सुप्रीम कोर्ट, अनुच्छेद 370 के निरस्त होने और जम्मू-कश्मीर के दो संघ शासित प्रदेशों- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजन के बाद कश्मीर में तथाकथित संचार शट डाउन से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रहा है। इसी दौरान एक दिलचस्प वाकया हुआ। सुनवाई के दौरान, IndiaSpend के झूठ का पर्दाफ़ाश करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में ऑपइंडिया की एक रिपोर्ट का हवाला दिया गया।
सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उन आरोपों के मुद्दे को उठाया कि कश्मीर के लोग राज्य में स्वास्थ्य सेवा तक नहीं पहुँच पा रहे हैं।
Mehta: We are alive to the problems and we have dealt with the problems. The common man is not suffering
— Bar & Bench (@barandbench) November 21, 2019
तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि सरकार की एक योजना (आयुष्मान भारत) है, इसमें स्वास्थ्य सुविधा का लाभ कैशलेस भी उठाया जा सकता है। इस योजना के तहत इस साल 5 अगस्त से कुल 11468 मामले दर्ज किए गए हैं।
Mehta: The website IndiaSpend was caught spreading misinformation.
— Bar & Bench (@barandbench) November 21, 2019
Mehta places reliance on a report by OpIndia to make this submission.@OpIndia_com @IndiaSpend
इसके अलावा, तुषार मेहता ने एक IndiaSpend की एक रिपोर्ट की बात की, जिसमें आरोप लगाया गया था कि कश्मीर में कई लोग स्वास्थ्य सेवा तक नहीं पहुँच पा रहे। इसके बाद तुषार मेहता ने ऑपइंडिया रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें IndiaSpend द्वारा फैलाए जा रहे झूठ का पर्दाफ़ाश किया गया।
दरअसल, सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में जिस रिपोर्ट का ज़िक्र किया, वो एक लेख था। उस लेख में अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद IndiaSpend और द वायर द्वारा फैलाए गए झूठे दावों का कच्चा-चिट्ठा था। लेख में, IndiaSpend ने आँकड़ों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया और यह दावा किया कि अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद कश्मीर में स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएँ लगातार बढ़ रही हैं।
“रोगी अनिच्छुक, स्वास्थ्य सेवा तक पहुँचने में असमर्थ” इस सब-हेडिंग के साथ, द वायर ने फ़ेक न्यूज़ IndiaSpend का यह कहते हुए उल्लेख किया कि जम्मू-कश्मीर में मरीज 5 अगस्त 2019 से स्वास्थ्य सेवा तक नहीं पहुँच पाए हैं, जिससे यह धारणा बनाई जा सके कि कश्मीर के लोग मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे हों। ताज्जुब इस बात पर होता है कि वे इसी सब-हेडिंग में यह भी बताते हैं, “यहाँ तक कि एक सामान्य स्थिति में, कुछ लोग विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य सेवा तक पहुँचते हैं।” लिहाज़ा यह बड़ा अटपटा सा लगता है कि इस मामले में, द वायर और IndiaSpend ने इसे अनुच्छेद-370 के उन्मूलन से कैसे जोड़ दिया, यह अभी तक समझ से परे है।
लेख में कहा गया है कि अगस्त में अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद, जुलाई की तुलना में 44.5% कम रोगियों ने IMHANS का दौरा किया। हालाँकि, वे यह भी कहते हैं कि यह डेटा अनिर्णायक है क्योंकि रोगियों की संख्या मई में भी कम थी। वहीं, दिलचस्प बात यह है कि कश्मीर में रिपोर्ट किए गए सबसे अधिक मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों को अनुच्छेद-370 को निरस्त करने के एक महीने पहले जुलाई में था। सबसे कम मई में था।
पूरे लेख ने अनिवार्य रूप से पाठकों को यह बताने के लिए भ्रमित करने की कोशिश की गई थी कि सबसे पहले, मरीज स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुँचने में असमर्थ हैं और दूसरी बात यह है कि इसके कारण, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे अनुच्छेद-370 के निरस्त होने के बाद बढ़ रहे हैं। ऑपइंडिया ने अपने लेख के माध्यम से इन दोनों ही दावों की पोल खोल कर रख दी थी।
IndiaSpend फ़र्ज़ी ख़बरे प्रचारित-प्रसारित करने का आदी है। फ़िलहाल, अब यह अपनी फर्ज़ी ख़बरों की दुकान बंद कर चुका है। अपने बड़े एजेंडे और संदिग्ध ट्रैक रिकॉर्ड के साथ, IndiaSpend, Factchecker.in ने चुनिंदा रिपोर्टिंग द्वारा हिंदूफोबिक प्रचार को आगे बढ़ाने का प्रयास किया था। इसके लिए वे ऐसे अपराध चुनते थे, जिसमें अभियुक्त कथित रूप से हिन्दू थे और इसे ‘घृणित अपराध’ के रूप में संदर्भित किया जाता था। जबकि उन अपराधों को जानबूझकर अनदेखा किया गया था, जिसमें अपराधी समुदाय विशेष के होते थे और पीड़ित पक्ष के तौर पर हिन्दू होते थे।
Factchecker.in की ‘हेट क्राइम वॉच’ पहल, देश भर में घृणित अपराधों के एक कथित ट्रैकिंग टूल के रूप में शुरू हुई थी। इसके बाद जल्द ही इसने न केवल हिन्दूफोबिक सामग्री को अपनी रिपोर्टिंग को सीमित करके, बल्कि मजहब विशेष द्वारा किए गए अपराधों को भी पाक-साफ़ करने और हिन्दुओं के ख़िलाफ़ अपने असली रंग को उजागर करना शुरू कर दिया। एक बार तो IndiaSpend के ‘फैक्टचैकर’ पत्रकार को बेगूसराय की एक नाबालिग दलित पीड़िता से छेड़छाड़ करने की कोशिश करते हुए पकड़ा गया था।
फैक्टचैकर ने भारत के कुछ हिस्सों में कश्मीरियों पर कथित हमलों के साथ आतंकवादी हमले की तुलना पुलवामा आतंकी हमले से की। उसने दावा किया कि उन्होंने ऐसे हमलों को ‘घृणित अपराध’ के रूप में शामिल नहीं किया है क्योंकि यह धार्मिक पहचान के मानदंडों से प्रेरित नहीं है, क्योंकि इस तरह के हमले धार्मिक पहचान से नहीं बल्कि पीड़ितों की क्षेत्रीय पहचान से प्रेरित दिखाई देते हैं।
नोट: कार्यवाही की पूरी जानकारी का इंतज़ार है और नई जानकारी सामने आने पर यह ख़बर अपडेट की जाएगी।