“और तुम सब के सब (मिलकर) ख़ुदा की रस्सी मज़बूती से थामे रहो और आपस में (एक दूसरे) के फूट न डालो और अपने हाल (ज़ार) पर ख़ुदा के एहसान को तो याद करो जब तुम आपस में (एक दूसरे के) दुश्मन थे तो ख़ुदा ने तुम्हारे दिलों में (एक दूसरे की) उलफ़त पैदा कर दी तो तुम उसके फ़ज़ल से आपस में भाई भाई हो गए और तुम गोया सुलगती हुई आग की भट्टी (दोज़ख) के लब पर (खडे) थे गिरना ही चाहते थे कि ख़ुदा ने तुमको उससे बचा लिया तो ख़ुदा अपने एहकाम यूं वाजेए करके बयान करता है ताकि तुम राहे रास्त पर आ जाओ [कुरान३:१०३]
कुरान से ली गई ये पंक्तियाँ और लोकतंत्र का उपहास उड़ाती एक वेबसाइट अचानक लोकसभा चुनाव से पहले चर्चा का विषय बन गई है। खुदा की अपील पढ़ने को मिल रही है इंडियन मुस्लिम वोटर (indianmuslimvoter) नाम की वेबसाइट पर। इस वेबसाइट पर जाने पर दिखता है कि बेहद ‘वैज्ञानिक’ तरीकों से ग्राफ और आँकड़े उठाकर मुस्लिम मतदाताओं के लिए वोटिंग गाइडलाइंस जारी की गई हैं। साथ ही, ‘बेहद आवश्यक’ दिशा निर्देश भी जारी किए गए हैं, इनमें से कुछ निर्देशों में किसी-किसी राज्य में किसी को भी वोट ना देने की अपील भी शामिल है।
ये हर दूसरे आम व्यक्ति, जिसे इंटरनेट इस्तेमाल करना आता है, की विशेषता होती है कि इंटरनेट पर आँकड़ों को देखकर वो इन पर विश्वास करने के लिए पहली ही नजर में तैयार हो जाता है। फिर इस वेबसाइट ने तो आँकड़ों को ‘रंगीन ग्राफ’ के माध्यम से प्रदर्शित करते हुए मुस्लिम और भाजपा के वोटर्स की संख्या को समझाया है, इसलिए इस वेबसाइट पर जाकर, दिए गए ग्राफ्स को ही ‘तथ्य’ न मान पाना किसी के लिए भी चुनौती पूर्ण हो सकता है।
अगर गौर से देखा जाए तो ये आँकड़े पेश करने वाली वेबसाइट भी उसी रोजाना TV पर आकर लोगों से TV ना देखने की अपील करने वाले जर्नलिस्ट की तरह ही लोगों के मनोविज्ञान से खेलने की कोशिश करती देखी जा सकती है, जो मोदी सरकार पर आरोप लगाने और अपने व्यक्तिगत प्रोपेगेंडा को दिशा देने के लिए अलग-अलग वेबसाइट के माध्यम से झूठे आँकड़ों को पेश कर उनके ब्रह्मसत्य होने का दावा करता है।
वेबसाइट का ‘मकसद’
इंडियन मुस्लिम वोटर वेबसाइट ने अपना मकसद स्पष्ट करते हुए लिखा है कि असली मक़सद आपको भारत में मुस्लिम मतदाताओं (वोटर) के बारे में सटीक आँकड़ो के बारे में बताना है। इस वेबसाइट के अनुसार भारत में मुस्लिम मतदाताओं के महत्व को कम करने के लिए भारत सरकार सटीक संख्या छिपाती है। वेबसाइट पर समुदाय विशेष को ‘BJP बनाम इस्लाम’ दिखाने की कोशिश की गई है और राज्यवार किस पार्टी को वोट देना है, ऐसा बताया गया है। इस वेबसाइट का एक और मक़सद है कि मुस्लिम मतदाताओं को एक साथ जोड़ सके।
तिरंगा और संसद की तस्वीरों से सजी है इस्लाम बनाम भाजपा वोटर्स वाली ये वेबसाइट
