‘पत्रकार’ राजदीप सरदेसाई एक बार फिर पत्रकारिता का एक या शायद दो पाठ पढ़ते हुए नज़र आए, जब उन्होंने केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी से केंद्र सरकार और पंजाब-हरियाणा के ‘किसानों’ के बीच कृषि सुधार क़ानूनों पर जारी खींचतान को लेकर इंडिया टुडे के प्राइम टाइम पर शुक्रवार (18 दिसंबर 2020) को सवाल पूछा।
इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने हरदीप सिंह पुरी से मोदी सरकार पर सवाल पूछते हुए कहा कि क्यों सरकार आंदोलन करने वाले किसानों को भरोसा दिलाने में असफल रही है। ऐसा करते हुए राजदीप ने केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री (civil aviation minister) के मुँह में शब्द डालने का प्रयास किया जिस पर उन्होंने गुस्साते हुए कहा, “राजदीप क्या आप एक तटस्थ प्रस्तोता (objective anchor) हैं या ऐसे लोगों के प्रवक्ता हैं जो झूठे प्रचार या प्रोपेगेंडा को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं।”
एक ट्विटर यूज़र द्वारा साझा किए गए इंडिया टुडे के इस साक्षात्कार के इस हिस्से में केंद्रीय मंत्री राजदीप सरदेसाई को याद दिलाते हैं कि किस तरह इंडिया टुडे के पत्रकार ने नागरिक उड्डयन के मुद्दे पर सवाल पूछते समय ऐसा ही किया था। विपक्ष द्वारा किसानों को भड़काए जाने की बात करते हुए झल्ला कर हरदीप सिंह पुरी ने कहा, “मुझे आपको सावधान करने की ज़रूरत है, यह पत्रकारिता नहीं है। तब भी मुझे आपके सामने तथ्य रखने पड़े थे और आप फिर वही काम कर रहे हैं।”
Sir @HardeepSPuri Shows Madison Boxer his place hits the ball outside the stadium. Aur kitna beizzat hoyega @aroonpurie ka sikandar. 😂pic.twitter.com/zmRSbEE9SE
— SuperStar Raj 🇮🇳 (@NagpurKaRajini) December 19, 2020
जब राजदीप सरदेसाई ने पूछा कि क्यों मोदी सरकार प्रदर्शन कर रहे किसानों को पहले भरोसा नहीं दिला पाई जब वह सड़कों पर उतरने वाले थे। हरदीप सिंह पुरी ने अपने शब्दों में बिना किसी तरह का टाल मटोल किए बिना कहा कि केंद्र सरकार हमेशा से किसानों का हित सुनिश्चित करना चाहती थी। लेकिन विपक्ष शुरू से ही इस मुद्दे पर राजनीति कर रहा है। केंद्रीय मंत्री के मुताबिक़ चाहे खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस मुद्दे पर बयान देना हो या केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर द्वारा दिया गया लिखित आश्वासन हो। केंद्र सरकार प्रदर्शन कर रहे किसानों की चिंताओं पर अपना पक्ष रखने से पीछे कभी नहीं हटी है। केंद्र सरकार की बात दोहराते हुए हरदीप सिंह ने कहा कि कृषि सुधार क़ानूनों से जुड़ी किसी भी तरह की समस्या का हल बातचीत से ज़रिए ही निकाला जाएगा।
इसके बाद उन्होंने राजदीप को याद दिलाया कि जब यह क़ानून संसद के उच्च सदन में पारित किया गया था तब विपक्ष ने कितना हंगामा किया था। किस तरह कॉन्ग्रेस, टीएमसी, डीएमके और सीपीएम ने इसके विरोध में नारे लगाए थे, शोर मचाया था और क़ानून की प्रतियाँ फाड़ी थीं।
मेरा सुझाव है कि एक तटस्थ प्रस्तोता की तरह बर्ताव करिए: हरदीप सिंह पुरी
यह कहते हुए हरदीप सिंह ने ‘पत्रकार’ राजदीप सरदेसाई को नसीहत दी। उन्होंने राजदीप को सुझाव देते हुए कहा कि ऐसे लोगों को अलग कर देना चाहिए जो उल्टी जुबान बोलते हैं और अपनी विश्वसनीयता बनाए रखते हुए एक वस्तुनिष्ठ प्रस्तोता की तरह बर्ताव करने की बात कही।
