यूक्रेन-रूस युद्ध को खत्म करने के लिए भारत के शांति प्रयासों पर विदेशी मीडिया पानी फेरना चाह रहा है। इसी सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कीव दौरे के कुछ ही दिनों के बाद विदेशी मीडिया संस्थान फाइनेंशियल टाइम्स ने दावा किया है कि भारत इस युद्ध के बीच रूस को युद्ध में काम आने वाले साजोसामान बेच रहा है।
फाइनेंशियल टाइम्स ने इस बात को लेकर ‘रशिया बिल्ट कोवर्ट ट्रेड चैनल विद इंडिया, लीक्स रिवील’ शीर्षक से 4 अगस्त, 2024 को एक लेख प्रकाशित किया है। इस लेख में फाइनेंशियल टाइम्स ने आरोप जड़ा है कि रूस ने तेल बेच कर जुटाए भारतीय करेंसी के बड़े रिजर्व के सहारे भारत से कई महत्वपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक्स खरीदे हैं।
Russia has been secretly acquiring sensitive goods in India and explored building facilities there to secure components for its war effort, according to Russian state correspondence seen by @FT.
— Christopher Miller (@ChristopherJM) September 4, 2024
Via @JohnReedwrites @maxseddon @xtophercook @JP_Rathbonehttps://t.co/ef0jrJYX6a
फाइनेंशियल टाइम्स इससे पहले भी लगातार कई बार भारत विरोधी लेख छापता रहा है। इसने इस बार दावा किया है कि भारत और रूस के बीच हुआ यह कथित लेनदेन पश्चिमी सरकारों से छुपा कर रखी गई थी और इस सामान का उपयोग यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में हुआ।
फाइनेंशियल टाइम्स ने अपने इस लेख में अपने दावे का आधार ऐसे दस्तावेज और स्रोत बताए हैं जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं। फाइनेंशियल टाइम्स ने आरोप लगाया कि रूस उन सामानों को पहले गैर दोस्ताना देशों से लिए गए सामान के तौर पर वर्गीकृत करता है।
रूस से कच्चे तेल की खरीद भारत और अमेरिका के बीच लगातार समस्या की जड़ बना रहा है। इस मुद्दे को लेकर अमेरिका के डिप्टी NSA ने भारत से परिणाम भुगतने तक को कह दिया था। हालांकि भारत को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा और उसने रूस से तेल खरीदना जारी रखा।
अब भी औपनिवेशिक मानसिकता में डूबा है फाइनेंशियल टाइम्स
अमेरिका और भारत के बीच रूसी तेल की खरीद के मुद्दे को फाइनेंशियल टाइम्स ने भुनाने का प्रयास अपने लेख में किया। फाइनेंशियल टाइम्स ने दावा किया कि भारत ने तेल खरीद के लिएजो पैसे रूस को दिए, उनका इस्तेमाल रूस ने यूक्रेन युद्ध में उपयोग होने वाले हथियार खरीदने के लिए किया।
फाइनेंशियल टाइम्स ने दावा किया, “रूस और उसके भारतीय साझेदारों ने ऐसी तकनीकों की खरीद बिक्री की है जो आम जीवन में और सैनिकों के लिए उपयोग में लाई जाती हैं। इनमें से कई सामानों पर पश्चिमी देशों ने रोक लगाई हुई है। लीक फाइलों के अनुसार, रूस भारत में इलेक्ट्रॉनिक सामान को भारत के साथ मिलकर बनाने के प्रयास में भी था।”
ब्रिटिश अख़बार फाइनेंशियल टाइम्स ने यह बड़े बड़े दावे किए लेकिन उसने ये बात मानी कि उसे यह नहीं मालूम है कि यह खरीद कितनी बड़ी है। इसके उसने यह बताया कि रूस और भारत के रिश्ते इस लेनदेन के बाद और गहरे हो गए है। हास्यास्पद बात यह है कि इन सभी दावों के बीच यह भी नहीं बता सका कि यह सामान क्या हैं।
अपनी औपनिवेशिक सोच को प्रदर्शित करते हुए फाइनेंशियल टाइम्स ने दोहराया कि अमेरिका भारत को कई बार धमकियाँ दे चुका है लेकिन इस बीच यह भूल गया कि भारत विश्व की पाँचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अपने हितों के हिसाब से निर्णय लेता है।
तेल खरीद पर फिर रोने लगा फाइनेंशियल टाइम्स
