मीडिया के प्रपंच को समझने के लिए यह खबर आदर्श है। मीडिया रिपोर्टिंग में अगर कोई मौलवी अपराध करता हुआ पकड़ा जाए तो अंग्रेजी में उसे ‘Godman’ लिखा जाता है और प्रतीकात्मक चित्र किसी भगवाधारी बाबा का होता है। जब कोई फ़क़ीर अपराधी निकलता है तो उसे तांत्रिक कहा जाता है। जब कोई अपराधी किसी मस्जिद में छिप जाता है तो उसे धर्मस्थान लिखा जाता है।
ऊपर बताए गए प्रपंचों को संपादकीय आदेश मान कर मेरठ में लड़कियों का अंडरगार्मेंट्स चुराने वालों की खबर भी उसी अंदाज में लिखी गई। रिपोर्ट में ‘तंत्र-मंत्र’ शब्द का प्रयोग किया गया।
मीडिया के गिरोह विशेष की पोल खोलने से पहले बता दें कि मामला क्या है। यूपी के मेरठ स्थित कबाड़ी बाजार क्षेत्र में कुछ युवक लड़कियों के अंडरगार्मेंट्स चुराते हुए CCTV फुटेज में कैद हो गए। गिरफ्तार आरोपित का नाम मोहम्मद रोमिन है। फरार आरोपित का नाम मोहम्मद अस्साक है।
CCTV फुटेज के हवाले से बताया गया कि स्कूटी से आए आरोपितों ने बाहर सूख रहे युवती के अंडरगार्मेंट्स चुरा लिए और उनमें से एक मस्जिद में चला गया।
मस्जिद में किस तरह का तंत्र-मंत्र होता है? शायद किसी को नहीं पता… लेकिन मीडिया वालों को है। तभी ‘आज तक’ ने लिखा, “इलाके के लोगों ने आशंका जताई कि यह तंत्र मंत्र का हिस्सा हो सकता है।” ‘हिंदुस्तान’ ने लिखा, “आशंका जताई कि युवती के वस्त्रों का इस्तेमाल वशीकरण या तंत्र मंत्र क्रिया में हो सकता है।” ‘अमर उजाला’ ने लिखा, “व्यापारियों ने अंदेशा जताया है कि दूसरे समुदाय के युवक तंत्र मंत्र क्रिया करने के लिए परिधानों की चोरी करते हैं।” मतलब कई मीडिया संस्थानों ने इस नैरेटिव को आगे बढ़ाया।
वहीं वनइंडिया ने लिखा, “इस घटना को लेकर लोगों का कहना है कि यह करतूत तंत्र-मंत्र की तरफ इशारा कर रही है।” अब सवाल उठता है कि क्या मीडिया नमाज पढ़ने को वेद-पाठ कह सकता है? अगर नहीं, तो फिर भला फकीरों द्वारा किए जाने वाले जादू-टोने या मुल्ला-मौलवियों की प्रक्रियाएँ हिन्दू धर्म की कैसे हो गईं? क्या यह सब जानबूझ कर नहीं किया जाता, ताकि सब यही समझें कि ये हिन्दुओं की करतूत है।
मेरठ में जिस व्यापारी के घर ये चोरी हुई, वहाँ पहले भी इस तरह की घटनाएँ हो चुकी हैं। उनकी एक नाबालिग बेटी के अंडरगार्मेंट्स भी गायब हो गए थे। CCTV फुटेज खँगालने पर इन दोनों का पता चला, तब पुलिस में मामला दर्ज कराया गया। ‘तंत्र-मंत्र’ जैसे शब्दों का मूल संस्कृत में है और इनका इस्तेमाल अपराध की ख़बरों में कर-कर के इन्हें नकारात्मक बना दिया गया है। ऐसे मामलों में मीडिया वही शब्द इस्तेमाल करे, जो इस्लाम में है।