Friday, April 26, 2024
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मुस्लिम काउंसिल में शामिल हुए 150 देशों के प्रतिनिधि, बोले विशेषज्ञ – अपने देश से वफादार रहें मुस्लिम, कट्टरवादियों का करें विरोध

मोहम्मद मोख़्तार ने कहा, ''एक मुस्लिम को उस देश का सम्मान करना चाहिए, जहाँ वह रहता है, चाहे मुस्लिम बहुल देश हो या वहाँ मुस्लिम अल्पसंख्यक हों। इसके अलावा फ़तवा हालात, जगह और समय से बदलना चाहिए।"

संयुक्त अरब अमीरात में वर्ल्ड मुस्लिम कम्युनिटीज़ काउंसिल (TWMCC) के चौथे वार्षिक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस बैठक में 150 से अधिक देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए। इस सम्मेलन में इस्लामिक दुनिया की एकता को लेकर चर्चा की गई, जिसमें मुस्लिम देशों के 500 से अधिक धार्मिक, राजनीतिक, विद्वानों और समाजिक नेताओं ने हिस्सा लिया। इस बैठक की थीम- इस्लामिक एकता की अवधारणा, अवसर और चुनौतियाँ थी।

इसका आयोजन यूएई के सहिष्णुता और सह-अस्तित्व मंत्री शेख नाह्यान बिन मुबारक अल नाह्यान की अगुवाई में किया गया। ये TWMCC की ये चौथी वर्षगाँठ थी। बैठक का आयोजन आठ और नौ मई को अबू धाबी राष्ट्रीय प्रदर्शनी केंद्र में हुआ।

इस दौरान सहिष्णुता मंत्री शेख नाह्यान बिन मुबारक ने कहा कि मुस्लिम दुनिया का आधार विज्ञान होना चाहिए। उन्होंने कहा, “मैं विशेषज्ञ नहीं हूँ लेकिन इस्लाम विज्ञान और ज्ञान का मजहब है। इसलिए ये जरूरी है कि विज्ञान और शोध मुस्लिम एकता की नींव बने।”

इस दौरान मिस्र के धार्मिक मामलों से जुड़े मंत्री डॉक्टर मोहम्मद मुख़्तार गोमा ने इस बात पर जोर दिया कि मुस्लिम दुनिया दो श्रेणियों में बँटी हुई है। एक दुनिया तार्किक है जबकि दूसरी काल्पनिक जिसका दुरुपयोग चरमपंथियों और आतंकवादी कर रहे हैं।

विशेषज्ञों ने तर्क दिया कि देशभक्ति और अपने देश के प्रति वफादारी मुस्लिमों को एक झंडे के नीचे एक ‘खिलाफत’ में एकजुट करने की अवधारणा को तोड़ना चाहिए, जैसा कि विस्तारवादी, अति-हिंसक आतंकवादी समूह ISIS बनाने की माँग कर रहा है।

स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, डॉक्टर मोहम्मद मोख़्तार गोमा ने कहा, “एक मुस्लिम दुनिया की अवधारणा पर दो विचार हो सकते हैं। पहला तार्किक, जिसका प्रतिनिधित्व इस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से किया जा रहा है और दूसरा असंभव और काल्पनिक, जिसका दुरुपयोग चरमपंथियों और आतंकवादी समूह कर रहे हैं, जिनका मक़सद पूरी मुस्लिम दुनिया को एक झंडे और एक देश के अंदर लाना है।”

उन्होंने कहा, “आज के समय में, एक नवनिर्मित देश के अंदर असंभव एकता की कामना करने से ज़्यादा अपने राष्ट्र, उसकी धरती और झंडे के प्रति वफ़ादार होना ज़रूरी है। ये कोशिश एक राष्ट्र और गैर-मुस्लिम समुदायों के बीच रह रहे मुस्लिम अल्पसंख्यकों को कमज़ोर करने के लिए की जा रही है।”

उन्होंने कहा, “ये भी ज़रूरी है कि क़ुरान की आयतों को उसके उसी संदर्भ में समझा जाए, जैसे उन्हें लिखा गया है न कि जिस तरह आतंकवादी समूह अपने हित साधने के लिए उसका इस्तेमाल कर रहे हैं।”

मोहम्मद मोख़्तार ने कहा, ”एक मुस्लिम को उस देश का सम्मान करना चाहिए, जहाँ वह रहता है, चाहे मुस्लिम बहुल देश हो या वहाँ मुस्लिम अल्पसंख्यक हों। इसके अलावा फ़तवा हालात, जगह और समय से बदलना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय फोरम पर हमें समन्वय के जरिए इस्लामिक एकता दिखानी चाहिए। जो भी क़ुरान जला रहे हैं, उनका सामना हम मजबूती से करेंगे। हमारे मजहब का लोग तब तक आदर नहीं करेंगे जब तक हम अपने जीवन में सफल नहीं होंगे। हमें उन अतिवादियों से भी लड़ना होगा जो इस्लाम का गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं। यह असंभव है कि सभी देशों के मुस्लिम एक ध्वज, एक देश और शासक के अधीन हों।”

इसके अलावा उन्होंने ईशनिंदा के अपराधीकरण पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर दिया और साथ में चरमपंथी और आतंकी गुटों के खिलाफ एकजुट होने की भी अपील की। उन्होंने इस्लाम के विद्वानों और विशेषज्ञों से अपील की कि वे इन चरमपंथी समूहों की सच्चाई सबके सामने लाएँ। उन्होंने ये भी कहा कि जगह और समय के अनुसार ही फतवे जारी किए जाने चाहिए। वहीं इस काउंसिल के सेक्रेटरी जनरल मोहम्मद बेचारी ने कहा, “इस्लामी दुनिया कई हिस्सों में बँटी है और इन दूरियों को पाटने की जरूरत है।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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