Monday, November 25, 2024
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इजरायल का Iron Dome वाशिंगटन पोस्ट को खटका… तो आतंकियों के हाथों मर ‘शांति’ लाएँ यहूदी?

इस लेख में बड़ी चालाकी से इस बात की चर्चा तक नहीं की गई है कि ताज़ा संघर्ष हमास द्वारा रॉकेट्स छोड़ने के साथ शुरू हुआ।

इजरायल और फिलिस्तीन के संघर्ष में जहाँ अधिकतर लोग आतंकवादियों के सफाई के लिए यहूदी मुल्क की प्रशंसा कर रहे हैं, वहीं मीडिया का एक वर्ग ऐसा है जो मान ही नहीं सकता है कि इस्लामी कट्टरता या आतंकवाद जैसी किसी चीज का अस्तित्व भी है और इसीलिए वो लगातार इजरायल को बदनाम करने में लगा हुआ है। ‘वाशिंगटन पोस्ट’ के एक लेख में इजरायल के नागरिकों की सुरक्षा करने वाले ‘आयरन डोम’ को इस हिंसा का कारण बताया गया है।

बता दें कि इजरायल का ‘आयरन डोम’ एक एरियल एंटी-मिसाइल सिस्टम है जो गाज़ा की तरफ से आने वाले रॉकेट हमलों की पहचान करता है और फिर उन्हें मार गिराया जाता है जिससे यहाँ के नागरिकों को नुकसान नहीं होता। पिछले एक दशक में इसने हमास के हजारों ऐसे रॉकेट्स को रोका है, जो इजरायल में तबाही मचा सकते थे। ‘वाशिंगटन पोस्ट’ का कहना है कि इस के कारण इजरायल समस्या के समाधान में ‘उत्तेजना’ नहीं दिखा रहा।

ये ‘आयरन डोम’ सिस्टम किसी चमत्कार से कम नहीं है, जो शॉर्ट-रेन्ज रॉकेट्स का काल है। ये हमास की तरफ से आने वाले 90% रॉकेट्स को ब्लॉक करता है। विशेषज्ञ इसे इजरायल का ‘इन्सुरेंस पॉलिसी’ भी बताते हैं। हमास एक बार में दर्जनों रॉकेट्स छोड़ता है, इस उम्मीद में की संख्या ज्यादा होने पर एकाध अपने लक्ष्य पर लग जाए। अमेरिका का ‘पेट्रियट सिस्टम’ भी तुलनकतमक रूप से इसके पीछे है।

क्या मीडिया का ये वर्ग चाहता है कि कोई देश अपनी सुरक्षा न करे और अपने लोगों को सिर्फ इसीलिए मरने के लिए छोड़ दे, क्योंकि हमला इस्लामी कट्टरपंथियों व आतंकियों की तरफ से किया जा रहा है? अपनी सुरक्षा की व्यवस्था करना भी अब पाप हो गया क्योंकि इससे ‘समाधान की उत्तेजना’ कम होती है? सोचिए, अगर ये तकनीक नहीं होती तो पिछले दो हफ़्तों से गाज़ा की तरफ से रॉकेट्स की जो बरसात की गई है उससे एक छोटे से देश में कितनी भीषण तबाही मचती!

‘ओपन यूनिवर्सिटी ऑफ इजरायल’ के प्रोफेसर और ‘राजनीतिक वैज्ञानिक’ यागिल लेवी द्वारा लिखे गए इस लेख में इस ‘आयरन डोम’ को हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है, क्योंकि ये इजरायल को गाज़ा के हमलों से बचाव के अलावा जवाबी कार्रवाई के लिए ताकत प्रदान करता है। लेख में लिखा गया है कि इससे गाज़ा पर बमबारी का खर्च कम हो जाता है, इजरायल को नागरिकों के जानमाल की क्षति की चिंता नहीं रहती और गाज़ा समस्या का राजनीतिक समाधान नहीं निकल पाता।

