कर्नाटक हाई कोर्ट ने बुधवार (नवंबर 25, 2020) को रिपब्लिक टीवी की चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर (COO) प्रिया मुखर्जी को 20 दिन का ट्रांजिट बेल दिया है। मुंबई पुलिस ने तथाकथित टीआरपी हेरफेर घोटाले को लेकर प्रिया मुखर्जी के खिलाफ FIR दर्ज किया था।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में आदेश दिया कि 20 दिनों की अवधि के बाद उन्हें राहत के लिए उपयुक्त फोरम का रुख करना होगा। कोर्ट ने कहा कि अगर इस बीच उन्हें गिरफ्तार किया जाता है, तो 2 लाख रुपए और दो श्योरिटी के जमानत बॉन्ड पर रिहा किया जाना चाहिए।
[TRP Scam] Karnataka HC will shortly begin dictation of order in plea seeking anticipatory bail for Republic TV, COO, Priya Mukharjee. @republic @Republic_Bharat #trpscam #republictv pic.twitter.com/jKg5vnpKe4
— Bar & Bench (@barandbench) November 25, 2020
न्यायमूर्ति एचपी संधेश की पीठ ने अपने आदेश में कहा, “जब किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता खतरे में हो तो याचिकाकर्ता राहत माँग सकता है। याचिका में सीमित अवधि के लिए ट्रांजिट जमानत देने के लिए आधार बनाया गया है।”
कोर्ट ने इस आदेश में यह भी कहा कि पुलिस अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का दुरुपयोग कर रही थी। हाई कोर्ट ने कहा, “पुलिस अपना दिमाग नहीं लगा रही है कि संज्ञेय अपराध किया गया है या नहीं। पुलिस को इस बात पर अदालत को संतुष्ट करना चाहिए कि वे एक व्यक्ति को क्यों गिरफ्तार कर रहे हैं।” इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में उन्हें नागरिक के बचाव में आना होगा।
मुंबई पुलिस की दलीलें खारिज
हाई कोर्ट ने मुंबई पुलिस द्वारा उठाई गई उन याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता ‘फोरम शॉपिंग’ में लिप्त है। पीठ ने कहा “जब किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता खतरे में है तो याचिकाकर्ता राहत माँग सकता है। याचिका सीमित अवधि के लिए ट्रांजिट जमानत देने के लिए एक आधार का काम कर रही है।”
गौरतलब है कि टीआरपी हेरफेर घोटाले की जाँच कर रही मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच ने रिपब्लिक टीवी के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर (COO) प्रिया मुखर्जी को मंगलवार (नवंबर 17, 2020) को पूछताछ के लिए तलब किया था।
उल्लेखनीय है कि टीआरपी हेरफेर मामले में हंसा रिसर्च ग्रुप ने मुंबई पुलिस पर बेहद संगीन आरोप लगाए थे। ग्रुप ने कहा था कि मुंबई पुलिस द्वारा उन्हें रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के खिलाफ गलत बयान देने के लिए मजबूर किया जा रहा है। बार और बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, BARC के बार-ओ-मीटर (ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल) का संचालन करने वाली कंपनी ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख करते हुए इस मामले की जाँच मुंबई पुलिस के बजाय केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) को सौंपने की माँग की।