पश्चिम बंगाल के पुरुलिया से बंगाल पुलिस ने एक वामपंथी नक्सल आतंकी को पकड़ा गया है। यह बंगाल के उन इलाकों में अपनी सक्रियता बढ़ा रहा था, जहाँ मुस्लिम आबादी अधिक है। वहाँ वह अपनी नक्सली आतंकी विचारधारा को फैलाकर हिंसा बढ़ावा देने की कोशिश कर रहा था। गिरफ्तार किए गए इस नक्सली आतंकी का नाम सब्यसाची गोस्वामी उर्फ़ किशोर है।
जानकारी के अनुसार, गोस्वामी झारखंड-बंगाल सीमा से तीन किलोमीटर दूर पकड़ा गया है। उसे 12 जनवरी 2024 की रात को बंगाल पुलिस ने पकड़ा। 55 साल का गोस्वामी के पास से 9 एमएम की एक पिस्टल, कई राउंड गोलियाँ और माओवादी साहित्य बरामद हुए हैं। गोस्वामी बंगाल के उत्तर 24 परगना का रहने वाला है।
माओवादी गतिविधियों के चलते 2004 से उसे कम-से-कम 5 बार गिरफ्तार किया जा चुका है। पिछली बार उसे साल 2022 में गिरफ्तार किया गया था। उसके बाद वह जमानत पर बाहर था। वह जंगलमहल क्षेत्र में ग्रामीणों को हथियारों की आपूर्ति कर रहा था। इसी जंगलमहल के अंतर्गत पुरुलिया आता है।
प्रतिबंधित CPI (Maoist) का यह नक्सल आतंकी की तलाश राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) की मोस्ट वॉन्टेड सूची में शामिल था। NIA लाल आतंक फैलाने के मामले में उसे तलाश रही थी। गोस्वामी के ऊपर 10 लाख रुपए का ईनाम भी रखा गया था। बंगाल पुलिस के अनुसार, झारखंड के सुरक्षाबलों से सूचना मिली थी कि गोस्वामी बंगाल सीमा के जंगलों में अपनी गतिविधियाँ बढ़ा रहा है।
पुलिस ने बताया है कि वह पुरुलिया के आसपास के इलाके के गाँव वालों को हथियार देकर हिंसा भड़काना चाहता है। यहाँ वह उन गाँवों के लोगों को भड़का रहा था, जो जंगलों से घिरे हुए हैं। बंगाल पुलिस का कहना है कि गोस्वामी पुरुलिया में लोगों को भड़काकर हिंसा को बढ़ावा दे रहा था। बता दें कि साल 2010 में पुरुलिया में नक्सलियों ने 5 नागरिकों की हत्या कर दी थी।
पुलिस को पता चला है कि नक्सली आतंकवादी बांग्लादेश से सटे बंगाल के नादिया और मुर्शिदाबाद जैसे मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में साल 2019 से अपनी पैठ बना रहे हैं। ये CAA कानून के नाम पर मुस्लिमों को भड़काने का काम कर रहे हैं। यह भी सामने आया है कि मुस्लिमों को भड़काकर ये नक्सली बांग्लादेश सीमा के गाँवों में शरण ले रहे हैं। यहाँ के नक्सली आतंकी अपनी सभाएँ भी कर रहे थे।
गौरतलब है कि बीते कुछ वर्षों में भारत में नक्सली घटनाओं में काफी कमी देखी गई है। केंद्र सरकार ने संसद में दिए एक उत्तर में बताया था कि साल 2010 के मुकाबले नक्सली हमलों में 90% तक की कमी देखी गई है। हालाँकि, नक्सली और उनसे जुड़े ओवरग्राउंड वर्कर लगातार हिंसा फैलाने की जुगाड़ में लगे रहते हैं।