द न्यू इंडियन एक्सप्रेस (TNIE) ने हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें उसने यह भ्रामक दावा किया गया था कि केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय ‘भारतीयों की नस्लीय शुद्धता’ का अध्ययन करने जा रहा है। इस रिपोर्ट में संस्कृति मंत्रालय द्वारा आनुवंशिक इतिहास का पता लगाने और ‘भारत में नस्लों की शुद्धता का पता लगाने’ के लिए अत्याधुनिक डीएनए प्रोफाइलिंग किट और मशीनों पर भी बात की गई है।
लेख में ‘प्यूरिटी ऑफ रेस’ वाला एंगल प्रो. वसंत शिंदे, जो बेंगलुरु में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्य करते हैं, वहाँ से लिया गया था। जबकि TNIE लेख में, भारतीय आबादी के आनुवंशिक इतिहास का पता लगाने के लिए जाँच की खबर को भारत में नस्लों की ‘शुद्धता’ का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं के साथ जोड़ दिया गया था। जबकि ‘जाति’ की अवधारणा विशुद्ध रूप से एक सामाजिक अवधारणा है और इसका कोई जैविक आधार नहीं है।
यहाँ शुद्धता का मतलब भारतीय आबादी के बीच डीएनए हैलोग्रुप की उत्पत्ति का पता लगाना है। दोनों के बीच जानबूझकर पैदा किए संघर्ष से उन पाठकों को काफी परेशानी हुई जो लेख के अवैज्ञानिक दावों से हैरान थे। हालाँकि, जल्द ही, संस्कृति मंत्रालय ने लेख को स्पष्ट रूप से ‘भ्रामक’ बताते हुए खारिज कर दिया।
हालाँकि, कॉन्ग्रेस सांसद राहुल गाँधी ने ख़ारिज होने के बाद भी उस रिपोर्ट को ट्वीट किया, जिस पर पहले से ही ‘तथ्यात्मक रूप से गलत’ का लेबल लगाया गया था और परोक्ष रूप से नाजी जर्मनी में हिटलर की नस्लवादी नीतियों के साथ जोड़ा गया था। फिर भी TNIE के भ्रामक अंश को टैग करते हुए राहुल गाँधी ने ट्विटर पर लिखा, “पिछली बार जब किसी देश में ‘नस्लीय शुद्धता’ का अध्ययन करने वाला संस्कृति मंत्रालय था, तो यह अच्छी तरह से समाप्त नहीं हुआ था। भारत नौकरी की सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि चाहता है, ‘नस्लीय शुद्धता’ नहीं, प्रधानमंत्री।”
The last time a country had a culture ministry studying ‘racial purity’, it didn’t end well.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 31, 2022
India wants job security & economic prosperity, not 'racial purity', Prime Minister. pic.twitter.com/6q9qBAA9l8
बता दें कि संस्कृति मंत्रालय ने 28 मई, 2022 को टीएनआईई के मॉर्निंग स्टैंडर्ड संस्करण में छपे लेख को ‘भ्रामक, शरारती और तथ्यों के विपरीत’ करार दिया। मंत्रालय ने अपने बताया कि यह प्रस्ताव आनुवंशिक इतिहास की स्थापना और ‘भारत में नस्लों की शुद्धता का पता लगाने’ से संबंधित नहीं है बल्कि भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (एएनएसआई) के प्रस्ताव की योग्यता के तहत जाँच की जा रही है।
The Article – Culture Ministry to Study ‘Racial Purity’ of Indians, in Morning Standard on 28th May is misleading, mischievous and contrary to facts. The proposal is not related to establishing genetic history and “trace the purity of races in India” as alluded in article. pic.twitter.com/NMjtxCxia3
— Ministry of Culture (@MinOfCultureGoI) May 31, 2022
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
इस पूरे मामले में जाने-माने जेनेटिक साइंटिस्ट नीरज राय ने जानबूझकर भ्रामक लेख प्रकाशित करने के लिए द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की आलोचना की है। लेख को ‘शरारती’ बताते हुए उन्होंने कहा कि डीएनए अनुसंधान में मानव स्वास्थ्य और इतिहास के बारे में हमारी समझ में सुधार की काफी संभावनाएँ हैं, इसका इस तरह से दुष्प्रचार में उपयोग नहीं होना चाहिए। उन्होंने राहुल गाँधी को टैग करते हुए लिखा, “नस्लीय शुद्धता कोई चीज नहीं है और नस्ल जैविक रूप से समर्थित संदर्भ भी नहीं है। यह राजनेताओं के लिए नस्लवाद का प्रचार करने का बस एक उपकरण रहा है और इसे आनुवंशिक वंश से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।”
Extremely upset to hear this mischievous article by @NewIndianXpress where our research being described as studying “racial purity". DNA research has great potential for improving our understanding of human health and history and should not be used to support discriminatory ideas pic.twitter.com/oj6cl3gEg9
— Niraj Rai (@NirajRai3) June 1, 2022
लेखक और अर्थशास्त्री संजीव सान्याल, जिन्होंने भारतीय इतिहास और भूगोल पर कई किताबें लिखी हैं, ने कहा है कि यह जानबूझकर एक वैज्ञानिक अध्ययन को गुमराह करने का एक उत्कृष्ट मामला है। ” उन्होंने लिखा, “आर्कियो-जेनेटिक्स एक सुस्थापित क्षेत्र है और मानव यात्रा का पता लगाने का प्रयास करता है। और यह स्थापित करता है कि ‘शुद्ध जाति’ जैसी कोई चीज नहीं है। वास्तव में, हम एक ‘शुद्ध’ प्रजाति भी नहीं हैं।”
Classic example of a deliberately misleading article. Archaeo-genetics is a well established field and attempts trace the human journey. If anything it establishes that there is no such thing as "pure race". Indeed, we are not even a "pure" species. pic.twitter.com/JhCmWoig1F
— Sanjeev Sanyal (@sanjeevsanyal) June 1, 2022
JNU के लेखक और वैज्ञानिक आनंद रंगनाथन ने जोर देकर कहा कि नस्ल एक जैविक अवधारणा नहीं है, बल्कि एक सामाजिक अवधारणा है। उन्होंने ट्वीट किया, “जाति कोई वैज्ञानिक अवधारणा नहीं है, शुद्धता तो और भी कम है। न केवल 8 बिलियन मानव बल्कि 99.97% आनुवंशिक रूप से समान हैं, बल्कि आधुनिक मानव जीनोम भी प्राइमेट, प्लांट, बैक्टीरिया, परजीवी और वायरल डीएनए का एक मिशमाश है।”
Race is NOT a scientific concept, purity even less so. Not only are 8 billion Humans 99.97% genetically identical, modern Human genome is but a mishmash of primate, plant, bacterial, parasite, and viral DNA.
— Anand Ranganathan (@ARanganathan72) June 1, 2022
Only FOOLS conflate investigating genetic ancestry with racial purity.