असम में विदेशी बंदियों के लिए चलाए जा रहे हिरासत केंद्रों के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने जानकारी माँगी है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 10 साल के दौरान असम में हिरासत में लिए गए विदेशी नागरिकों की संख्या समेत कई अन्य जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता हर्ष मदर की याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने यह निर्देश दिया।
दरअसल, यह याचिका राज्य के हिरासत केंद्रों और यहाँ लंबे समय से हिरासत में रखे गए विदेशी नागरिकों की स्थिति को जानने के लिए दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से हिरासत केंद्रों, वहाँ बंद बंदियों की अवधि और विदेशी नागरिक अधिकरण के समक्ष दायर उनके मामलों की स्थिति को लेकर सरकार से विवरण माँगा। पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से भी इस संबंध में ब्यौरे उपलब्ध कराने को कहा है।
पीठ ने कहा कि सरकार 10 साल के दौरान भारत में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले विदेशियों का साल के हिसाब से ब्यौरा दे। बता दें कि, अधिकारियों को सभी विवरण उपलब्ध कराने के लिए तीन हफ़्ते का समय दिया गया है, और अब पीठ ने मामले में अगली सुनवाई 19 फरवरी को तय की है।
SC asks Assam govt to provide details about the no.of ppl declared non-Indians&deported in last 10 yrs. SC asks state govt to give data of period for which they’ve been kept in detention centres in Assam&how many have been deported after being declared as foreigners by tribunals.
— ANI (@ANI) January 28, 2019
हाल ही में बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय को सौंपे गए हैं कुछ घुसपैठिए
बीते दिनों 21 बांग्लादेशी नागरिकों को असम बॉर्डर पुलिस और बीएसएफ की अगुवाई में बांग्लादेश राइफल्स और बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों को सौंप था। बता दें कि, आए दिन बांग्लादेशी नागरिकों के चोरी-छिपे भारतीय सीमा में घुसने का मामला सामने आता रहता है। चूँकि बांग्लादेश के गरीब और मजदूर वर्ग के लोगों के लिए भारत में आसानी से मज़दूरी करने और रोज़गार के मौके मिल जाते हैं, इसी आस में सीमा पार कर ये लोग अक्सर भारत में घुस आते हैं।
घुसपैठ के खिलाफ हो चुका है आंदोलन
बांग्लादेशी घुसपैठ से परेशान होकर 1979 से 1984 तक 6 साल ‘अखिल असम छात्र संघ’ ने इनके खिलाफ आंदोलन किया था। इसके बाद असम में 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के साथ असम समझौता (असम एकॉर्ड) पर हस्ताक्षर हुआ था। इसमें असम की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा और उनके क्रियान्वन के लिए कई माँगों पर सहमति बनी थी।