‘दामिनी’ फिल्म का प्रसिद्ध डायलॉग ‘तारीख-पे-तारीख’ आज के दौर में अदालत की सच्चाई है। भारत की अदालतों में वकीलों ने हड़ताल-पे-हड़ताल करके न्याय प्रणाली को बाधित करने का काम किया है। यह देश में पाँच करोड़ लंबित मामलों में ‘तारीख-पे-तारीख’ के प्रमुख कारणों में से एक है।
वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने मॉडरेटर मनोज रघुवंशी के साथ वकीलों की हड़ताल के जटिल मुद्दे का समाधान खोजने के लिए रविवार (4 दिसंबर 2022) को ‘खुल के’ मंच पर ऑनलाइन राउंडटेबल चर्चा की।
सुप्रीम कोर्ट ने हालाँकि बार-बार कहा है कि वकील हड़ताल पर नहीं जा सकते हैं, लेकिन ये निर्देश ‘हड़तालों’ को रोकने में सफल नहीं हो रहे। यह न्याय में देरी के शिकार करोड़ों निर्दोष भारतीयों के लिए एक अभिशाप की तरह है। इस राउंडटेबल चर्चा से ठीक दस दिन पहले गुजरात, तेलंगाना और उत्तराखंड में वकीलों ने काम करना बंद कर दिया था।
सलमान खुर्शीद को यह बताया गया कि उत्तराखंड के तीन जिलों में मौजूद अदालतों में वकील बीते 35 साल से हर शनिवार हड़ताल कर रहे हैं। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने इन हड़तालों को अवैध करार दिया था।
यह मामला जब सुप्रीम कोर्ट के सामने आया था तो कोर्ट ने काफी सख्त टिप्पणी की थी। कई बार नेपाल में भूकंप, पाकिस्तान के एक स्कूल में बम विस्फोट, श्रीलंका के संविधान में संशोधन जैसे ‘मामूली’ वजहों से हड़ताल किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इसे ‘मजाक’ करार दिया था और उच्च न्यायालय के फैसले की पुष्टि की थी।
सलमान खुर्शीद ने खेद व्यक्त करते हुए बताया कि कभी-कभी हड़तालें हिंसक हो जाती हैं, जिसमें काम करने वाले बार के सदस्य के साथ ‘क्रूरता’ की जाती है। राउंडटेबल चर्चा में अधिवक्ता ने खुलासा किया कि कोर्ट द्वारा कई बार यह सिफारिश की गई है कि बार एसोसिएशन में एक शिकायत समिति होनी चाहिए, जो हड़ताल करने के लिए बार एसोसिएशन के हर प्रस्ताव की जाँच करे और उसे मंजूरी दे।
आश्चर्य जताते हुए अधिवक्ता ने सवालिया लहजे में बात आगे बढ़ाई कि क्या ये हड़ताल इसलिए किए जाते हैं क्योंकि ‘कुछ सहयोगी’ काम नहीं करना चाहते हैं और सिर्फ ‘बहाने ढूंढते हैं’। सलमान खुर्शीद ने खुलासा किया कि यह सुनिश्चित करने के लिए कोई सिस्टम नहीं बनाया गया है कि ये हड़ताल न हो।
सलमान खुर्शीद ने कहा कि हालाँकि उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ वकीलों को इस संबंध में ‘अवमानना’ के लिए जेल भी भेजा है, लेकिन जब इसमें सैकड़ों या हजारों वकील शामिल होते हैं तो न्यायाधीशों के लिए स्थिति से निपटना मुश्किल हो जाता है। पैनलिस्ट ने जोर देकर कहा कि अदालतें अवमानना के लिए 5000 वकीलों को जेल नहीं भेज सकती हैं।
सलमान खुर्शीद ने स्पष्ट किया कि ‘कानूनी संस्कृति’ के तहत वकील ‘काली पट्टी’ बाँधकर अपना विरोध जता सकते हैं या एक घंटे ‘देर’ से काम शुरू कर सकते हैं, लेकिन प्रयास यह होना चाहिए कि ‘महत्वपूर्ण मामले’ प्रभावित न हों।
राउंडटेबल चर्चा में सलमान खुर्शीद ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के शब्दों को दोहराया, जिसमें उन्होंने कहा था कि इन हड़तालों के वास्तविक शिकार न तो न्यायाधीश हैं, न ही वकील हैं, बल्कि निर्दोष ‘मुवक्किल’ हैं जो अक्सर बेहद गरीब होते हैं। खुर्शीद ने कहा कि निर्दोष लोगों के अलावा ‘न्याय की व्यवस्था भी शिकार’ हो जाती है।
‘खुल के‘ राउंडटेबल चर्चा के दौरान हड़तालों की उलझन को सुलझाने के मामले पर सलमान खुर्शीद को एक सुझाव जानदार लगा। हड़ताल के लिए सैकड़ों या हजारों वकीलों को जिम्मेदार ठहरा पाने में सुप्रीम कोर्ट की दिक्कत का समाधान है – केवल दो व्यक्तियों को जिम्मेदार ठहरा कर। ये दो होंगे – वो बार मेंबर जिसने हड़ताल के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किया और वो ‘रीडर’ या जिला न्यायाधीश का ‘पेशकार’ जिसने इस प्रस्ताव को ‘स्वीकार’ किया। इस सुझाव पर सलमान मान गए, लेकिन तुरंत एक शर्त जोड़ दी कि चीजें हमेशा ब्लैक एंड व्हाइट नहीं होतीं। कभी-कभी चीजें ‘धुंधली’ होती हैं।
सलमान खुर्शीद ने चर्चा का समापन यह सुझाव देकर किया कि ‘तारीख-पे-तारीख’ कार्यक्रम में उठाए गए इन सभी ‘मुद्दों’ की एक समिति द्वारा पूरी तरह से जाँच की जानी चाहिए। इसमें पुराने न्यायाधीश, नए न्यायाधीश, वकील और ‘आप लोग (‘खुल के’ के दर्शक) मिलकर एक समाधान खोजिए ।