हाल में कई रिपोर्टें आई हैं जो बताती हैं कि नेपाल-भारत सीमा पर तेजी से डेमोग्राफी में बदलाव हो रहा है। मस्जिद-मदरसों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जमीनी हालात का जायजा लेने के लिए 20 से 27 अगस्त 2022 तक ऑपइंडिया की टीम ने सीमा से सटे इलाकों का दौरा किया। हमने जो कुछ देखा, वह सिलसिलेवार तरीके से आपको बता रहे हैं। इस कड़ी की 13वीं रिपोर्ट:
पिछली रिपोर्ट में हमने बलरामपुर जिला मुख्यालय से नेपाल के जरवा बॉर्डर जाने वाली सड़क पर दिखने वाली इबादतगाहों के बारे में बताया था। तब हमने बताया था कि कैसे वह लगभग 50 किलोमीटर लम्बी सड़क कई मस्जिदों, मज़ारों और इबादतगाहों से घिरी हुई है। इसके बाद हमने बलरामपुर जिला मुख्यालय के सीमावर्ती तुलसीपुर बाजार से नेपाल के सबसे व्यस्त सीमावर्ती क्षेत्रों में से एक बढ़नी बॉर्डर की तरफ बढ़ने का फैसला किया। यह रास्ता भी लगभग 60 किलोमीटर लम्बा है।
यह रिपोर्ट एक सीरीज के तौर पर है। इस पूरी सीरीज को एक साथ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
हाइवे पर मज़ारें और मदरसे
बढ़नी बॉर्डर की तरफ तुलसीपुर बाजार से मुख्य मार्ग से आगे बढ़ते ही हमें एक इबादतगाह दिखाई दी। इबादतगाह को हरे रंग से रंगा गया था और आस-पास सन्नाटा था। इस इबादतगाह में एक मीनार थी और आस-पास पक्का निर्माण हुआ था। इसकी हाइवे से अधिकतम दूरी 50 मीटर के आस-पास थी।
इस मज़ार से हम अधिकतम आधे किलोमीटर ही आगे बढ़े होंगे कि हमें सड़क की बाईं तरफ मदरसे का एक बोर्ड दिखा। इस बोर्ड पर ‘मदरसा अरबिया अहले सुन्नत कादरिया’ लिखा हुआ था। बोर्ड के ही मुताबिक मदरसा गाँव पुरुषोत्तमपुर में बना हुआ था, जिसे प्राइमरी स्तर पर मान्यता मिली बताया गया। बोर्ड के ही मुताबिक यह मदरसा साल 2001 से चल रहा था, जिसे मौलाना नसरुद्दीन कादरी संचालित कर रहे।
इस मदरसे से अधिकतम 2 किलोमीटर आगे बढ़ने पर हमें बीच बाजार में बनी 1 मीनार वाली मस्जिद दिखाई दी। मस्जिद के बाहर एक लाइन से दुकानें बनी हुई थीं। यहाँ हम अपनी पिछली रिपोर्ट का जिक्र करना चाहते हैं, जिसमें एक मौलाना ने हमें सिंगल मीनार वाली मस्जिदों को सऊदी अरब के सहयोग से बनवाया जाना बताया था।
इसी मुख्य हाइवे पर बढ़नी की दिशा में आगे बढ़ने के बाद हमें अपनी बाईं तरफ एक और मदरसा दिखा। इस मदरसे का नाम ‘दारुल उलूम हबीबा फैज़ान ताज्जुशारीया’ है। यहाँ बकायदा पानी की टंकी आदि साफ देखी जा सकती है। ये मदरसा मटेहना नाम की जगह पर बना हुआ है।
मटेहना के बाद मुख्य हाइवे पर केवलपुर बाजार पड़ता है। यहाँ हमें सड़क से एकदम सटा कर बनाई गई एक दरगाह दिखी। दरगाह पर कुछ लोगों की भीड़ भी दिखी। इसमें इंट्री गेट पर अरबी भाषा में कुछ लिखा हुआ था।
इसी मज़ार से अधिकतम 100 मीटर आगे बढ़ने पर केवलपुर में ही एक मस्जिद दिखाई दी, जो सड़क से लगभग 200 मीटर अंदर की तरफ बनी है। ये मस्जिद 2 मीनारों वाली है।
