दिल्ली पुलिस ने समाचार समूह टाइम्स ऑफ़ इंडिया (TOI) के एक संपादकीय पर आपत्ति जताई है। यह संपादकीय दिल्ली दंगों पर था। इसमें दंगों और दिल्ली पुलिस की जाँच से संबंधित कई बातें लिखी गई थी।
दिल्ली पुलिस ने साफ़ शब्दों में इस संपादकीय का खंडन किया है। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि जाँच सिर्फ सबूतों पर आधारित है। अखबार में जिस तरह की बातें लिखी हैं उसका सीधा असर लोगों के जेहन पर पड़ता है।
यह संपादकीय (Capitol Aberration) 6 अगस्त के दिन टाइम्स ऑफ़ इंडिया के दिल्ली संस्करण में प्रकाशित हुआ था। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि पूरे संपादकीय में ऐसे तमाम आरोप लगाए गए हैं जिनका खंडन करने की ज़रूरत है। ऐसा नहीं करने पर जाँच से संबंधित रिकॉर्ड प्रभावित होंगे। इसके शुरूआती हिस्से में 1984 दंगों का ज़िक्र है। लेकिन इसके बाद लेखक अपना उद्देश्य स्पष्ट कर देता है। अगले हिस्से में फरवरी के दौरान हुए दंगों के मामले में प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद की जाँच का उल्लेख है।
दिल्ली पुलिस ने लिखा कि लेखक इतने पर ही रुकता नहीं है। इसके बाद लेखक ने न जाने किन वजहों को आधार बनाते हुए जाँच एजेंसियों पर भ्रामक बातें फैलाने का आरोप लगाया है। यह समझना मुश्किल है कि आखिर एक व्यक्ति की कानूनी जाँच गलत कैसे हो सकती है। दिल्ली पुलिस ने पूछा है कि अपूर्वानंद को न तो समन जारी किया गया है और न इस संबंध में कोई जानकारी सार्वजनिक की गई है, फिर किस आधार पर आरोप लगाए गए हैं।
Delhi Police’s Rebuttal to the report published by @timesofindia https://t.co/2ADxmH854v pic.twitter.com/Mf2VQDAxuG
— #DilKiPolice Delhi Police (@DelhiPolice) August 7, 2020
इन बातों के आधार पर दिल्ली पुलिस ने कई सवाल भी खड़े किए हैं,
- जब जाँच की कोई जानकारी सामने नहीं आई है, तब लेखक ने किस आधार पर ऐसे आरोप लगाए हैं?
- लेखक के इन दावों और जानकारियों का आधार क्या है?
- क्या जाँच अधिकारी को लेखक से दिशा-निर्देश लेने पड़ेंगे कि किसकी जाँच करनी है या किसकी नहीं?
- क्या लेखक पुलिस पर कार्रवाई के दौरान दबाव बनाने का प्रयास कर रहा है?
पुलिस ने कहा है कि असल मायनों में इन दंगों की वजह से पूरे समाज को शर्मिंदा होना पड़ा था। पुलिस ने अपनी तरफ से जितना कुछ करना चाहिए था वह सब किया। दिल्ली पुलिस ने राजधानी में क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास किया। जिससे असल आरोपित सामने आएँ और कार्रवाई अभी तक जारी है। लेकिन इससे बहुत से लोग असहज होते हैं, लेख की मंशा से ऐसा ही समझ आता है।
इसके अलावा दिल्ली पुलिस ने यह भी कहा कि लेखक को एक बात बहुत अच्छे से समझने की ज़रूरत है कि दिल्ली पुलिस यह सुनिश्चित करना चाहती है कि इस मामले में इंसाफ़ हो। पुलिस से ज़्यादा चिंता किसे होगी जिसने 750 मामले दर्ज किए हैं और 1500 लोगों को गिरफ्तार किया है।
इस मामले की जाँच में दिग्गज अधिकारी शामिल हैं और वह उपलब्ध दस्तावेज़ों, सबूतों के आधार पर कार्रवाई कर रहे हैं। सबसे ज़्यादा हैरानी की बात यह है कि मामले के आरोपित भी अपना पक्ष रख रहे हैं और बचाव कर रहे हैं। अधिकारियों को तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन यही देश का लोकतंत्र है। यहाँ क़ानून सबसे ऊपर है, उसके आगे कुछ नहीं है। दिल्ली पुलिस ने कहा कि वह जाँच प्रक्रिया को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं। दिल्ली पुलिस सबूतों के आधार पर निष्पक्ष रूप से कार्रवाई कर रही है।