अमेरिकी समाचार चैनल CNN ने 2 अक्टूबर 2023 को भारतवंशी अमेरिकी टीवी एंकर फरीद जकारिया का एपिसोड जारी किया है। इसमें जकारिया ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या पर भारत और कनाडा के बीच चल रही राजनयिक रस्साकशी के विषय में बात की है।
पाँच मिनट के इस वीडियो में कॉन्ग्रेस सरकार में मंत्री रहे रफीक जकारिया के पुत्र फरीद जकारिया खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर को सामान्य एक्टिविस्ट बताने की पूरी कोशिश करते हैं। इसी वीडियो में वह भारत को लेकर खालिस्तानी खतरे को कम कर के आंकते हैं।
Today’s last look: why Trudeau’s startling allegations are playing out very differently in Modi’s India pic.twitter.com/brVKd0Qjzo
— Fareed Zakaria (@FareedZakaria) October 1, 2023
जकारिया दावा करते हैं कि भारत खालिस्तान के मुद्दे को आवश्यकता से अधिक उठा रहा है। जकारिया यह भी कहते हैं कि खालिस्तान का मुद्दा अधिक इसलिए उठाया जा रहा है, ताकि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में आसानी हो।
जकारिया अपने वीडियो की शुरुआत कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत पर लगाए गए आरोपों से करते हैं और हरदीप सिंह निज्जर को एक ‘एक्टिविस्ट’ और गुरुद्वारे का मुखिया बताते हैं और जून में हुई उसकी हत्या का जिक्र करते हैं।
खालिस्तानी आतंकी निज्जर को ‘एक्टिविस्ट’ बताते बताते समय जकारिया यह भूल जाते हैं कि उसके विरुद्ध दो बार इंटरपोल का रेड कार्नर नोटिस निकल चुका था। निज्जर भारत में 10 मामलों में नामजद था जिसमें बम विस्फोट जैसे गंभीर आरोप भी हैं।
जकारिया जानबूझ कर यह तथ्य छुपा ले जाते हैं कि ट्रूडो खालिस्तानियों का पक्ष राजनीतिक कारणों से ले रहे हैं। वह भारत के क़दमों को राजनीतिक बताते हैं, लेकिन यह बताना भूल जाते हैं कि जस्टिन ट्रूडो की खुद की सरकार जगमीत सिंह के भरोसे चल रही है और वह उन्हीं को खुश करने के लिए खालिस्तानियों का समर्थन कर रहे हैं।
जकारिया जस्टिन ट्रूडो की बचकाना हरक़तों का पक्ष लेते हुए कहते हैं कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से भारत पर इसलिए आरोप लगाए हैं, ताकि भारत को जाँच में सहयोग करने पर मजबूर किया जा सके।
हालाँकि, यह कोई पहला मौका नहीं है जब जकारिया ने भारत विरोधी रवैया अपनाया हो। वह इससे पहले अमेरिका को भारत में हस्तक्षेप करने की अपील कर चुके हैं। उन्होंने इस बात की अपील भी की थी कि अमेरिका को भारत में NGO, सांस्कृतिक समूहों और प्रेस आदि से सीधे संवाद करना चाहिए।
यह सीधे-सीधे इस बात इशारा है कि भारत में सत्ता किसी तरह बदली जाए। हास्यास्पद रूप से उन्होंने भारत को अपने हितों को पूरा करने के लिए निशाने पर लिया था। उनका कहना था कि अमेरिका के सहयोगी को उसके हित ऊपर रखने चाहिए।
कनाडा वाले मामले पर डाले गए वीडियो में वह भारतीय मीडिया की कुछ क्लिप चलाते हैं। जकारिया का कहना है कि मीडिया द्वारा चलाई गई इन खबरों से भारत में अति राष्ट्रवाद की भावनाएँ उत्पन्न हो रही हैं।
जकारिया वीडियो में कहते हैं, “भारत में इस मामले पर प्रतिक्रिया काफी अलग हैं और यह बात सामने आती है कि ट्रूडो ने बड़ी गलती कर दी है। आप भारतीय प्रेस को देखिए, इस कहानी (निज्जर से सम्बंधित) ने भारत में अति राष्ट्रवाद की भावनाएँ जगा दी हैं, जिसमें कनाडा को एक बहु-सांस्कृतिक नहीं, बल्कि आतंकियों को शरण देने वाला एक राष्ट्र बताया जा रहा है।”
अपने दावे को मजबूत करने के लिए वह टीवी एंकर अर्नब गोस्वामी का एक वीडियो दिखाते हैं जिसमें गोस्वामी ट्रूडो को आतंकियों का मददगार और उनका समर्थक बताते हैं। जकारिया का यह भी कहना है कि राजनीतिक विश्लेषक सुशांत सरीन ने इस पूरी स्थिति को सही ढंग से लिखा है। इसके लिए वह सुशांत का एक ट्वीट दिखाते हैं जिसमें यह लिखा है, “अगर ये (निज्जर की हत्या) हमने किया है तो ठीक किया है और अगर हमने नहीं किया है तो आप गलत हैं।”
फरीद जकारिया आगे कहते हैं, “हिन्दुस्तान टाइम्स का एक विश्लेषण बताता है कि निज्जर की हत्या एक ऐसा लम्हा होगा जब पश्चिमी शक्तियाँ भारत के विरुद्ध एकत्रित हो जाएँगी।”
