरजमीं के लिए दुश्मनों के साथ हुए युद्ध को, किसी बुरी ताकत या शैतान को हराने के लिए किए गए संघर्ष को, अपने भीतर की बुराई को खत्म के लिए की गई कोशिश को, कहा गया है। ये भी जानकारी दी गई है कि जो इसे करता है वो मुजाहिद कहलाता है।
किताब में कई जगह कुरान का हवाला देकर भी बातों को समझाने की कोशिश हुई है। इसमें कहा गया है, “असली ईमान वाले वहीं हैं जो अल्लाह तथा रसूल पर बिन संदेह यकीन करें और अल्लाह के लिए अपने प्राण और धन का प्रयोग करें।”
इसमें यह भी बताया गया कि पैगंबर मोहम्मद ने भी जिहाद की आवश्यकता को समझाया था। उन्होंने कहा था कि जो लोग अल्लाह के रास्ते पर चलते हुए, बिन लड़े मरते हैं वो पाखंडी हैं। उन्होंने जिहाद पर कहा था, कभी भी दुश्मन से मिलने की इच्छा मत रखो, अल्लाह से माफी माँगो। लेकिन अगर कभी दुश्मन से मुलाकात हो भी जाए तो धैर्य रखो और जान लो शमशीर के साए में ही जन्नत का रास्ता है।
पाठ्यक्रम में समझाया गया है कि कैसे जिहाद कयामत के दिन तक करना हर मुस्लिम के लिए जरूरी है। इसमें कहा गया है कि मुस्लिमों को अपना भूमि, मजहब, झंडा बचाना ही है। वह कभी इससे पीछे नहीं हट सकते। जिहाद इबादत का ऐसा ढंग है कि मुस्लिम इसे शहीद होने की सोचकर, अपनी जान देकर, या संपत्ति या उस ज्ञान के जरिए कर सकते हैं जो अल्लाह ने उनको दिया है। इसमें बताया गया है कि अल्लाह ने उन लोगों के लिए जन्नत के रास्ते खोले हुए हैं जो अपनी जिंदगी और संपत्ति देकर जिहाद करते हैं।