‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ (PRC) एक खूनी गृहयुद्ध से जन्मा था, जो कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) द्वारा जीता गया था। विस्तारवादी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए अपनी भौगोलिक सीमाओं के विस्तार का यह अघोषित युद्ध फिर कभी समाप्त ही नहीं हुआ। चीन निरंतर ही अपने इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपने देश के भीतर से लेकर विदेशों को भी विभिन्न तरह से निशाना बनाते रहा है और उसका सबसे पहला लक्ष्य है भारत!
ताइवान के युद्ध विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर केरी गेर्शनेक (Kerry Gershaneck) ने अपनी पुस्तक ‘पॉलिटिकल वॉरफेयर चीन’ (Political Warfare: Strategies for Combating China’s Plan to Win without Fighting) में कम्युनिस्ट नेतृत्व वाले चीन द्वारा ताइवान और दुनिया पर अपना वर्चस्व बनाने के उद्देश्य से अपनाई जा रही रणनीतियों और चीन के संदेशों के बारे में बताया है कि किस तरह से चीन बिना किसी प्रत्यक्ष युद्ध के ही दुनिया जीतने की रणनीति पर काम करता रहा है।
गेर्शेनक की इस पुस्तक के अनुसार, भारत पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के इस राजनीतिक युद्ध का एक प्रमुख लक्ष्य है। उनका मानना है कि पीआरसी का पूरा राजनीतिक युद्ध बल भारत को कमजोर करने से लेकर, एनजीओ की फंडिंग, और संभवतः बेंगलुरु में एक ताइवानी निर्माण फैक्ट्री पर हमला कराने के लिए काम कर रहा है। लेखक ने बेंगलुरु में हुई उस हिंसा की ओर इशारा किया है, जो हाल ही में एप्पल के ताइवानी कांट्रेक्टर कंपनी विस्ट्रोन की फैक्ट्री में की गई थी।
#India is a prime target for #PRC’s political warfare. The PRC’s full political warfare force will be directed at weakening India, from funding NGOs in the US to (possibly) funding mobs to attack a Taiwanese manufacturing plant in #Bengaluru: https://t.co/SOLA62EL2o
— FDD (@FDD) February 7, 2021
लेखक के अनुसार, नई दिल्ली ने आत्मरक्षा में कुछ कदम उठाए हैं, जैसे कि चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाना। हालाँकि, उनका मानना है कि भारत पर चीनी हमले होते रहेंगे, खासकर अगर भारत को लगता है कि यह चीन की सप्लाई चेन को विस्थापित करने के साथ ही इंडो-पेसिफिक क्षेत्र के लिए सुरक्षा कवच के रूप में उभर सकता है।
पुस्तक के अनुसार, भारत को चीन के इस आक्रामक रुख से निपटने के लिए अपने जैसे देशों को साथ लेकर एक रणनीति बनाने की आवश्यकता है। लेखक का कहना है कि स्वतंत्र दुनिया को अब यह तय करना होगा कि क्या वह बिना लड़े हारने को तैयार है? इस पुस्तक में ऐसे कई अहम फैसलों का सुझाव दिया गया है, जो स्वतंत्र राष्ट्रों को चीन के खिलाफ अपनानी चाहिए। चीनी अधिकारियों पर कार्रवाई से लेकर उनके संस्थानों पर कड़ी पैरवी भी इनमें से कुछ सुझाव हैं।
CCP ने लंबे समय से अपने दुश्मनों के खिलाफ दुष्प्रचार का तरीका अपनायाहै। लेखक का कहना है कि हाल ही के कुछ वर्षों में चीन ने सोशल मीडिया की नई दुनिया में ‘राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक युद्ध’ के द्वारा बड़ी कामयाबी हासिल की और इसका लाभ उठाकर प्रोपेगेंडा के साथ अपने विरोधियों के खिलाफ माहौल बनाया। लेखक का कहना है कि सोशल मीडिया का उपयोग कर चीन ने यह विश्वास पैदा करने की कोशिश की है कि लोकतंत्र में लोगों का विश्वास कमजोर होता रहे और राजनीतिक अस्थिरता बनी रहे।
इसके अनुसार, सोशल मीडिया पर प्रभुत्व जमाने के लिए पीआरसी ने पीएलए साइबर फोर्स की स्थापना की है, जिसमें 3,00,000 ‘सैनिकों’ के साथ-साथ शायद 2 मिलियन लोगों का एक समूह ’50 सेंट आर्मी’ बनाया है, जिन्हें सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने और सीसीपी के प्रचार के लिए मामूली सी फीस दी जाती है।