इस मस्जिद से अधिकतम 100 मीटर आगे बढ़ने पर हमें एक मदरसे का गेट दिखाई दिया। वह गेट मुख्य सड़क पर लगा था, जो कनेक्टिंग मार्ग पर ले जाता है। बोर्ड पर इसका नाम ‘मदरसा दारुल उलूम सदयेहक़ नईमियाँ’ लिखा हुआ है। इस गाँव का नाम राजाबाग था, जो सीमावर्ती गैंसड़ी इलाके में आता है।
हम अभी बमुश्किल 1 किलोमीटर भी नहीं चल पाए होंगे कि हमें मुख्य सड़क के बगल एक और मदरसा दिखाई पड़ा। इस मदरसे का नाम ‘मदरसा ख़दीजातुल कुबलियल बनात’ है। सफेद रंग में रंगे इस मदरसे की बॉउंड्री चारों तरफ से घिरी हुई है।
बढ़नी जा रही सड़क पर अभी हम पिछले मदरसे से लगभग 3 किलोमीटर ही आगे बढ़े थे कि हमें फातिमा डिग्री कॉलेज जाने वाले रोड पर गैंसड़ी क्षेत्र में एक और मदरसा दिखा। यह भी सड़क के किनारे पर ही है। इसका नाम ‘मदरसा मैकुलिया ज़ोहरा’ है। इसमें कुछ मौलवी जैसे दिख रहे लोग पढ़ाते और कई बच्चे पढ़ते दिखाई दिए। मदरसे के आगे सरकारी नल लगा हुआ है।
गैंसड़ी क्षेत्र पार करते ही जैसे ही हम पचपेड़वा बाजार में पहुँचे, वैसे ही हमें एक बड़ी मस्जिद दिखी। मस्जिद सड़क के बगल में मुख्य बाजार के बीचो-बीच बनी है। यहाँ से एक और छोटा सा रास्ता नेपाल सीमा की तरफ जाता है और इस बाजार से नेपाल की सीमा के उस पार के पहाड़ साफ दिखाई देते हैं। यह मस्जिद भी 2 मीनारों वाली थी।
स्थानीय निवासी एसके मिश्रा ने हमें बताया कि सड़क पर जितनी इबादतगाहें या मदरसे दिखाई दे रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा गाँवों के अंदर बने हुए हैं। मिश्रा ने पचपेड़वा की मस्जिद को इलाके की सबसे प्रमुख इबादतगाह बताया।
जैसे ही हमने पचपेड़वा बाजार को पार किया और बढ़नी बॉर्डर की तरफ आगे बढ़े, वैसे ही हमें जूड़ीकुईयाँ नाम के चौराहे पर एक और मस्जिद दिखाई दी। तब तक हम अधिकतम 1 किलोमीटर ही आगे बढ़े थे। ये मस्जिद भी सड़क के किनारे सफेद रंग में बनी हुई है। मस्जिद के आगे ही पंचर की एक दुकान है।
हर गाँव में इबादतगाह
जूड़ीकुईयाँ नाम के चौराहे से जैसे ही हम लगभग 2 किलोमीटर आगे बढ़े, हमें फिर से सड़क से कुछ ही दूर पर एक और इबादतगाह दिखी। 2 मीनारों वाली यह मस्जिद गाँव शंकरपुर कलाँ में मौजूद है।
शंकरपुर कलाँ गाँव से अधिकतम 1 किलोमीटर ही हम आगे बढ़े होंगे कि हमें विष्णुपुर गाँव में एक और मस्जिद दिखाई दी। यह मस्जिद हमारे बाएँ हाथ पर थी। मस्जिद सड़क और रेलवे लाइन के ठीक बगल में बनी हुई है। यह रेलवे लाइन दिल्ली से नेपाल सीमा पर बने बढ़नी रेलवे स्टेशन को जोड़ती है। यह भी 2 मीनारों वाली मस्जिद है।
पिछले सभी बाजार और गाँव नेपाल की सीमा को छूते हुए चल रहे थे। इन सभी स्थानों से महज 10 किलोमीटर के अंदर ही नेपाल की सीमा शुरू हो जाती है। फ़िलहाल विष्णुपुर से निकलने के बाद हम नारायणपुर गाँव में पहुँच गए। इस गाँव में भी हमें सड़क के बगल ही मस्जिद दिखाई पड़ी। नारायणपुर की सबसे खास बात ये रही कि यहाँ सिंगल मीनार और डबल मीनार वाली मस्जिदें अलग-बगल बनी हुई हैं।
नारायणपुर से कुछ ही दूर और आगे चलने के बाद हमें लक्ष्मीनगर पुलिस पिकेट दिखाई दी, जो बलरामपुर जिले के पचपेड़वा थाना के अंतर्गत आती है। इसी पुलिस पिकेट के ठीक दूसरी पटरी पर एक और मदरसा बना हुआ है। इस मदरसे का नाम ‘फ़ज़ल रहमानिया’ है। इस मदरसे की भी बाकायदा पक्की बॉउंड्री आदि हो रखी है।
