मुंबई की एक अदालत ने बुधवार (6 मार्च 2024) को रिपब्लिक टीवी और उसके एडिटर अर्नब गोस्वामी के खिलाफ दर्ज फर्जी टीआरपी मामले को वापस लेने का अनुमति दे दी। दरअसल, मुंबई पुलिस ने कोर्ट में एक आवेदन दिया था। इस आवेदन में उद्धव ठाकरे की सरकार के कार्यकाल में दर्ज मामले को बंद करने की अपील की थी। कोर्ट ने इस आवेदन को स्वीकार कर लिया।
अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि यह मामला झूठे सबूतों पर टिका हुआ है। महाराष्ट्र राज्य सरकार ने भी अदालत में यह स्वीकार किया है कि अर्नब गोस्वामी और उनके रिपब्लिक टीवी चैनल के खिलाफ दर्ज मामला झूठे सबूतों पर आधारित था।
बताते चलें TRP और व्यूवरशिप बढ़ाने को लेकर कुछ अन्य चैनलों के खिलाफ लगे थे। इसके बाद तत्कालीन महाराष्ट्र सरकार ने बिना किसी ठोस सबूत के ही रिपब्लिक टीवी के खिलाफ FIR दर्ज कर ली थी। अदालत ने यह भी माना कि रिपब्लिक टीवी के खिलाफ तत्कालीन सरकार द्वारा कोर्ट में झूठे सबूत पेश किए गए थे।
यहाँ तक कि कोर्ट ने यह भी माना कि तब गवाहों को रिपब्लिक टीवी के खिलाफ झूठी गवाही देने के लिए धमकी देकर मजबूर भी किया गया था। अर्बन गोस्वामी ने इस मौके पर कहा कि सत्य की हमेशा जीत होती है और झूठ कभी भी नहीं जीत सकता। हालाँकि, इस मामले में विस्तृत आदेश की अभी प्रतीक्षा है।
“A pliable Police Commissioner Param Bir Singh was used in the fake TRP case and Sachin Waze was absolutely nothing but the worst kind of criminal in uniform”: Arnab Goswami after Republic TV wins the fake TRP scam case pic.twitter.com/1dxtrAbdrm
— OpIndia.com (@OpIndia_com) March 6, 2024
राज्य सरकार ने कोर्ट में दाखिल की थी ये एप्लिकेशन
रिपब्लिक टीवी के मामले में महाराष्ट्र की वर्तमान राज्य सरकार ने अदालत में नई एप्लिकेशन दाखिल की है। इस एप्लिकेशन में बताया गया है कि अधिकतर गवाहों ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने शपथ पत्र में यह माना कि उन्हें पुलिस अधिकारियों द्वारा धमकी दी गई थी। उन गवाहों ने सरकारी मशीनरी के दबाव में तब ऐसा कदम उठाने की हामी भरी थी।
इसके अलावा, इस केस में व्यूवरशिप का डाटा रखने वाली BARC ने भी जाँच अधिकरी के पास कोई शिकायत नहीं दर्ज करवाई थी। राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि अब इस केस को चलाना एक बेवजह का प्रयास होगा। आवेदन में आगे कहा गया है कि राज्य सरकार ने काफी सोच-विचार कर रिपब्लिक टीवी के खिलाफ दर्ज केस को वापस लेने की सिफारिश की है।
केस वापसी की इस कार्रवाई के लिए पुलिस कमिश्नर ऑफिस को भी सूचना दे दी गई है। केस के जाँच अधिकारी ने सीआरपीसी की धारा 321 के तहत लोक अभियोजक कार्यालय को भी सरकार के इस फैसले से अवगत करा दिया है। ऑपइंडिया के पास राज्य सरकार द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र की कॉपी मौजूद है।
क्या था फर्जी TRP घोटाला
साल 2020 के अक्टूबर माह में मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने अपने एक बयान में रिपब्लिक टीवी पर टीआरपी में हेरफेर करने का आरोप लगाया था। तब मुंबई पुलिस कमिश्नर ने दावा किया था कि रिपब्लिक टीवी चैनल ने अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए कुछ परिवारों को तब भी चैनल चालू रखने के लिए अवैध रूप से पैसे दिए थे।
आरोपों के मुताबिक, भले ही वो परिवार घर पर न हों पर उन्हें टीवी पर रिपब्लिक चैनल चला कर रखने के लिए कहा गया था। इसके अलावा तब मुंबई पुलिस ने टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट (टीआरपी) में हेरफेर करने के आरोप में फक्त मराठी, बॉक्स सिनेमा और रिपब्लिक टीवी के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी। यह सब कुछ तत्कालीन उद्धव सरकार के कहने पर हो रहा था।
उस समय हमें पता चला था कि मूल FIR में रिपब्लिक टीवी का कहीं जिक्र भी नहीं था। दरअसल, मूल एफआईआर में इंडिया टुडे का नाम था। यह FIR हंसा रिसर्च ग्रुप द्वारा दर्ज करवाई गई थी। मामला सामने आने के बाद मुंबई पुलिस के जॉइंट कमिश्नर को यह सच कबूल करना पड़ा था कि ‘फर्जी टीआरपी’ वाली एफआईआर में इंडिया टुडे का भी नाम था।
सितंबर 2023 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मुंबई की एक अदालत में इस पूरे मामले की जाँच कर के चार्जशीट दाखिल की थी। चार्जशीट में भी इस बात की पुष्टि हुई थी कि फर्जी टीआरपी मामले में रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। रिपब्लिक के खिलाफ इस आरोप को आधारहीन बताया गया था।
ED की चार्जशीट से ही यह बात साफ हो गई थी कि मुंबई पुलिस की जाँच की दिशा उन से पूरी तरह से अलग थी। तब उन परिवारों के भी बयान दर्ज हुए थे, जिन पर मुंबई पुलिस ने पैसे लेकर रिपब्लिक टीवी वाला चैनल ऑन रखने के आरोप लगाए थे। हालाँकि उन परिवारों ने अपने बयान में इन आरोपों से इंकार किया था और किसी भी तरह के पैसे आदि लेने की बातों को आधारहीन बताया था।