हाथरस में हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना से पूरा देश दुखी है। 14 सितंबर को 4 युवकों ने 19 साल की दलित लड़की को उत्तर प्रदेश स्थित हाथरस में जान से मारने का प्रयास किया। घटना के एक हफ्ते बाद पीड़िता ने पुलिस को बयान दिया कि 4 युवकों ने उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया था। इसके बाद से पीड़िता की स्थिति नाज़ुक बनी हुई थी, अंत में मंगलवार 29 सितंबर 2020 को उसने अस्पताल में दम तोड़ दिया। इस घटना की वजह से पूरे देश के लोग आक्रोश में हैं।
पीड़िता ने अपने बयान में था कि उसके साथ दुष्कर्म की घटना हुई है, लेकिन शुरुआती मेडिकल रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई थी। हाथरस के एसपी ने कहा था कि अलीगढ़ अस्पताल से आई मेडिकल रिपोर्ट में चोट की बात थी, लेकिन दुष्कर्म की पुष्टि नहीं की गई थी। यहाँ तक की डॉक्टर्स ने भी अभी तक दुष्कर्म की पुष्टि नहीं की है, एफएसएल रिपोर्ट आना अभी बाकी है। इस घटना पर समाज का दुःख और आक्रोश ख़त्म नहीं हुआ था कि उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में 22 साल की दलित युवती के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना हुई, लेकिन क्या इस घटना पर भी उतनी ही प्रतिक्रिया आई? सीधा जवाब है- नहीं।
द वायर की कर्मचारी रोहिणी सिंह ने ऐसे अपराधों पर ‘लिबरल’ हिपोक्रेसी की ब्रांड एम्बेसडर का जिम्मा सँभाल रखा है। जैसे ही रोहिणी सिंह ने इस घटनाक्रम में जातिवादी पहलू खोजने का प्रयास किया, वैसे ही उनसे सवाल किया गया। पूछे गए सवाल पर रोहिणी सिंह का जवाब कुछ इस तरह का था।
The girl is on a ventilator fighting for her life. Rape is not about sex as much as it is about power and showing a woman her place. Rapes of Dalit women, by upper caste men, are usually a lesson the rapist wants to give to her community. A Mishra won’t understand that. But try. https://t.co/AYfEGwP81C
— Rohini Singh (@rohini_sgh) September 28, 2020
रोहिणी ने अपने ट्वीट में दावा करते हुए कहा कि बलात्कार सिर्फ सेक्स से संबंधित नहीं है, यह महिलाओं को उनका स्थान बताने के लिए भी किया जाता है। रोहिणी के अनुसार ऊँची जाति वाले लोग नीची जाति की महिलाओं के साथ दुष्कर्म इसलिए करते हैं, जिससे वह निम्न समुदाय के लोगों को संदेश दे सकें। जिस ट्विटर यूज़र ने प्रश्न किया था उसका उपनाम मिश्रा था जो कि एक ऊँची जाति है। इस बात को आधार बनाते हुए रोहिणी ने कहा कि वह इस बात को नहीं समझ सकती, जबकि रोहिणी खुद एक ऊँची जाति से आती हैं। रोहिणी सिंह ने बलरामपुर में हुई बलात्कार और हत्या की घटना पर किस तरह की प्रतिक्रिया दी होगी? जब उसे पता लगा होगा कि 22 साल की दलित लड़की के साथ दुष्कर्म करने वाले शाहिद और सलील थे।
The usual suspects are thrilled the suspects in the #Balrampur gang rape are Muslims. But shouldn’t they be angry that the state is so lawless that unspeakable brutality against women & children are happening so frequently?The culprits have to be punished severely. But will they?
