Friday, November 15, 2024
Homeरिपोर्टअंतरराष्ट्रीयUS Elections 2020: आसान तरीके से समझिए अमेरिका में राष्ट्रपति चुनने की पूरी प्रक्रिया

US Elections 2020: आसान तरीके से समझिए अमेरिका में राष्ट्रपति चुनने की पूरी प्रक्रिया

एक और बड़ा अंतर यह है कि अमेरिका में वोटर सीधे राष्ट्रपति नहीं चुनते। वहाँ, वोटर अपना प्रतिनिधि चुनते हैं, जो इलेक्टर कहलाते हैं। किसी स्टेट में कितने इलेक्टर होंगे, यह उसकी आबादी पर निर्भर करता है। कैलिफोर्निया के पास सबसे ज्यादा 55 इलेक्टर हैं। पूरे अमेरिका में 538 इलेक्टर हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र से वोटर्स को रिप्रेजेंट करते हैं।

अमेरिका में 3 नवंबर को हो रहे 46वें राष्ट्रपति चुनाव पर भारत समेत दुनिया भर की निगाहें हैं। रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) दोबारा जीत हासिल करेंगे या डेमोक्रेट प्रत्याशी जो बाइडेन (Joe Biden) बाजी पलट देंगे। इसको लेकर गूगल, टीवी चैनल से लेकर सोशल मीडिया तक धमक दिखेगी। आइए जानते हैं चुनाव से जुड़ी सारी बारीकियों को…

अमेरिका में लंबे समय से राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव दो मुख्य राजनीतिक पार्टियों के बीच होता है। ये दो पार्टियाँ हैं- डेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी। डेमोक्रेट्स का चुनाव चिह्न गधा है और रिपब्लिकन का हाथी। पिछली बार डेमोक्रेट्स की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन थीं जो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से हार गई थीं। इस बार डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन हैं, जो पहले अमेरिका के उप राष्ट्रपति भी रह चुके हैं।

डेमोक्रेटिक पार्टी की विचारधारा क्या है?

डेमोक्रेटिक पार्टी आधुनिक उदारवाद का समर्थन करती है। यह शासन के हस्तक्षेप, सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल, सस्ती शिक्षा, सामाजिक कार्यक्रमों, पर्यावरण संरक्षण नीतियों और श्रमिकों संघों में विश्वास करती है।

रिपब्लिकन किस सोच पर चलती है?

रिपब्लिकन पार्टी एक तरह से अमेरिकी राष्ट्रवाद को बढ़ावा देती है, जैसे सरकार के दायरे को सीमित करना, कम करों और मुक्त बाजार पूँजीवाद को, हथियार रखने के अधिकार, श्रमिक संघों के अविनियमन को बढ़ावा देना और आव्रजन तथा गर्भपात जैसे मामलों में प्रतिबंध लगाना शामिल है।

अमेरिका के चुनाव में अन्य पार्टियाँ भी हिस्सा लेती हैं ?

अमेरिकी चुनाव में अन्य पार्टियाँ भी हिस्सा लेती हैं, जिसमें लिब्रेटेरियन, ग्रीन और स्वतंत्र पार्टियाँ शामिल हैं। एक जमाने में मौजूदा अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी अपनी एक पार्टी बनाकर चुनाव लड़ चुके हैं। ये सभी पार्टियाँ अपने उम्मीदवार खड़ा करती हैं लेकिन अभी उनका कोई बहुत ज्यादा असर नहीं दिखता। अमेरिका के लोग मुख्य तौर पर रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के बीच से ही राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं।

कौन अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ सकता है?

इस चुनाव में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के लिए ये तीन आधारभूत अर्हताएँ पूरी करना सबसे जरूरी है-

1. चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति पैदाइशी अमेरिकी हो।

2. उसकी उम्र कम से कम 35 वर्ष होना जरूरी है।

3. उम्मीदवार बीते कम से कम 14 साल तक अमेरिका में रहा हो।

जो वोटर अब तक इलेक्शन डे (इस साल 3 नवंबर) को पोलिंग बूथ पर जाकर वोटिंग करते रहे हैं, वे घर बैठे मेल-इन या पोस्टल बैलट से वोटिंग कर रहे हैं। अमेरिका में कुछ राज्यों में इलेक्शन डे से पहले भी वोट डाले जा सकते हैं, जिसे अर्ली वोटिंग कहते हैं। इसका भी लोग फायदा उठा रहे हैं, ताकि भीड़ में न जाना पड़े। पिछले चुनावों में कुल वोटिंग का 50% मतदान तो इस साल इलेक्शन डे से एक हफ्ते पहले ही हो गया है। यह आँकड़ा और भी बढ़ सकता है।

मतदान कब शुरू होगा 

अमेरिकी समयानुसार 3 नवंबर को सुबह 6 बजे यानी भारतीय समय के मुताबिक दोपहर 3ः30 बजे वोटिंग शुरू होगी। वहाँ रात को नौ बजे तक चलेगी, यानी भारतीय समय के मुताबिक 4 नवंबर सुबह 6ः30 बजे तक वोटिंग चलती रहेगी। रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेट के जो बाइडेन भी चुनाव वाले दिन ही वोट करेंगे।