भारत सरकार लगातार 2022 से ही साफ़ करती आ रही है कि रूस से होने वाली तेल की खरीद उसकी कुल खरीददारी का मात्र एक हिस्सा है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इसको लेकर एक बार पश्चिमी देशों के दोहरे रवैये को भी उजागर किया था। उन्होंने एक सार्वजनिक बातचीत में कहा था, ”हम कुछ कच्चा तेल-गैस खरीदते हैं, जो हमारी ऊर्जा सुरक्षा के लिए आवश्यक है। लेकिन मुझे आँकड़ों को देखकर ये लगता है कि जितना हम एक महीने में खरीदते हैं उससे ज्यादा यूरोप एक दिन में खरीद लेता है।”
फाइनेंशियल टाइम्स का प्रोपेगेंडा इस बात को नजरअंदाज करते हुए सामने आ ही गया। फाइनेंशियल टाइम्स ने दावा किया कि भारत ने रूस खरीद करके उसे युद्ध चालू रखने की अप्रत्यक्ष मदद दी है। इसने कहा कि भारत का रूस से तेल खरीदना रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बाद वरदान बन कर आया।
फाइनेंशियल टाइम्स ने लिखा, “भारत रूसी कच्चे तेल का एक प्रमुख खरीदार रहा है और दोनों देशों का कुल व्यापार 2023-24 में 66 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच गया, जो यूक्रेन-रूस से पहले के वर्ष की तुलना में पाँच गुना वृद्धि है। इसमें से कुछ व्यापार रुपये में किया गया है, जिससे रूस के पास रिजर्व पड़ा हुआ है। कारोबार से जुड़े लोगों और पश्चिमी देशों के अधिकारियों के अनुसार, रूसी कंपनियों ने प्रतिबंधों से बचने के लिए सोने का व्यापार करने और सामान खरीदने के लिए इस रुपये के रिजर्व का इस्तेमाल किया है।”
फाइनेंशियल टाइम्स ने लगाया भारत पर यूक्रेन युद्ध में मदद का आरोप
रिपोर्ट में ब्रिटिश अखबार ने दावा किया कि अक्टूबर 2022 में अलेक्जेंडर गैपोनोव (रूस के उद्योग और व्यापार मंत्रालय के रेडियो इलेक्ट्रॉनिक्स डिवीजन के उपप्रमुख) ने भारत से ड्रोन और मिसाइलों में इस्तेमाल के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स खरीदने की योजना बनाई थी। इसने दावा किया कि गैपोनोव ने डिजिटल मुद्रा और भारतीय रूपए का उपयोग करके भारत से ‘दोहरे उपयोग वाले सामान’ खरीदने और पश्चिमी देशों की जाँच से बचने के लिए एक संगठन का इस्तेमाल किया।
लीक हुए दस्तावेजों का हवाला देते हुए, ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ ने आरोप लगाया कि सर्वर, टेलिकॉम और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए पुर्जों की खरीद पर 100 अरब रुपये खर्च किए गए। यह भी आरोप लगाया गया कि रूस ने अपने महत्वपूर्ण संसाधनों की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स कारखानों को मजबूत करने में भी पैसा खर्च किया।
फाइनेंशियल टाइम्स के इन दावों पर विश्वास करना कठिन है क्योंकि रूस को यह सभी सामान चीन से उपलब्ध थे और उसे यह बिना निवेश के खरीद सकता था। यदि रूस को यह समान खरीदने ही होते तो वह चीन से खरीद इसलिए करता क्योंकि चीन एक तो उसे सस्ता सामान दे सकता था और दूसरा दोनों देशों के बीच आपूर्ति की दिक्कत नहीं होती।
पश्चिमी देश दे रहे यूक्रेन को हथियार- समझौते के आसार नहीं
फाइनेंशियल टाइम्स की यह रिपोर्ट भारत की छवि को वैश्विक स्तर पर खराब करने के लिए रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को बढ़ावा देने वाले के रूप में बदनाम करने का प्रयास प्रतीत होती है। दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका और पश्चिमी देश में इस संघर्ष को अरबों डॉलर और हथियार दे रहे हैं। यूक्रेन को अमेरिका और यूरोप ने मिलाकर अब तक 185 बिलियन यूरो दिए हैं।
93.3 बिलियन यूरो की अतिरिक्त सैन्य सहायता अभी और दिए जाने का विचार चल रहा है। जहाँ ब्रिटिश अखबार मात्र दावों के आधार पर भारत को युद्ध बढ़ाने का दोषी सिद्ध करना चाहता है, वहीं जिन देशों का मुखपत्र है, उन्हें इस युद्ध में हथियारों की सप्लाई से नहीं रोक पा रहा है।
(यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में दिबाकर दत्ता ने लिखा है। इसे यहाँ क्लिक करके पढ़ा जा सकता है।)