— Rohini Singh (@rohini_sgh) September 30, 2020
जब एक दलित लड़की के साथ दुष्कर्म करने वाले युवक उच्च जाति के नहीं थे, बल्कि दो मुस्लिम युवक इस घटना के लिए ज़िम्मेदार है। ऐसे में यह मामला क़ानून व्यवस्था का विषय बन गया, साफ़ देखा जा सकता है कि कैसे एक ही तरह की घटनाओं के सामने होने पर लोगों का नज़रिया बदल जाता है। अगर अपराधी उच्च जाति के हिन्दू न होकर मुस्लिम युवक हैं, तब अपराध की परिभाषा की बदल जाती है।
इसके बाद उत्तर प्रदेश पुलिस पर उचित कार्रवाई न करने का आरोप लगाते हुए रोहिणी सिंह ने कुछ ऐसा लिखा,
हाथरस में एक दलित बेटी का गैंगरेप हुआ, उसकी जीभ काटी गयी, शरीर पर अनगिनत ज़ख्म दिए गए और मरने के लिए छोड़ दिया गया। पहले पुलिस ने उसे ‘छेड़खानी’ समझा, दबाव बना तो रेप का मुक़दमा दर्ज हुआ, फिर उसे फेक न्यूज भी बताया गया।
— Rohini Singh (@rohini_sgh) September 29, 2020
आज वो बेटी नहीं रही, यही UP का आज है, बाक़ी सब रामराज है।
साफ़ देखा जा सकता है कि रोहिणी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से नाराज हैं। अब यहाँ कुछ ऐसा हुआ कि कॉन्ग्रेस शासित राजस्थान के बारां जिले में 13 और 15 साल की नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म की घटना हुई। दोनों ने इस बात को कैमरे पर स्वीकार किया कि उनके साथ दुष्कर्म हुआ था। लड़कियों ने आरोप लगाया कि आरोपित उन्हें कोटा, अजमेर और जयपुर लेकर गए और वहाँ उनके साथ पूरे 3 दिनों तक लगातार दुष्कर्म किया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार आरोपित भी नाबालिग थे।
इस घटना पर ट्वीट करते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने लिखा कि हाथरस और राजस्थान में हुई घटना की तुलना करना अनुचित है, क्योंकि लड़कियों ने मजिस्ट्रेट के सामने यह बात स्वीकार की है कि वह अपनी मर्ज़ी से लड़कों के साथ गई थीं।
कुल मिला कर अशोक गहलोत के मुताबिक़ 2 नाबालिग लड़कियों ने मजिस्ट्रेट के सामने जो कुछ कहा वह अपनी मर्ज़ी से कहा और इसके पहले जो कैमरे पर कहा था वह वह गलत था। नाबालिग के साथ भले ही कोई भी घटना क्यों न हुई हो, भले मर्ज़ी के साथ लेकिन वह बलात्कार की श्रेणी में आएगी। रोहिणी सिंह ने पहले तो अशोक गहलोत के ट्वीट को रीट्वीट किया, लेकिन जब उनकी बात में संदेह महसूस हुआ तब उसे अनडू (Undo) कर दिया।
बलात्कार की घटनाओं में तमाम पहलू देख समझ कर आक्रोश व्यक्ति करना रोहिणी सिंह की हिप्पोक्रेसी ही कही जाएगी। इस तरह के हिप्पोक्रेट अगर यह कहते कि उन्हें दोनों घटनाओं में इंसाफ चाहिए, वैसी आलोचना में तर्क है। पहली घटना में रोहिणी सिंह समेत कई लिबरल्स ने आरोपित की जाति देखी और आलोचना करना शुरू कर दिया। भले लोग उनसे कह रहे थे कि इसमें जाति लेकर आने का क्या मतलब।
पत्रकार पल्लवी घोष को इतने ज्यादा अपशब्द कहे गए जब उन्होंने कहा कि बलात्कार जैसी घटना को जाति तक सीमित नहीं कर देना चाहिए।
Lets not reduce the heinous crime against the hathras victim as a crime against a dalit – its a reflection of how mean and cruel we have become – we have failed the women of our country yet again
— pallavi ghosh (@_pallavighosh) September 29, 2020
उन पर यह आरोप भी लगाया गया कि कि वह दलितों को उपदेश दे रही हैं कि वह अपनी कहानी किस तरह बताएँ।
Lets not reduce the heinous crime against the hathras victim as a crime against a dalit – its a reflection of how mean and cruel we have become – we have failed the women of our country yet again
— pallavi ghosh (@_pallavighosh) September 29, 2020
अगर उच्च वर्ग से आने वाले दलितों को यह उपदेश दे रहे हैं कि उन्हें अपनी कहानी कैसे बतानी है तो दूसरे मामले में पहचान को केंद्र में क्यों नहीं रखा जा रहा है? जिसमें दो मुस्लिम युवकों ने एक दलित लड़की के साथ बलात्कार किया? क्या आपराधिक मामलों में जाति की तरह मजहब अहम पहलू नहीं होता है? यह विचार खुद में कितना विचित्र है, क्योंकि समाज में मजहब की भूमिका अहम होती है, चाहे वह लोगों की मानसिकता को आकार देना ही क्यों न हो। तब हम मजहब को क्यों पीछे छोड़ देते हैं? लोग कुछ ही सालों में ‘आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता से हिन्दू आतंकवाद’ पर चले आए हैं। ठीक इसी तरह सिर्फ कुछ घंटों में ही ‘बलात्कार करने वालों की जाति होती है से बलात्कार करने वालों का कोई मजहब नहीं होता है’ पर आ गए।