सेलिब्रिटी स्तंभकार शोभा डे पाकिस्तान के इशारों पर कश्मीर को लेकर प्रोपगेंडा रचती हैं। यह खुलासा नई दिल्ली में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने किया है। बासित का एक वीडियो सामने आया है जिसमें वे बता रहे हैं कि कैसे बुरहानी वानी के मारे जाने के बाद उन्होंने शोभा डे को लिखने के लिए राजी किया था।
आतंकी संगठन हिज्बुल मुजाहिद्दीन के कमांडर बुरहानी वानी को सुरक्षा बलों ने जुलाई 2016 में मार गिराया था। बासित वीडियो में कह रहे हैं कि बुरहान वानी की ‘शहादत’ के बाद यह देखा गया कि किस तरह से पैलेट गन्स का इस्तेमाल हुआ, इकॉनोमिक ब्लॉकेड हुआ, कश्मीर की इकॉनोमी बर्बाद हो गई थी। लेकिन भारत में ऐसा कोई शख़्स नहीं था जो कश्मीर की हालत का सही मायने में ज़िक्र कर सके। मेरे लिए यह चैलेंज था कि भारत के किसी जर्नलिस्ट को कश्मीर के हालात पर किसी अख़बार में कोई ‘अच्छा’ आर्टिकल लिखने के लिए राजी कर सकूँ। इसी वीडियो में बासित कहते हैं कि उन्होंने शोभा डे से इस मसले पर बात की और उन्होंने एक आर्टिकल लिखा था।
बासित ने शोभा डे के लेख की अंतिम लाइनों को ज़िक्र भी किया है, जिसमें उन्होंने लिखा था कि चलिए अब इस क्षेत्र में दर्द ख़त्म करें और कश्मीरियों को शांति से जीने दें, जिस सम्मान और सद्भाव के वो हक़दार हैं।
दरअसल, शोभा डे का यह लेख टाइम्स आफ़ इंडिया में 17 जुलाई 2016 को ‘Burhan Wani is dead but he’ll live on till we find out what Kashmir really wants’ शीर्षक से छपा था। इस लेख में उन्होंने कश्मीर के हालात पर विस्तृत रूप से लिखा था। मोटे तौर पर उनका कहना था कि बुरहान वानी को भले ही ‘अल्ट्रा-पेट्रियट’ आतंकी कहें या गद्दार, कश्मीर के लोगों का वो हीरो था, उसमें ‘करिज़्मा’ था। हिंदुस्तान के नेताओं को घेरते हुए उन्होंने लिखा था कि वे अपने घरों में आराम से बैठकर ‘शांतिप्रिय’ कश्मीरियों के बारे में खोखले भाषण देते हैं।
उन्होंने पूरे लेख में पाकिस्तान की ही लाइन पकड़े रखी- यहाँ तक कि हिंदुस्तान की सेना के जवानों को भी कश्मीरी पत्थरबाजों और जिहादियों के बराबर में खड़ा कर दिया।
अपने लेख के अंत में उन्होंने देश के नेताओं पर अपनी ‘अग्ली पॉलिटिक्स’ (गंदी राजनीति) के लिए कश्मीर की खूबसूरती को बर्बाद करने का आरोप लगाया था। उन्होंने कश्मीर में जनमत संग्रह की भी वकालत की थी, जो हिंदुस्तान की कश्मीर को अपना हिस्सा मानने की नीति और इसी आशय से संसद से पारित प्रस्ताव के ठीक उल्टा था। और इसी की तारीफ़ अब्दुल बासित कर रहे थे।