मतगणना रात से शुरू होगी

अमेरिका में मतगणना हर राज्य में चुनाव प्रक्रिया पूरी होते ही मंगलवार रात (भारत में बुधवार को) ही शुरू हो जाएगी। फ्लोरिडा (Florida), विस्कोंसिन (Wisconsin), पेनसिल्वेनिया जैसे काँटे की टक्कर वाले राज्यों में मतगणना कई हफ्तों तक खिंच सकती है।

यहाँ जान सकते हैं रुझान

BBC, CNN, एबीसी न्यूज, अलजजीरा, फ्रांस-24 जैसे कई विदेशी समाचार चैनल अमेरिका के चुनाव की पूरी प्रक्रिया का लाइव प्रसारण करने वाले हैं। इन चैनलों पर राज्यवार रुझान भी जारी होंगे।

परिणाम कब आएँगे

अमेरिकी चुनाव में इस बार 23.9 करोड़ मतदाता हैं, लेकिन 3 नवंबर को मतदान के आधिकारिक दिन के पहले ही 9.2 करोड़ लोग पोस्टल बैलेट (Mail In Voting) या अर्ली वोटिंग (Early Voting) के जरिए वोट दे चुके हैं। यानी 38 फीसदी वोट पहले ही पड़ चुके हैं। यह 2016 के चुनाव का दो तिहाई से भी ज्यादा है।

वोटों की गिनती

हमारे यहाँ वोटिंग होने के बाद सारी मशीनें एक जगह आती है और काउंटिंग अलग तारीख को होती है। अमेरिका में ऐसा नहीं होता। वहाँ तो वोटिंग खत्म होते ही गिनती शुरू हो जाती है। पिछले साल इलेक्शन डे के अगले दिन सुबह तक नतीजे भी आ गए थे, तब तक हमारे यहाँ शाम हो चुकी थी। इस बार काउंटिंग में थोड़ा ट्विस्ट है। इस बार कुछ स्टेट्स ने 3 नवंबर तक पोस्टल बैलेट्स भेजने की मंजूरी दी है। इस वजह से नतीजे आने में एक या दो दिन भी लग सकते हैं।

एक और बड़ा अंतर यह है कि अमेरिका में वोटर सीधे राष्ट्रपति नहीं चुनते। वहाँ, वोटर अपना प्रतिनिधि चुनते हैं, जो इलेक्टर कहलाते हैं। किसी स्टेट में कितने इलेक्टर होंगे, यह उसकी आबादी पर निर्भर करता है। कैलिफोर्निया के पास सबसे ज्यादा 55 इलेक्टर हैं। पूरे अमेरिका में 538 इलेक्टर हैं, जो अपने-अपने क्षेत्र से वोटर्स को रिप्रेजेंट करते हैं। यह इलेक्टर ही आगे जाकर प्रेसिडेंट का चुनाव करते हैं।

नए राष्ट्रपति के लिए करीब दो माह का वक्त

अमेरिकी चुनाव का समय, नए राष्ट्रपति के शपथग्रहण (US President Oath Ceremony) से लेकर सब कुछ तय होता है। नवंबर में पहले सोमवार के बाद पड़ने वाले मंगलवार (इस बार 3 नवंबर) को ही चुनाव होता है। राष्ट्रपति 20 जनवरी को शपथ लेते हैं। ऐसे में नतीजे देरी से आए या अदालती विवाद हुआ तो दिक्कत नहीं होगी।

रिपब्लिकन और डेमोक्रेट के बीच टक्कर

अमेरिकी चुनाव में प्रायः दो दलों रिपब्लिकन और डेमोक्रेट के बीच टक्कर होती है। रिपब्लिकन को कंजरवेटिव या ग्रैंड ओल्ड पार्टी भी कहा जाता है और ग्रामीण इलाकों में उसकी पैठ है। जॉर्ज बुश, रोनाल्ड रीगन, रिचर्ड निक्सन रिपब्लिकन पार्टी से दिग्गज राष्ट्रपति हुए हैं। रिपब्लिकन धर्म, चर्च के अधिकारों के, हथियार रखने के समर्थक और गर्भपात विरोधी रहे हैं। डेमोक्रेटों का शहरों में दबदबा है।

दो उम्रदराज नेताओं के बीच मुकाबला

बराक ओबामा ने 2008 में 44 साल की उम्र में राष्ट्रपति बनकर इतिहास रचा था। इस बार मुकाबला 74 साल के डोनाल्ड ट्रंप और 78 साल के जो बाइडेन के बीच है। बाइडेन 8 साल ओबामा शासन में उप राष्ट्रपति रहे। बाइडेन ने कमला हैरिस (Kamala Harrsis) को उप राष्ट्रपति नामित किया है।