यहाँ उल्लेखनीय बात है कि जब से मोदी सरकार कृषि सुधार क़ानून लेकर आई है तब से विपक्षी दल और वामपंथी मीडिया ने इसका इस्तेमाल अपने ठहरे हुए करियर में प्राण फूँकने के लिए किया है। कृषि सुधार क़ानूनों में गैर मौजूद गलतियों का उल्लेख करते हुए विपक्षी दलों ने इसके बारे में खूब झूठी ख़बरें फैलाई हैं और किसानों को जम कर भड़काया है।
किसान संगठनों ने कृषि क़ानूनों को वापस लेने की बात करते हुए सरकार के साथ 6वीं राउंड की बातचीत को खारिज कर दिया था। जबकि केंद्र सरकार किसानों की चिंता को मद्देनज़र रखते हुए इसमें संशोधन करने के लिए तैयार थी लेकिन कृषि संगठन के नेताओं का कहना था कि वह क़ानून वापस लेने के अलावा किसी और बात पर सहमत नहीं होंगे।
क्या हैं कृषि सुधार क़ानून
देश में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सबसे अहम कारणों में से एक है, किसानों को सही बाज़ार मिले जिससे उन्हें अपने उत्पादन के लिए सही दाम मिले। इस मुद्दे पर देश की तमाम प्रदेश सरकारों ने APMC (Agricultural Produce Market Regulation Acts) लागू कर दिया है, जिससे किसानों को होलसेल मार्केट में शामिल होने का मौक़ा मिलेगा।
इस बिल का उद्देश्य राज्यों की APMC को निष्प्रभावी करना है ही नहीं। ये किसानों को मौजूदा APMC का अतिरिक्त विपणन चैनल प्रदान करेगा। APMC अपने प्रचलन की दक्षता में और सुधार करें, इसके लिए ये क़ानून उन्हें प्रोत्साहित करेगा।
मोदी सरकार ने हाल ही में 3 कृषि सुधार क़ानून पारित किए हैं जिससे किसानों को उनकी पैदावार के लिए उचित दाम मिले और इसकी व्यापार प्रक्रिया सहज हो जाए। यह तीनों क़ानून कुछ इस प्रकार हैं:
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) क़ानून 2020
इस क़ानून में ऐसी प्रक्रिया बनाने का प्रावधान है जिसमें किसानों और व्यापारियों को प्रदेश की APMC पंजीकृत मंडियों से बाहर फसल बेचने की आज़ादी होगी।
कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर क़रार क़ानून, 2020
इस क़ानून में कृषि करारों (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) का उल्लेख किया गया है और इसके लिए राष्ट्रीय स्तर का फ्रेमवर्क तैयार करने का प्रावधान रखा गया है।
आवश्यक वस्तु (संशोधन) क़ानून 2020
इस क़ानून के तहत असाधारण हालातों के अलावा तमाम फसलों का भंडारण मनमुताबिक रूप से किया जा सकता है।
सबसे अहम बात यह है कि कृषि सुधार क़ानून ऐसे 3 क़ानूनों का संग्रह हैं जो किसानों को अपनी फसल APMC एक्ट बाहर बेचने की अनुमति देता है (अधिकांश राज्यों ने इसे अनिवार्य कर दिया है कि किसानों को APMC पर ही बिक्री करनी होगी)। इसकी मदद से किसान सीधे कॉर्पोरेट घरानों से सीधे संपर्क कर सकते हैं।
कृषि क़ानून सिर्फ APMC से बँधे हुए नहीं हैं, अगर कोई वर्तमान सिस्टम के बाहर जाकर बाज़ार पर भरोसा करता है तो वह पुराने सिस्टम पर बने रहने के लिए स्वतंत्र है। यही बात न्यूनतम समर्थन मूल्यों पर भी लागू होती है लेकिन फ़िलहाल AMPC और MSP को लेकर जिस तरह का नैरेटिव बनाया जा रहा है उससे स्पष्ट है कि वह राजनीति से प्रेरित है।
तमाम लोग यह आरोप लगाते हैं कि इन क़ानूनों की वजह से किसानों के साथ समझौता करते हुए बड़ी कंपनियों का पक्ष भारी रहेगा और यह दावा भी पूरी तरह झूठा है। कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर क़रार क़ानून में यह सुनिश्चित किया गया है कि कॉन्ट्रैक्ट पर दोनों पक्षों में बराबर सहमति हो और किसानों के पास कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म करने का अधिकार हो।