Sunday, December 22, 2024
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JNU के छात्रों पर है ₹3 करोड़ का बकाया, फ़ीस बढ़ाने को लेकर चलाया जा रहा है झूठा अभियान

"यूजीसी ने विश्वविद्यालय को साफ़ निर्देश दिया है कि ग़ैर वेतन खर्चे की व्यवस्था आंतरिक स्रोतों से की जाए। ऐसे में छात्रों से सुविधा शुल्क वसूलने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।"

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी शिक्षक संघ (JNUTA) ने गुरुवार (21 नवंबर) को मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा नियुक्त पैनल से मुलाक़ात की और विश्वविद्यालय के कुलपति को हटाने के अलावा बढ़ाए गए हॉस्टल शुल्क को वापस लेने माँग की। प्रदर्शनकारियों द्वारा अपने सहयोगियों पर कथित हमले के प्रति उनकी “उदासीनता” के कारण कुछ शिक्षकों ने इस समूह से ख़ुद को अलग कर लिया।

विश्वविद्यालय ने हॉस्टल शुल्क वृद्धि के पीछे तर्क देते हुए एक बयान जारी किया और कहा कि विश्वविद्यालय 45 करोड़ रुपए से अधिक घाटे में है, इसलिए शुल्क बढ़ाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। साथ ही इस मामले पर आंदोलन कर रहे छात्रों पर झूठ फैलाने का आरोप भी लगाया।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय प्रशासन ने हॉस्टल में रह रहे छात्रों से लंबित मेस फ़ीस की एक सूची भी जारी की है, जो जुलाई से अक्टूबर तक 2.79 करोड़ रुपए से अधिक है। इसे JNUSU के उपाध्यक्ष साकेत मून ने “छात्रों को धमकी देने का प्रयास” करार दिया। 

विवाद को सुलझाने के लिए जारी बातचीत के बीच राष्ट्रीय स्वयं संघ (RSS) से संबद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने समिति को भंग करने की माँग को लेकर गुरुवार को शास्त्री भवन तक मार्च करने की कोशिश की, जहाँ पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय है। ABVP से संबद्ध छात्रों को हालाँकि संसद मार्ग पर ही पुलिस ने रोक दिया और 160 लोगों को हिरासत में ले लिया। बाद में इन छात्रों को रिहा कर दिया गया।

वहीं, विश्वविद्यालय ने अपने बयान में कहा कि वो बिजली, पानी के बिल और निविदा कर्मियों के वेतन की वजह से घाटे में है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने छात्रावास में कार्यरत निविदा कर्मियों का वेतन बजट से देने की अनुमति नहीं देता। ऐसे कर्मियों की संख्या क़रीब 450 है। JNU ने कहा, “यूजीसी ने विश्वविद्यालय को साफ़ निर्देश दिया है कि ग़ैर वेतन खर्चे की व्यवस्था आंतरिक स्रोतों से की जाए। ऐसे में छात्रों से सुविधा शुल्क वसूलने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।”

बयान में इस बात का भी उल्लेख किया गया कि संशोधित छात्रावास शुल्क के मुताबिक़ सामान्य वर्ग के छात्रों को क़रीब 4,500 रुपए महीने का भुगतान करना होगा। इसमें से 2,300 रुपए खाने का है। शेष 2,200 रुपए का 50 फ़ीसदी भुगतान गरीबी रेखा से नीचे के छात्रों को करना होगा। इस प्रकार गरीबी रेखा से नीचे के छात्रों को प्रति माह करीब 3,400 रुपए देना होगा। इस प्रकार छात्रावास शुल्क में कथित बेतहाशा वृद्धि को लेकर झूठा प्रचार किया जा रहा है।

