Sunday, December 22, 2024
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कभी एक्टिविस्ट, कभी सेपरेटिस्ट तो कभी अमेरिकी नागरिक… जो पन्नू भारत में हमले की देता है धमकी, उसे ‘आतंकवादी’ लिखने में ‘द वायर’ की फटती है: यह दोगलापन नहीं तो और क्या

आतंकियों और देश विरोधियों को विशिष्ट और विद्वानों जैसा प्रदर्शित करना द वायर जैसे संस्थानों की पुरानी आदत रही है। पन्नू को भी 'एक्टिविस्ट' बताने का यह कोई पहला मौक़ा नहीं है। इससे पहले 19 अक्टूबर, 2024 को विकास यादव के प्रत्यर्पण से जुड़ी एक खबर में भी पन्नू को द वायर ने 'प्रो खालिस्तान एक्टिविस्ट' (खालिस्तान समर्थक) बताया।

गुरपतवंत सिंह पन्नू खालिस्तानी आतंकी संगठन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) का सरगना है। आए दिन भारत पर हमले की धमकी देता है। रोज भारत तोड़ने की बात करता है। लेकिन प्रोपेगेंडा पोर्टल ‘द वायर’ इस खालिस्तान आतंकी के नाम के पहले टेरेरिस्ट (आतंकवादी) नहीं लिख पाता है। कभी उसे ‘एक्टिविस्ट’ तो कभी ‘अमेरिकन सिटीजन (अमेरिकी नागरिक)’ बताता है।

सोमवार (21 अक्टूबर, 2024) को ‘चिंता की कोई बात नहीं, मैं सुरक्षित हूँ: विकास यादव ने अमेरिकी मुकदमे के बाद परिवार से बताया’ शीर्षक के साथ प्रकाशित खबर में भी वायर ने पन्नू को खालिस्तान समर्थक ‘एक्टिविस्ट’ लिखा। हालाँकि सोशल मीडिया में इसको लेकर आलोचना होने के बाद ‘द वायर’ ने चुपचाप इसे ‘सिख सेपरेटिस्ट (सिख अलगाववादी)’ में बदल दिया है। लेकिन आतंकवादी कहने का साहस द वायर नहीं जुटा पाया है।

आतंकियों और देश विरोधियों को विशिष्ट और विद्वानों जैसा प्रदर्शित करना द वायर जैसे संस्थानों की पुरानी आदत रही है। पन्नू को भी ‘एक्टिविस्ट’ बताने का यह कोई पहला मौक़ा नहीं है। इससे पहले 19 अक्टूबर, 2024 को विकास यादव के प्रत्यर्पण से जुड़ी एक खबर में भी पन्नू को द वायर ने ‘प्रो खालिस्तान एक्टिविस्ट’ (खालिस्तान समर्थक) बताया।

यहाँ भी उसे आतंकी लिखने की जहमत नहीं उठाई गई। यही शब्दावली 18 अक्टूबर, 2024 को उपयोग की गई। 15 अक्टूबर, 2024 को एक खबर में पन्नू को अमेरिकी नागरिक बता कर इति श्री कर ली गई। द वायर ने अपने संपादकीय दिवालिएपन का उदाहरण 17 जून, 2024 को भी देखने को मिला। इस दिन पन्नू मामले में गिरफ्तार निखिल गुप्ता पर एक खबर में द वायर ने पन्नू को ‘सिख वकील’ बता डाला।

पन्नू वायर के लिए ‘सिख लॉयर’

द वायर में यह मूर्खता और चालाकी कोई अदना सा कॉपी राइटर करता हो, यह भी बात नहीं है। असल में इसके शीर्ष में बैठे लोग ही पन्नू को आतंकी नहीं मानते। 1 मई, 2024 को द वायर के फाउंडर और वामपंथी पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन ने एक संपादकीय कॉपी में पन्नू को ‘खालिस्तानी प्रचारक’ बताया था।

द वायर केवल पन्नू ही नहीं बल्कि जून, 2023 में कनाडा में मारे गए आतंकी हरदीप सिंह निज्जर को लेकर भी बड़ा सम्मान रखता है। द वायर अलग-अलग समय पर निज्जर को कभी कनाडाई नागरिक तो कभी मात्र खालिस्तानी एक्टिविस्ट बताता आया है।

निज्जर को बताया ‘खालिस्तानी एक्टिविस्ट’

निज्जर को भी आतंकी लिखने में द वायर को ज्वर आता है जबकि उसकी सोशल मीडिया में बंदूकों के साथ फोटो तैरती हैं। निज्जर खालिस्तान टाइगर फ़ोर्स (KTF) का मुखिया था, यह संगठन हिंसा के जरिए खालिस्तान बनाना चाहता है। इन सबके बाद भी द वायर उसे आतंकी नहीं लिख पाता।

जिस पन्नू को ‘सिख वकील’ बताता है वायर, वह असल में कितना खतरनाक?

द वायर जिस पन्नू का नाम बड़ी इज्जत से लेता है और आतंकी बताने में डरता है, वह असल में एक आतंकी है और भारत का भगोड़ा अपराधी है। पन्नू के खिलाफ देश की जाँच एजेंसी NIA ने दिल्ली में मुकदमा दर्ज किया हुआ है। वह इस मामले NIA द्वारा भगोड़ा घोषित किया गया है। पन्नू की सम्पत्तियाँ भी सरकार अटैच कर चुकी है। यह वही पन्नू है जो आए दिन पीएम मोदी को मारने, भारतीय राजनयिकों को मारने और भारत तोड़ने की बात करता है।

द वायर के लिए केवल एक ‘अमेरिकी वकील’ पन्नू कनाडा और अमेरिका में ‘सिख रेफरेंडम’ आयोजित करता है। इसका उद्देश्य यह दिखाना होता है कि कैसे कुछ सिख अलग ‘खालिस्तान’ चाहते है। हाल ही में उसने एयर इंडिया के विमानों को उड़ाने की धमकी दी है। रोज-रोज वीडियो के माध्यम से पन्नू धमकियाँ देता रहता है लेकिन द वायर के लिए वह एक सामान्य आदमी है।

भारतीय राजनयिकों पर हमले की मांग करता पन्नू

जब यह बात स्पष्ट है कि पन्नू आतंकी है और निज्जर आतंकी था, तो आखिर द वायर इन्हें यह क्यों नहीं लिख पाता। वह कभी इन्हें एक्टिविस्ट तो कभी ‘वकील’ और ज्यादा बवाल होने पर ‘अलगाववादी’ बता कर अपना पल्ला झाड़ लेता है। दरअसल, द वायर उसी प्रोपेगेंडा जमात का हिस्सा है जो इस्लामी आतंकी बुरहान वानी को ‘हेडमास्टर का बेटा’ बताती है।

यह वही जमात है जो आज भी कश्मीर के इस्लामी आतंकियों को ‘मिलिटेंट’ (लड़ाका) कहती है। यह वही जमात है जो हमेशा दंगाइयों के पक्ष में खड़ी होती है। इसे दुर्गा पूजा पर होने वाले हमले भले ना दिखें, लेकिन उसके बाद होने वाली करवाई जरूर दिखती है। इसे जवानों के घर आते ताबूत भले ही ना दिखें, लेकिन आतंकियों के जनाजे जरूर दिखते हैं।

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अर्पित त्रिपाठी
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