राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने पिछले तीन दिनों में कई महत्वपूर्ण बातें कही हैं, जिन पर सत्ता पक्ष और विपक्ष समेत नेताओं को ही नहीं, मीडिया और आम जनता को भी ध्यान देने की ज़रूरत है। पिछले दो दिन चली राज्यों के आतंकरोधी इकाईयों के प्रमुखों की मीटिंग में जहाँ उन्होंने पाकिस्तान को हर स्तर पर घेरने, उसके खिलाफ मौजूद जानकारी को क़ानूनी सबूत में तब्दील करने और देश भर में आतंक से निपटने के लिए एक केंद्रीय इकाई बनाने जैसे कदमों पर ज़ोर दिया, तो आज (15 अक्टूबर) DRDO द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने सेनाओं के हाथों ही दुनिया की किस्मत लिखे जाने और भारत के सुरक्षा ढाँचे की कमज़ोरियों की बात की।
‘दूसरे नंबर पर आने की ट्रॉफी नहीं होती’
“आप या तो अपने दुश्मन से बेहतर होते हैं, या फिर आप कहीं नहीं होते… आधुनिक जगत में पैसा और तकनीक भूराजनीति को प्रभावित करते हैं। कौन जीतता है और कौन हारता है, यह तय होता है इस बात से कि किसने दुश्मन से पहले इन दोनों पर काम करना शुरू कर दिया।” डोवाल ने साथ में यह भी जोड़ा कि इन दोनों में भी तकनीक अधिक महत्वपूर्ण है।
“भारत का खुद का ऐतिहासिक अनुभव (सैन्य तकनीक के विकास में) दुःखद है, हम दूसरे नंबर पर हैं। दूसरे नंबर पर आने वाले के लिए कोई ट्रॉफी नहीं होती।” उन्होंने आगे कहा, “भारत की सुरक्षा आज पहले से कहीं अधिक भेद्य/संवेदनशील है, और यह आने वाले समय में पहले से भी कहीं अधिक होगा।” उन्होंने थल, वायु, नौसेना और अन्य सुरक्षा एजेंसियों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार तकनीक के विकास पर ज़ोर दिया।
“विशिष्ट तकनीक ऐसी चीज़ है जो भारत को और अधिक महफूज़ करेगी। इसे जरूरत के आधार पर होना होगा। हमें रक्षा और इंटेलिजेंस के साथ मिलकर देखना होगा कि हमें अपने दुश्मनों से एक कदम आगे रहने के लिए किन चीज़ों की ज़रूरत है।” इसमें उन्होंने DRDO की विशेष भूमिका पर भी ज़ोर दिया। “बहुत सारी नई तकनीक आ रही है। इन सभी के सिस्टमों को एकीकृत कैसे किया जाए? DRDO के अतिरिक्त कोई अन्य संस्था यह काम नहीं कर सकती।”
पाकिस्तान पर सबसे बड़ा दबाव FATF, लेकिन सबूत चाहिए
एक दिन पहले NIA द्वारा आयोजित कॉन्फ्रेंस में पाकिस्तान पर बात करते हुए डोभाल ने कहा कि वर्तमान समय में पाकिस्तान पर सबसे बड़ा दबाव FATF (की ब्लैक लिस्ट से बचने) का है, जो शायद और किसी कदम से पैदा न हो पाता। “हर कोई जानता है कि पाक जिहाद का समर्थन और उसे आर्थिक मदद करता है। लेकिन उसके खिलाफ सबूत केवल आप (ATS/STF/NIA, जिनके लिए कॉन्फ्रेंस की जा रही थी) ला सकते हैं। तथ्य लाइए, उनका (सबूत के तौर पर) इस्तेमाल करिए।” NIA के कश्मीर में पाकिस्तानी नेटवर्क का खुलासा करने में प्रयासों की डोवाल ने प्रशंसा की।
National Security Advisor (NSA), Ajit Doval in Delhi: One of the biggest pressures that has come on Pakistan today is because of the proceedings of Financial Action Task Force (FATF), it has created so much pressure on them that probably no other action could have done. pic.twitter.com/OMilhPzScX
— ANI (@ANI) October 14, 2019
युद्ध की कीमत कोई नहीं चुका सकता, लिहाजा आतंक ‘सस्ता’ रास्ता
डोभाल ने सीधे शब्दों में कहा कि आने वाले समय में जिहाद और आतंक का प्रभाव और घटनाएँ बढ़ेंगे ही, घटेंगे नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि आधुनिक समय में सीधा सैन्य टकराव किसी भी देश के लिए जान-माल के हिसाब से इतना महंगा होगा कि कोई देश यह कीमत चुकाने के लिए तैयार नहीं होगा। इसलिए पाकिस्तान जैसे देशों को आतंकवाद एक ‘सस्ता’ तरीका लगता है, जो प्रभावी भी होता है, क्योंकि यह सच में दुश्मन को काफी हद तक नुकसान पहुँचा सकता है।
‘आतंक से लड़ना’ हवा-हवाई, जिहादी के हथियार छीनो
डोभाल ने एक बार फिर (वे यह बात लोकसभा टीवी को दिए साक्षात्कार में भी कह चुके हैं) दोहराया कि ‘आतंकवाद से लड़ना’ एक हवा-हवाई बात है। जिहादी की विचारधारा और उसका हथियार छीन कर उसे कुचलना होगा।
मीडिया का इस्तेमाल करिए, पकड़े गए जिहादी के बारे में बताइए
डोभाल ने जिहाद के खिलाफ़ इस लड़ाई में मीडिया की भूमिका को भी रेखांकित किया। एक ओर जहाँ उन्होंने मीडिया को आतंक को ज़रूरत से ज़्यादा फुटेज देने पर मार्गरेट थैचर का वह कथन याद दिलाया जिसमें उन्होंने कहा था कि यदि मीडिया आतंकी के आतंक को लोगों तक न पहुँचाए, उसे इच्छित पब्लिसिटी न दे तो आतंक का ध्येय वहीं हार जाएगा, वहीं दूसरी ओर उन्होंने पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को मीडिया के इस्तेमाल से ‘perception management’ में सक्रिय होने के लिए कहा।
डोभाल ने सलाह दी कि आतंकरोधी एजेंसियों को मीडिया ब्रीफिंग के लिए अधिकारियों को अधिकृत और तैयार करना चाहिए। इससे ऐसी मीडिया रिपोर्टों पर अंकुश लगेगा जो “समाज को आतंकवाद से लड़ने के लिए तैयार करने की बजाय और ज़्यादा आतंक फैलातीं हैं।” डोवाल ने मीडिया के बारे में कहा, “जब हम नहीं बताते हैं, तो मीडिया अटकलबाज़ी करने लगता है।”
उन्होंने अधिकारियों को सलाह दी कि वे जिन पाकिस्तानियों को जिहाद के शक में गिरफ्तार करते रहते हैं, उनकी पहचान और उनसे उगलवाए गए प्लान मीडिया को देने में कोई नुकसान नहीं है। “उनके बारे में दुनिया को पता चलने दीजिए।” उन्होंने इस ओर भी ध्यान आकर्षित किया कि दुनिया को इस बारे में पता नहीं चलने से पाकिस्तान को ही नकार की मुद्रा में बने रहने में सहूलियत होती है।