विश्वविद्यालय ने इस बात को स्पष्ट किया कि वास्तविकता है कि सेवा शुल्क लगाया गया है जो अब तक शून्य था। विश्वविद्यालय बजट बरक़रार रहे इसलिए छात्रावास में सेवा शुल्क लगाया गया है। फ़िलहाल, विश्वविद्यालय भारी घाटे में है। बयान में इस बात पर ग़ौर करने के लिए कहा गया कि छात्रावास में रहने वाले करीब 6,000 छात्रों में से 5,371 को फैलोशिप या छात्रवृत्ति के रूप में आर्थिक मदद मिलती है। विश्वविद्यालय ने उस रिपोर्ट को भी ख़ारिज कर दिया कि इस वृद्धि से JNU में देश के अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों के मुक़ाबले सबसे अधिक छात्रावास शुल्क है।

इस बीच, इंटर हॉल प्रशासन के सहायक रजिस्ट्रार ने बुधवार को छात्रावास में रहने वाले छात्रों पर मेस बकाए की सूची जारी की। इसके मुताबिक़ जुलाई से अक्टूबर के बीच 17 छात्रावासों में रह रहे छात्रों पर 2,79,33,874 रुपए का बकाया है। इस परिपत्र के बारे में पूछने पर डीन ऑफ स्टुडेंट्स उमेश कदम ने कहा कि छात्रावास मेस न हानि न लाभ के सिद्धांत पर चलते हैं। लेकिन जब तीन करोड़ रुपए बकाया हो तो इनका संचालन कैसे और कब तक होगा?

ग़ौरतलब है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सामान्य कामकाज को बहाल करने और हॉस्टल शुल्क वृद्धि पर तीन सप्ताह से अधिक समय से विरोध कर रहे छात्रों और प्रशासन के बीच मध्यस्थता बनाने के लिए सोमवार (18 नवंबर) को तीन सदस्यीय उच्चस्तरीय पैनल का गठन किया गया था।

दो घंटे से अधिक चली लंबी बैठक में, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (JNUTA) की कार्यकारी समिति ने पैनल को बताया कि जिस तरह से JNU को संचालित किया जा रहा है, उससे आने वाली समस्याओं का पता लगाना असंभव है, जबकि वर्तमान कुलपति अभी भी कार्यरत हैं।

यह पैनल, छात्रों के साथ दूसरी बैठक करने के लिए शुक्रवार को JNU परिसर का दौरा करेगा। HRD मंत्रालय में बुधवार को JNU छात्र संघ (JNUSU) के पदाधिकारियों, छात्र परामर्शदाताओं और छात्रावास अध्यक्षों के साथ पहली बैठक हुई थी।

हालाँकि, विश्वविद्यालय के शिक्षकों के एक वर्ग ने पैनल के गठन पर ख़ुशी नहीं जताई और कहा कि इससे मौजूदा स्थिति जटिल हो सकती है। JNUTA से अलग हुए शिक्षकों ने आरोप लगाया कि JNU शिक्षक संघ प्रदर्शनकारियों के साथ मिला हुआ है। उन्होंने आरोप लगाया कि आंदोलनकारी छात्रों ने फ़ीस वृद्धि के विरोध के दौरान 24 घंटे से अधिक समय तक प्रोफ़ेसर को बंधक बना रखा था।

इस बीच, छात्रों के आंदोलन को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार संजय बारू का समर्थन मिला है। JNU छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष एन साई बालाजी ने एक वीडियो शेयर किया, जिसमें JNU के पूर्व छात्र बारू ने कहा, “ऐसे समय में जब लगभग हर साल हम विदेशों में पढ़ रहे भारतीयों पर लगभग छह बिलियन डॉलर खर्च कर रहे हैं, सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को बचाना बेहद ज़रूरी है।”

उन्होंने कहा,

“जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की रैंकिंग के अनुसार सर्वश्रेष्ठ सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में से एक है और यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि अच्छे छात्र सस्ती लागत पर अध्ययन कर सकें।”

बता दें कि हॉस्टल शुल्क में वृद्धि 11 नवंबर को की गई थी, जिसके विरोध में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के हज़ारों छात्र पुलिस के साथ भिड़ गए। इससे मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में छह घंटे से अधिक समय तक फँसे रहे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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