₹2800 करोड़ के भ्रष्टाचार में सीबीआई द्वारा आरोपित होने का खमियाजा पिलैटस कंपनी को रक्षा मंत्रालय का सौदा खोकर भुगतना पड़ा है। रक्षा मंत्रालय ने 38 प्रशिक्षण हवाई जहाज उससे खरीदने की योजना को त्याग दिया है। यही नहीं, कम्पनी पर न्यूनतम एक वर्ष का प्रतिबंध भी लगा दिया गया है। पिलैटस पर जिस मामले में भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप है, वह 2012 यानी पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के अंतिम दौर का है।
Defence Ministry business dealings with Pilatus Aircraft Ltd suspended for 1 year from date of issue of the order or until further orders for violation of Pre-Contract Integrity Pact&probe by CBI,Delhi Police, ED, I-T dept into corrupt practices&illegal activities by the company. pic.twitter.com/cVE2Cv94q5
— ANI (@ANI) July 16, 2019
‘वायु सेना को बता दिया है’
हिंदुस्तान टाइम्स में रक्षा मंत्रालय के अधिकारी के हवाले से दावा किया गया है कि सरकार ने सीबीआई जाँच को ध्यान में रखते हुए वायु सेना को पिलैटस के साथ बात आगे न बढ़ाने की हिदायत दे दी है। प्रशिक्षण एयरक्राफ्टों की त्वरित आवश्यकता को देखते हुए सरकार-से-सरकार समझौते के रास्ते से प्रशिक्षण एयरक्राफ्टों की यथाशीघ्र आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी। फ़िलहाल एयर फोर्स में HAL के HJT-16 किरण प्रशिक्षण एयरक्राफ्ट पुराने पड़ रहे हैं।
भ्रष्टाचार मामले का भंडारी एंगल
जिस भ्रष्टाचार मामले में पिलैटस को प्रतिबंध का सामना करना पड़ रहा है, वह भी कॉन्ग्रेस के गाँधी परिवार के करीबी माने जाने वाले संजय भण्डारी से जुड़ा है। सीबीआई ने पिछले महीने ही कुख्यात हथियार सौदागर संजय भण्डारी, पिलैटस और वायु सेना के अज्ञात अधिकारियों के ख़िलाफ़ 75 प्रशिक्षण एयरक्राफ्टों की खरीद में ₹339 करोड़ की रिश्वत का मामला दर्ज किया था। सौदे की कुल कीमत उस समय ₹2800 करोड़ थी। सीबीआई का आरोप है कि पिलैटस ने भण्डारी और उनकी कंपनी ऑफसेट इंडिया सोल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड के एक दूसरे निदेशक बिमल सरीन के साथ आपराधिक षड्यंत्र रचा और इसी के अंतर्गत पिलैटस ने भण्डारी के साथ जून, 2010 में एक सर्विस प्रोवाइडर अनुबंध किया।
मामला प्रकाश में तब आया था जब उपरोक्त सौदे के लिए पिलैटस की निकटतम प्रतिद्वंद्वी रही दक्षिण कोरियाई कंपनी कोरिया एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज़ ने पिलैटस को यह करार दिए जाने के खिलाफ तत्कालीन यूपीए सरकार से विरोध दर्ज कराया था। उनका दावा था कि पिलैटस की बोली के दस्तावेज़ अधूरे थे, और इसलिए उसे मिला हुआ करार रद्द होना चाहिए। दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्री ने इस मामले में भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी से बात की थी और उनसे इस निर्णय पर पुनर्विचार का आग्रह किया था। लेकिन इसका भी कोई नतीजा नहीं निकला, और अंत में यह अनुबंध पिलैटस को ही दिया गया था।