टेरर फंडिंग मामले में एटीएस और स्थानीय पुलिस ने उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी से शुक्रवार (11 अक्टूबर) को चार लोगों को गिरफ़्तार किया। इनके पास से भारतीय और नेपाली मुद्रा भी बरामद की गई है जिसे वो नेपाल से ला रहे थे। इसके अलावा, कई सेलफोन भी इनके पास से बरामद किए गए।
गिरफ़्तार किए गए लोगों में सो दो लोग बरेली के हैं और दो लखीमपुर खीरी के तिकुनियां इलाक़े के हैं। इन चारों आरोपितों के बारे में पता चला है कि ये विदेश से नेपाल की बैंकों में आने वाले धन को भारतीय मुद्रा में तब्दील करके खीरी के रास्ते देश भर में भेजते थे। इस धन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए किया जाता था।
लखनऊ पुलिस मुख्यालय में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेन्स में डीजीपी ओपी सिंह ने बताया कि पुलिस को सूचना मिली थी कि कुछ लोग नेपाल से अवैध रूप से धन मँगाकर भारत में आतंकी गतिविधियों में शामिल लोगों तक पहुँचाने का काम कर रहे हैं। सूचना मिली थी कि 10 अक्टूबर को भारी मात्रा में नेपाल से धनराशि लाई जा रही है। इस सूचना के आधार पर एटीएस और स्थानीय पुलिस की संयुक्त टीम ने उम्मेद अली, संजय अग्रवाल, समीर सलमानी और एजाज अली को गिरफ़्तार किया।
डीजीपी ने बताया कि पूछताछ के दौरान चारों ने बताया कि वे लोग मुमताज, सिराज़ुद्दीन और सदाक़त अली के कहने पर यह काम कमीशन लेकर करते थे। इस काम को अंजाम देने के लिए बाक़ायदा एक योजना थी, जिसके अनुसार ये चारों अभियुक्त विदेशी मुद्रा को नेपाल के बैंकों में जमा करवाते थे और फिर वहाँ के किसी खाताधारक से वो पैसा निकलवा कर भारत लाते थे। भारत लाकर नेपाली मुद्रा को भारतीय मुद्रा में बदलवा दिया जाता था। इस काम के लिए अभियुक्तों को 6 प्रतिशत कमीशन मिलता था।
अभियुक्तों ने इस बात का भी ख़ुलासा किया कि ये धन बरेली के रहने वाले फ़हीम और सदाकत को दिया जाता था और उनसे कमीशन ले लिया जाता था। फ़हीम और सदाकत रक़म को दिल्ली पहुँचाते थे।
अमर उजाला में प्रकाशित ख़बर के अनुसार, गिरफ़्तार किए गए लोगों ने नेपाल के एक बैंक की वेबसाइट हैक करके 49 लाख रुपए निकाले थे। पुलिस ने इनके पास से 4.75 लाख भारतीय रुपए और 1.65 लाख नेपाली रुपए बरामद किए हैं। फ़िलहाल, चारों को जेल में डाल दिया गया है और चार अन्य की तलाशी जारी है।
एसपी पूनम का कहना है कि मुमताज, फ़हीम, सिराज़ुद्दीन और सदाकत की गिरफ़्तारी के बाद ही पता चल सकेगा कि यह अवैध धन किस आतंकी संगठन तक पहुँचाया जाता था। उन्होंने बताया कि पता चला है कि विदेशों से रक़म मँगाने के बाद उसे बैंक की वेबसाइट हैक करने के बाद ही उस रक़म को निकाला जाता था जिससे किसी को पता न चल सके।