60-65 फीसदी मतदान का अनुमान

इलेक्शन प्रोजेक्ट जैसे चुनाव विश्लेषक एजेंसियों का अनुमान है कि 24 करोड़ में से मतदान 16-17 करोड़ के पार हो सकता है। यह करीब 60-65 फीसदी रह सकता है। इनमें से 40 फीसदी पोस्टल बैलेट (Postal Ballot) और चुनाव के दिन पड़े वोटों को गिनने में वक्त लगेगा।

राज्य अलग-अलग नतीजे जारी करेंगे

अमेरिका में 50 प्रांत हैं। भारत में एक साथ नतीजों के ऐलान से उलट अमेरिकी राज्यों में मतदान, पोस्टल बैलेट की गिनती और मतगणना के अलग-अलग नियम हैं। कुछ राज्यों ने पोस्टल बैलेट डाल चुके लोगों को भी इसे रद्द कराने और चुनाव वाले दिन 3 नवंबर को वोट करने का विकल्प दिया है। ऐसे चुनाव प्रक्रिया और जटिल हो गई है।

ज्यादा वोट पाने वाला राष्ट्रपति हो जरूरी नहीं

अमेरिका में जनता सीधे राष्ट्रपति नहीं चुनती, यानी जो पूरे देश में सबसे ज्यादा वोट पाए वह राष्ट्रपति घोषित हो यह जरूरी नहीं है. राष्ट्रपति का फैसला निर्वाचक वोटों से होता है. पूरे देश में 538 इलेक्टोरल कॉलेज (Electoral College) हैं। हर राज्य के अपने इलेक्टोरल कॉलेज तय हैं, जैसे कैलीफोर्निया में 55, कैलीफोर्निया (California) में जिस प्रत्याशी को सबसे ज्यादा वोट मिलेंगे। उसे ये पूरे 55 निर्वाचक वोट मिल जाएँगे।

बहुमत का जादुई आँकड़ा

जैसे भारत में लोकसभा की 543 सीटों में से 272 का बहुमत का आँकड़ा होता है। उसी तरह अमेरिका में बहुमत के लिए किसी भी उम्मीदवार को 269 निर्वाचक वोटों का जादुई आँकड़ा पार करना होता है। उसे कम से कम 270 वोट मिलना जरूरी है।

ये राज्य होंगे निर्णायक

अमेरिका में फ्लोरिडा, विस्कोंसिन, मिशिगन, नार्थ कैरोलिना, पेनसिल्वेनिया और ओहायो के नतीजों को निर्णायक माना जा रहा है। फ्लोरिडा जैसे राज्य में 22 दिन पहले ही वोटों की गिनती शुरू हो गई, लेकिन विस्कोंसिन में 24 पहले भी ऐसा नहीं हो सकेगा। बुश और अलगोर के चुनाव में फ्लोरिडा निर्णायक साबित हुआ था।

हाउस ऑफ रिप्रंजेटेटिव में होगा निर्णय

ऐसी स्थिति में अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा (House of Representatives) में बहुमत से निर्णय होता है कि कौन अगला राष्ट्रपति होगा। उप राष्ट्रपति पद के लिए सीनेट (US Senate ) में वोटिंग होती है।

इन मुद्दों पर हो रहा चुनाव

डोनाल्ड ट्रम्प और जो बाइडेन दोनों ही इस बार प्रचार में काफी आक्रामक दिखाई दे रहे हैं। अमेरिका में इस बार चीन, कोरोना वायरस, वैक्सीन, अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, नस्लीय तनाव, जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे छाए हुए हैं।

नस्लीय तनाव

अमेरिका में मई में पुलिस के हाथों जॉर्ज फ्लॉयड नाम के अश्वेत व्यक्ति की मौत हो गई थी। इसके बाद से अमेरिका में ‘ब्लैक लाइव्स मैटर्स’ के आंदोलन शुरू हो गए। अमेरिका में वैसे तो नस्लीय हिंसा का लंबा इतिहास रहा है। लेकिन अमेरिकी चुनाव से पहले एक बार फिर पूरे विश्व के तमाम देशों में इसे लेकर विरोध प्रदर्शन हुए। अमेरिका में विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा में शहरों को भी काफी नुकसान पहुँचा। यही वजह है कि अमेरिका में यह विवाद चुनावी मुद्दा बना हुआ है।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

अंग्रेज अफसर ने इंस्पेक्टर सदरुद्दीन को दी चिट… 500 जनजातीय लोगों पर बरसने लगी गोलियाँ: जब जंगल बचाने को बलिदान हो गईं टुरिया की...

अंग्रेज अफसर ने इंस्पेक्टर सदरुद्दीन को चिट दी जिसमें लिखा था- टीच देम लेसन। इसके बाद जंगल बचाने को जुटे 500 जनजातीय लोगों पर फायरिंग शुरू हो गई।

कश्मीर को बनाया विवाद का मुद्दा, पाकिस्तान से PoK भी नहीं लेना चाहते थे नेहरू: अमेरिकी दस्तावेजों से खुलासा, अब 370 की वापसी चाहता...

प्रधानमंत्री नेहरू पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद सुलझाने के लिए पाक अधिकृत कश्मीर सौंपने को तैयार थे, यह खुलासा अमेरिकी दस्तावेज से हुआ है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -