सर्दियों की आहट और चीन की आक्रामकता को ध्यान में रखते हुए सैन्य बलों ने खुद को चाक-चौबंद करना शुरू कर दिया है। थल सेना ने जहाँ लद्दाख में सैन्य एक्सरसाइज़ शुरू की है, वहीं वायुसेना ने भारत की पूर्वी सीमा के सबसे आखिरी छोर पर बसे गाँव की अपनी हवाई पट्टी फिर से चालू कर दी है- मकसद है चीनी सेना की किसी घुसपैठ या अन्य आक्रामकता का समय रहते मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार रहना। गौरतलब है कि 1962 का भारत-चीन युद्ध भी शीत ऋतु की शुरुआत में ही (20 अक्टूबर-21 नवंबर) लड़ा गया था।
#LtGenRanbirSingh, #ArmyCdrNC visited Eastern Ladakh & witnessed Integrated Exercise of all Arms in Super High Altitude Area; complimented all ranks for outstanding display of war fighting capability under challenging conditions.@adgpi @SpokespersonMoD @PIB_India pic.twitter.com/HZEFAj1wkT
— NorthernComd.IA (@NorthernComd_IA) September 17, 2019
“चांगथांग प्रहार” के लिए कस रहे कमर
पूर्वी लद्दाख के चुशुल के पास चल रही “all-arms integrated” exercise के लिए अति-ऊँचाई वाली जगह को चुनकर सैन्य एक्सरसाइज़ हो रही है, जिसमें टैंकों, तोपों, हेलीकॉप्टरों और सैनिकों के अलावा ड्रोनों और वायु सेना द्वारा पैरा-ड्रॉप (योद्धाओं को हवा से पैराशूट के ज़रिए युद्धभूमि में ड्रॉप करना) भी शामिल है। इसका नाम दक्षिण-पूर्व लद्दाख से पश्चिमी और उत्तरी तिब्बत तक फैले चांगथांग पठार (plateau) नाम पर “चांगथांग प्रहार” रखा गया है।
उत्तरी कमांड के कमांडर लेफ़्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह ने खुद लद्दाख में पहुँच कर तैयारियों का जायज़ा लिया। उत्तरी कमांड के ट्विटर हैंडल के अनुसार उन्होंने चुनौतीपूर्ण परिस्थितयों में युद्ध क्षमता के प्रदर्शन की तारीफ़ की।
जोरहाट की मदद से खोली जा रही विजयनगर की हवाई पट्टी
अरुणाचल के चांगलांग जिले स्थित विजयनगर की 4,000 फ़ीट लंबी हवाई पट्टी की मरम्मत का काम वायु सेना ने शुरू कर दिया है। इसके लिए वायु सेना के जोरहाट स्टेशन के साथ समन्वय स्थापित कर काम हो रहा है। फ़िलहाल यह हवाई पट्टी खाली AN-32 विमानों की उड़ान के लिए सुरक्षित है। चूँकि वहाँ सड़क मार्ग से जुड़ने की सुविधा उपलब्ध नहीं है, इसलिए मरम्मत का साज़ो-सामान भी हवाई मार्ग से हेलीकॉप्टरों द्वारा पहुँचाया जा रहा है। विजयनगर के तीन ओर म्याँमार और एक तरफ नामदाफा नेशनल पार्क है।