इस मदरसे से अधिकतम 2 से 3 मिनट हम अपनी कार से आगे बढ़े होंगे कि हमें बाई तरफ एक बड़ी मस्जिद दिखाई दी। यह मस्जिद एक मीनार वाली थी, जिसके आस-पास इस्लामी झंडे लगे हुए हैं।
नए बने ओवरब्रिज और पुलों के नीचे मज़ारें
इस सफर के दौरान हमने एक खास बात पर गौर किया कि कुछ समय पहले ही बने बढ़नी से बलरामपुर को जोड़ने वाले हाइवे पर नए बने ओवरब्रिजों के नीचे मजारों और कर्बलों का निर्माण हो चुका है। निर्माण और पेंटिंग से ये सभी कर्बले नए दिखे। हालाँकि उनके बारे में आस-पास का रहने वाला कोई व्यक्ति बोलने को तैयार नहीं हुआ।
बढ़नी जाने वाले हाइवे पर गाँव बिशुनपुर टनटनवा के ठीक सामने सड़क पर ओवरब्रिज बना हुआ है। इस ओवरब्रिज से जब हमने आस-पास का नजारा लिया, तब पाया कि लगभग आधे किलोमीटर दूर गाँव में हरे रंग की एक इबादतगाह दिख रही।
जब हमने इसके आस-पास और नजर दौड़ाई तो हमें एक और इबादतगाह पहली इबादतगाह से कुछ ही दूरी पर दिखाई दी। दोनों इबादतगाहों की दूरी हाइवे पर बने ओवरब्रिज से लगभग एक समान है। दूसरी इबादतगाह 2 मीनारों वाली मस्ज्दि है। बिशुनपुर टनटनवा गाँव के स्थानीय निवासियों ने हमें उस गाँव में मदरसा होने की भी जानकारी दी।
पचपेड़वा थानक्षेत्र में घुसे हमें एक पुल के पास नई मज़ार बनी दिखी। यह मज़ार बंजरिया नाम के गाँव के पास बनी है। सड़क पर बने पुल से मजार की दूरी अधिकतम 100 मीटर थी। आस-पास सन्नाटा था और कोई बस्ती भी नहीं दिख रही थी। मज़ार पर इस्लामी झंडे लगे हुए दिख रहे थे। मज़ार को घेर कर एक लम्बा-चौड़ा चबूतरा बना दिया गया था। मज़ार से सटा एक तालाब भी है। यहाँ हमे कोहंड़ौरा गाँव के अरबाज़ मिले लेकिन वो मज़ार का इतिहास नहीं बता पाए।
गैंसड़ी बाजार को जैसे ही हमने पार किया, वैसे ही हमें हाइवे पर एक ओवरब्रिज दिखा। ओवरब्रिज से ठीक नीचे हमें एक नवनिर्मित मज़ार दिखी। कुछ लोग इसे कर्बला बता रहे थे। इस मज़ार की ओवरब्रिज से दूरी लगभग उतनी ही थी, जितनी पचपेड़वा की मज़ार की दूरी सड़क पर बने पुल से थी। इस मज़ार का रंग और साइज भी पिछली मज़ार जैसा ही था। इस पर भी इस्लामी झंडे लहरा रहे थे। इस मज़ार से बगल एक नदी भी बहती है।
तुलसीपुर से गैंसड़ी बाजार के बीच हाइवे पर बने एक और ओवरब्रिज के नीचे हमें एक और मज़ार दिखाई दी। यहाँ से गैंसड़ी लगभग 5 किलोमीटर दूर है। इस मज़ार का रंग भी ठीक पहले वाली मजारों जैसा था। मज़ार के आस-पास हरे रंग के कई झड़े लगाए गए थे। स्थानीय नागरिक इस निर्माण के बारे में हमें ज्यादा जानकारी नहीं दे पाए।
मज़ारों और मस्जिदों के बढ़नी बॉर्डर तक मिलने का सिलसिला जारी रहा। पचपेड़वा बॉर्डर के बाद बलरामपुर जिला समाप्त हो गया और उत्तर प्रदेश का ही सिद्धार्थनगर जिला शुरू हो गया। इस जिले में हमें जो दिखा, वो हम आने वाली रिपोर्ट में आपको बताएँगे।
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