जकारिया अपने दर्शकों को भारत द्वारा कनाडा को आतंकियों की शरणस्थली क्यों कह रहा है, यह समझाते समय भारत के लिए खालिस्तानी खतरे को काफी छोटा करके बताते हैं। वह निज्जर को सिख कार्यकर्ता बताकर लगातार उसकी आतंकी गतिविधियों को छुपाते हैं।
इस संबंध में वह कहते हैं, “भारतीय अधिकारियों ने कनाडा पर आतंकियों को शरण देने का आरोप लगाया है। ये आपको थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन यह इस बात का संदर्भ है कि निज्जर एक सिख अलगाववादी था। उन सिखों में से एक जो कि भारत में एक सिख राष्ट्र की माँग करते हैं। यह माँग दशकों पुरानी है और 1980 के दशक में इसके लिए एक हिंसा का रास्ता भी चुना गया था।”
इन सब के बीच जकारिया यह बताना भूल जाते हैं कि कनाडा में लगातार हिन्दुओं को हिंसा की धमकियां दी जा रही हैं और रैलियाँ आयोजित की जा रही हैं। इसके लिए वह द इकॉनोमिस्ट का सहारा लेकर बताते हैं कि खालिस्तान सिख समुदाय में चर्चा का विषय है।
जकारिया कहते हैं, “इकॉनोमिस्ट के अनुसार, 1980 और 1990 के दशक में खालिस्तान आन्दोलन ने हजारों जानें ली थीं, लेकिन तब से यह विदेशों में रहने वाले सिखों में केवल बातचीत का मुद्दा है और भारत में इसे कोई समर्थन नहीं हासिल है।”
यह राष्ट्रीय सुरक्षा का नहीं, पीएम मोदी के लिए राजनीतिक लाभ का मुद्दा
जकारिया का कहना है कि कनाडा यदि भारत द्वारा उठाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेशों में रह रहे भारतीयों की सुरक्षा को लेकर कदम उठाता है तो इसका राजनीतिक रूप से फायदा प्रधानमंत्री मोदी को होगा।
जकारिया का कहना है, “इस मामले में जो कुछ भी सच्चाई हो, भारत और कनाडा में ‘सिख एक्टिविस्टों’ को लेकर लम्बे समय से विवाद चल रहा है। जैसा की फाइनेंसियल टाइम्स कहता है, भारत ने कनाडा पर आतंकियों पर सख्त रवैया ना अपनाने के आरोप लगाए हैं जिनका परीक्षण होना चाहिए। लेकिन यह भी सत्य है कि इस मुद्दे को उठाना भाजपा और नरेंद्र मोदी के लिए फायदेमंद है।”
जकारिया ने पुलवामा हमले का उदाहरण देते हुए बताया कि ट्रूडो ने जो नीति इस मामले में अपनाई है वह गलत है। जकारिया यहीं नहीं रुके, वह इन सब विवाद के बीच में हिन्दू राष्ट्रवाद को भी खींच लाए।
उन्होंने कहा, “आप समझिए कि सार्वजनिक तौर पर भारत का नाम लेने की ट्रूडो की नीति मोदी के हिन्दू राष्ट्रवाद को नहीं समझ पाती जो कहता है कि भारत बहुत लम्बे समय से पश्चिमी ताकतों और अल्पसंख्यकों के सामने दब्बू रहा है। जब भी कोई अवसर आएगा, प्रधानमंत्री मोदी जानते हैं कि इसका लाभ कैसे लिया जाए।”
जकारिया ने 2019 के पुलवामा हमले के विषय में बताते हुए कहा, “वर्ष 2019 में एक आत्मघाती हमलावर ने हमला करके बड़ी संख्या में भारतीय सैनिकों को मार दिया था। भारत ने पाकिस्तान पर इसका आरोप लगाया और भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के अंदर एक आतंकी ट्रेनिंग कैम्प पर हमले किए। हालाँकि, पाकिस्तान ने किसी भी नुकसान से मना किया था, लेकिन यह पचास वर्षों में पहली बार था कि भारत ने सीमा पार ऐसी कार्रवाई की थी।”
तब की परिस्थितियों को जकारिया ने वर्तमान से जोड़ते हुए बताने का प्रयास किया कि कनाडा भारत के लिए नया पाकिस्तान है। जकारिया ने दावा किया कि कि प्रधानमंत्री मोदी के लिए यह फायदेमंद होगा कि वह प्रदर्शित करें कि वह पश्चिमी देशों के रवैये और सिख अलगाववाद के विरुद्ध खड़े हैं।
जकारिया ने समाचार पत्र ब्लूमबर्ग का हवाला देते हुए कहा, “जैसा कि ब्लूमबर्ग ने कहा है, मोदी की जीत में इस बात का बड़ा रोल था कि उन्होंने एक चुनावी रैली में आतंकियों को घुस कर मारने की बात की थी। उन्होंने यह भी बिना सबूत के कहा था कि विपक्षी दलों को आतंकियों के साथ सहानुभूति है।”
जकारिया ने आगे कहा, “इसके बाद प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में बढ़त देखी गई। अब उनके सामने एक और चुनाव है और अगर वह अपने आप को ऐसे प्रदर्शित करते हैं कि वह सिख अलगाववाद और पश्चिमी देशों के विरुद्ध खड़े हैं तो उनके लिए यह फायदेमंद होगा, भले ही यह असल मुद्दा हो या नहीं।”