संसद और तिरंगे झंडे से सजी हुई इस वेबसाइट के होमपेज पर पहला सन्देश पढ़ने को मिलता है, “क्या आप जानते हैं कि मुस्लिम मतदाता 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा के मतदाताओं से अधिक हैं?” ये वेबसाइट किस तरह से लोगों को भ्रमित करने के लिए समर्पित है, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस पर विशेष टैब बनी है जिसका शीर्षक है, “मुस्लिम किसे वोट डालें।” इस वेबसाइट को मार्च 23, 2019 को ही रजिस्टर किया गया है, यानी आम चुनाव से ठीक पहले। इस बात से ही स्पष्ट होता है कि यह किसी प्रोपेगैंडा का ही हिस्सा हो सकता है।
सेंसस और मतदान के बारे में वेबसाइट के सभी आँकड़े गलत हैं
इसके बाद रंगीन ग्राफ के माध्यम से बताया गया है कि इस देश में ‘मुस्लिमों’ के कितने वोट हैं और ‘भाजपा’ के कितने वोट हैं। इस वर्गीकरण का आधार 2014 में हुए आम चुनाव के मतदान पैटर्न्स को बताया गया है, जिनकी प्रमाणिकता इसी बात से जानी जा सकती है कि इसके रंगीन ग्राफ में भाजपा वोट की सीधे-सीधे समुदाय विशेष के वोट के साथ तुलना करके क्रमशः 11% और 12% बताया गया है। साथ ही, 39% वोट वो बताए गए हैं, जो वेबसाइट के अनुसार 2019 चुनाव में वोट नहीं दे सकते।
ये पता नहीं चल पा रहा है कि कौन सी आसमानी गणित के द्वारा निकाले गए 39% लोग वोट नहीं दे सकते। इन सभी निष्कर्षों पर पहुँचने के लिए कौन सी रिसर्च मेथोडोलोजी अपनाई गई है, इस बात का कहीं भी कोई ज़िक्र नहीं है। क्या सभी आँकड़ों के अंत में [कुरान ३:१०३] लिख देना मात्र ही इन सभी आँकड़ों को ‘तथ्यों’ में बदल देने के लिए काफी माना जाना चाहिए ?
यदि सरकारी आँकड़ों को देखें तो 2014 में कुल मतदाताओं की संख्या से लेकर प्रत्येक राज्य की वोटर संख्या भी गलत दी गई है। भाजपा को 2014 में पड़ने वाले कुल मत इस वेबसाइट के अनुसार 16.69 करोड़ बताए गए हैं, जबकि वास्तव में 2014 में भाजपा को कुल 17 करोड़ 16 लाख वोट मिले थे। इसी तरह से मुस्लिम आबादी से लेकर भाजपा को मत देने वाले लोगों तक की संख्या के लिए इस वेबसाइट ने किस सेंसस को आधार माना है यह यक्ष-प्रश्न है।
इस वेबसाइट ने दावा किया है कि सेंसस डेटा हाल ही में जारी हुआ है, जबकि वर्ष 1872 में सेंसस (जनगणना) शुरू हुआ था और तब से आज तक यह हर 10 साल में ही होता है। इस प्रकार वर्तमान में 2011 के सेंसस डेटा के आधार पर ही मतदान हो रहे हैं और इसके बाद 2021 का ही डेटा इस्तेमाल किया जाएगा।
साथ ही यह भी चिंता का विषय है कि यह वेबसाइट बड़े स्तर पर यूट्यूब से लेकर हर छोटे-बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने नफरत, झूठ और सांप्रदायिक विचारों के कर्क रोग को फैला रही है। यूट्यूब पर इस भ्रामक वीडियो को देखने वालों की संख्या बहुत ही कम समय में 2 लाख से ऊपर पहुँच चुकी है।
इस वेबसाइट ने अपने बारे में कोई भी जानकारी देने से मना किया है और लिखा है कि उद्देश्य सिर्फ सत्य को उजागर करना है और वो इसके लिए समर्पित हैं।
आम चुनाव के ठीक पहले कुरान के नाम पर भाजपा बनाम मुस्लिम वोट का दावा करने वाली इस तरह की वेबसाइट का तिरंगे और संसद की तस्वीरों में लिपटकर आना लोकतंत्र का भद्दा मजाक है। इन्हें चलाने वालों को यह जानना चाहिए कि वो ऐसा कर किसी का भी भला नहीं कर रहे हैं, बल्कि सांप्रदायिकता को बढ़ावा देकर उन्हीं लोगों के अंदर भय पैदा कर हैं, जिनका हितैषी होने का ये लोग दावा करते हैं।