“दिल्ली के पीछे एक दिल्ली, दिल्ली के आगे एक दिल्ली। बोलो कितनी दिल्ली? आगे-आगे दिल्ली, पीछे-पीछे दिल्ली। पीछे-पीछे दिल्ली, आगे-आगे दिल्ली। भीगी दिल्ली, भीगी बिल्ली। भीगी बिल्ली, भीगी दिल्ली। दिल्ली के पीछे पड़ गई दिल्ली। इचक दिल्ली, बीचक दिल्ली, दिल्ली ऊपर दिल्ली, इचक दिल्ली। दिल्ली बन गई बिल्ली। बिल्ली बिचक गई दिल्ली। एक बिल्ली के पीछे दिल्ली, एक दिल्ली के आगे बिल्ली। बोलो कितनी दिल्ली? हम बड़की दिल्ली, तुम छोटकी दिल्ली। हम छोटकी दिल्ली, तुम बड़की दिल्ली। खूब घूमाओ जनता को, जनता बन जाए भीगी बिल्ली।”
ये कोई सस्ता कवि-सम्मलेन के मंच पर कविता पढ़ रहा कोई सस्ता कवि नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय चैनल पर प्राइम टाइम में खबर पढ़ रहा एक बहुत बड़ा पत्रकार है। NDTV पर रवीश कुमार ने कुछ इसी अंदाज़ में संसद में लाए गए उस विधेयक पर टिप्पणी की, जिसमें कहा गया है कि दिल्ली में सरकार से तात्पर्य होगा दिल्ली के उप-राज्यपाल से। वहीं सत्ताधारी आम आदमी पार्टी कह रही है कि ये चुनी हुई सरकार का अपमान है।
रवीश कुमार भला मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरफ से न बोलें, ऐसा कैसे हो सकता है। उन्होंने दिल्ली सीएम का महिमामंडन करते हुए सर्टिफिकेट दे डाला कि उन्होंने पिछले कुछ महीनों में केंद्र सरकार से टकराव वाली राजनीति छोड़ दी थी और साथ ही कहा कि वो वर्षों बाद जंतर-मंतर लौटे हैं।
इस दौरान वो राज्यसभा में अक्सर हंगामा के कारण विवादों में रहने वाले सांसद संजय सिंह का भी गुणगान करना नहीं भूले। रवीश कुमार ने दावा कर डाला कि AAP सरकार के काम को पहचान मिली और सराहना भी हुई।
देशभक्ति और राम मंदिर पर दिल्ली सरकार के ऐलानों के लिए उसकी पीठ थपथपाते हुए संभावना जताई कि केंद्र के साथ सामंजस्य के लिए ऐसा किया जा रहा है। उन्होंने दावा कर डाला कि केंद्र सरकार चुनी हुई दिल्ली सरकार के अधिकारों पर अंकुश लगा रही है। अपनी बातों को सही साबित करने के लिए उन्होंने उमर अब्दुल्लाह जैसों के बयान का समर्थन किया।
सबसे बड़ी बात तो ये कि रवीश कुमार ने तृणमूल कॉन्ग्रेस के इस बार के चुनावी स्लोगन ‘खेला होबे’ का इस्तेमाल किया। आखिर वो एक ‘न्यूट्रल’ पत्रकार जो हैं।
अरविंद केजरीवाल के लंबे-चौड़े भाषण भी इस प्राइम टाइम खबर में दिखाए गए, जिसमें वो कहते दिख रहे हैं कि फिर चुनावों का क्या मतलब रह गया? तो क्या अब AAP ये मान कर अगला चुनाव नहीं लड़ेगी? क्योंकि उसका ही कहना है कि अब दिल्ली सरकार के पास कोई अधिकार ही नहीं है।
असली बात तो ये है कि ‘नेशनल कैपिटल टेरिटरी एक्ट’ में संशोधन कर के उसमें सिर्फ एक चीज जोड़ी गई है, कुछ भी हटाया नहीं गया है। बस 1991 एक्ट में इतना जोड़ा गया है कि दिल्ली में सरकार का तात्पर्य उप-राज्यपाल से होगा।
सेक्शन 24 में लिखा है कि विधानसभा द्वारा पास किए गए कानून उप-राज्यपाल के पास हस्ताक्षर के लिए जाएँगे। साथ ही प्रशासनिक जाँच बिठाने जैसे अधिकारों में कटौती की गई है। बता दें कि दिल्ली पुलिस पहले से ही वहाँ की सरकार के अधीन न होकर केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करती है, ऐसे में चीजों को लिखित में और स्पष्ट किया गया है।
सरकार के फैसलों के लिए उप-राज्यपाल का मत लिए जाने की बात भी कही गई है। बता दें कि नई दिल्ली देश की राजधानी है, ऐसे में वहाँ हर घटना का सम्बन्ध देश की सुरक्षा से जुड़ता है। इसीलिए, राजनीति होने से बचने के लिए दोनों सरकारों के अधिकारों की स्पष्ट व्याख्या ज़रूरी है।
रवीश कुमार… सेक्युलर पत्रकार!!!
— शैलेन्द्र (@kumardeos) March 18, 2021
क्या हालत बना रखे हो बे ??
😂😂#RavishKumar pic.twitter.com/XZ1uDVim05
पूरे प्राइम टाइम में अरविंद केजरीवाल पर रवीश कुमार ने यही दोष लगाया कि उन्होंने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद-370 को निरस्त किए जाने का विरोध नहीं किया। एक ‘संविधान विशेषज्ञ’ को बुला कर भी यही कहलवाया गया।
रवीश कुमार ने इस दौरान अपनी पुरानी भविष्यवाणी भी दिखाई, जो उन्होंने तब किया था, जब सुप्रीम कोर्ट ने एक जजमेंट में उप-राज्यपाल के अधिकारों को लेकर फैसला दिया था। रवीश ने तब कहा था कि खिलाड़ी अब नया खेल लेकर आएँगे। उन्होंने पूछ डाला कि केंद्र सरकार यही सारे अधिकार राष्ट्रपति को क्यों नहीं दे देती है?
- रवीश कुमार को पता होना चाहिए कि राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बिना पूर्ण बहुमत से संसद के दोनों सदनों में पारित बिल भी कानून का रूप नहीं ले पाता।
- रवीश कुमार को पता होना चाहिए कि राष्ट्रपति ही देश की तीनों सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर है।
- रवीश कुमार को पता होना चाहिए कि संसद में अभिभाषण के समय राष्ट्रपति द्वारा ‘मेरी सरकार’ शब्द का प्रयोग किया जाता है।
- रवीश कुमार को पता तो होना चाहिए… लेकिन वो एक ‘न्यूट्रल’ पत्रकार हैं… इसलिए नहीं पता है!
रवीश कुमार ने अपने इस प्राइम टाइम में विपक्षी नेताओं के बयानों के हवाले से भाजपा पर निशाना साधा है। साथ ही सीएम केजरीवाल को अप्रत्यक्ष रूप से सलाह दी है कि वो जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर भी इस्लामी कट्टरपंथी नेताओं का साथ दें, तो वो उनके और लाडले हो जाएँगे। रवीश कुमार ने दिल्ली-बिल्ली करते-करते प्रोपेगेंडा वाली गिल्ली को अपने कुतर्कों के डंडे से दूर मारना तो चाहा, लेकिन वो उनके कमरे में ही गिर गया।