लेख की भाषा पर गौर कीजिए, “इस संघर्ष से पहले तक पिछले एक दशक में इजरायल के मायर 18 नागरिक ही हमास के हमले में मारे गए हैं। इससे इजरायल पर एक घरेलू दबाव पैदा होता है कि वो गाज़ा के क्षेत्रों पर कब्ज़ा करे। हमास को उखाड़ फेंके। दक्षिणपंथी गुट की तरफ से ऐसा दबाव आता है। जब-जब हमास ने टनल का प्रयोग कर के इजरायल में घुसना चाहा, इजरायल ने जमीनी ऑपरेशन लॉन्च कर दिया।”

मीडिया संस्थान के कहने का मतलब ये है कि इजरायल को अपने लोगों को मरने के लिए छोड़ देना चाहिए और एकमात्र प्राथमिकता आतंकी संगठन हमास की माँगों को संतुष्ट करने को दिया जाना चाहिए। लेकिन, इस लेख में बड़ी चालाकी से इस बात की चर्चा तक नहीं की गई है कि ताज़ा संघर्ष हमास द्वारा रॉकेट्स छोड़ने के साथ शुरू हुआ। अगर हमास को समाधान चाहिए तो उसने हिंसा का रुख क्यों अख्तियार किया?

‘वाशिंगटन पोस्ट’ को इस बात से परेशानी है कि UN द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से इजरायल और ‘सावधान’ हो गया है। तोप, रॉकेट्स और ड्रोन्स के माध्यम से पश्चिमी देश भी अपने दुश्मनों पर दूर से हमले करते रहे हैं, फिर इजरायल ने क्या गलत किया? खुद बराक ओबामा ने राष्ट्रपति रहते ‘आयरन डोम’ के लिए 2014 में 225 मिलियन डॉलर (आज की तारीख़ में 1642.95 करोड़ रुपए) की फंडिंग दी थी। अमेरिका ने इस पर गर्व जताया था।

2014 के युद्ध के बाद ये इजरायल-फिलिस्तीन सीमा पर सबसे खतरनाक स्थिति है। ‘वाशिंगटन पोस्ट’ का कहना है कि इसने इजरायल को ‘सुरक्षा का झूठा एहसास’ दे रखा है। लेवी ये चर्चा करना भी नहीं भूले हैं कि ये हमेशा के लिए नहीं रहेगा और तकनीक की ये सफलता की जगह ‘राजनीतिक समाधान’ निकलना चाहिए। सवाल ये है कि निर्दोष नागरिकों की जान बचाने वाली तकनीक से किसी को क्यों कोई समस्या होनी चाहिए?

एक तो यहूदी पूरी दुनिया में काफी कम संख्या में बचे हुए हैं और सदियों से ‘Anti-Semitism’ का शिकार रहने, यूरोप/रोमन/इस्लामी ताकतों के हाथों नरसंहार झेलने और अपने मुल्क इजरायल के इस्लामी मुल्कों से घिरा होने के बावजूद अगर उन्होंने अपनी सुरक्षा के तगड़े इंतजाम कर के जानमाल की क्षति से बचने की व्यवस्था की है तो इसमें समस्याजनक क्या है? लिबरल गिरोह अब इस बात से भी परेशान है कि इजरायल अब खुद की सुरक्षा में भी इतना आक्रामक है।

ये वही लोग हैं, जो जम्मू कश्मीर में भी आतंकियों द्वारा आम नागरिकों की हत्या पर चुप्पी साध लेते हैं लेकिन जब भारतीय सेना आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करती है तो मानवाधिकार का बाग अलापने लगते हैं। इनकी चिरकाल की इच्छा ये रहती है कि कोई भी देश इस्लामी आतंकवाद से न तो अपनी सुरक्षा की व्यवस्था करे और न ही हमलों के प्रत्युत्तर में वार करे। तो क्या यहूदी ‘अल्लाहु अकबर’ चिल्लाते हुए खुद का गला काट लें ताकि ‘वाशिंगटन पोस्ट’ जैसे संस्थान संतुष्ट हों?

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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