महाराष्ट्र में भले शिवसेना, कॉन्ग्रेस और एनसीपी ने मिलकर महा विकास अघाड़ी बना ली है। भले गठबंधन के नेता के रूप में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। भले 28 नवंबर को उनके साथ एनसीपी के जयंत पाटिल और छगन भुजबल, कॉन्ग्रेस के बालासाहेब थोराट और नितिन राउत तथा शिवसेना के एकनाथ शिंदे और सुभाष देसाई ने कैबिनेट सदस्यों के तौर पर शपथ ले ली हो। बावजूद इसके तीनों दलों के बीच की खींचतान खत्म होती नहीं दिख रही है।
यही कारण है कि आज तक उद्धव ठाकरे अपने मंत्रियों का महकमा बॉंट नहीं पाए हैं। तीनों दलों के बीच गंभीर मतभेद की बातें उसी दिन से कही जा रही है जब इन्होंने साथ आने की कोशिश की थी। यही कारण है कि सरकार गठन के बाद से ही मंत्रियों की नाराजगी और राष्ट्रीय मुद्दों पर मतभेद की कई खबरें आ चुकी है।
‘इसमें हमें क्या मिला है?’
एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार बार-बार यह साबित कर रहे हैं कि इस सरकार के बनाने और चलाने के पीछे उनका जो एजेंडा है, वह बहुत गहरा है और उसकी थाह किसी के पास नहीं है। पहले ‘निस्वार्थ’ रूप से सरकार बनाने के लिए तीन हफ्ते इनकार, अजित पवार के रहस्यमय तरीके से 80 घंटे का फडणवीस का डिप्टी बनने के बाद उनकी ‘घर वापसी’ और अंत में ‘अहसान’ जता कर खैरात में सरकार बनाने के बाद अब उन्होंने उद्धव की बाँह मरोड़ना शुरू कर दिया है। हाल ही में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि कॉन्ग्रेस को स्पीकर का पद मिला, शिवसेना को सीएम का, लेकिन असली घाटे में तो इस सरकार में उनकी पार्टी है। अब खबर आ रही है कि उनकी पार्टी से 15 नहीं 16 मंत्री बनाए जाएँगे, जबकि शिवसेना के कोटे से 15 मंत्री ही होंगे।
खलिहर बैठे मंत्री, मंत्री बनने की बाट देख रहे MLA
टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने एक मंत्री के हवाले से दावा किया है कि सरकार मंत्रालयों के बँटवारे में खींचतान का शिकार हो गई है। तीनों ही पार्टियाँ गृह, वित्त, हाउसिंग, राजस्व जैसे विभागों पर नज़रें गड़ाए बैठे हैं, जिनमें भ्रष्टाचार, काली कमाई और बंदरबाँट का भरपूर ‘स्कोप’ है। सरकार अभी 6 मंत्रियों को ही जब विभाग नहीं बाँट पा रही है, तो ज़ाहिर सी बात है मंत्रिमंडल विस्तार कर बाकी पद भरना तो और बड़ी चुनौती होगी।
भीमा-कोरेगाँव को लेकर एनसीपी, नागरिकता बिल को लेकर कॉन्ग्रेस खफ़ा
भीमा-कोरेगाँव मामले में आरोपित अर्बन नक्सलों और अन्य के खिलाफ मामला वापस लेने के लिए एनसीपी उद्धव पर लगातार दबाव बढ़ा रही है। यही नहीं, सरकार बनाने के लिए हिंदुत्व के एजेंडे से पीछे हटने वाली शिवसेना ने जब नागरिकता संशोधन अधिनियम का समर्थन कर दिया, तो कॉन्ग्रेस बिफर गई। कॉन्ग्रेस ने इसे न्यूनतम साझा कार्यक्रम के उस बिंदु का उल्लंघन है, जिसमें विचारधारा के स्तर पर टकराव वाले मुद्दों पर चर्चा और बीच का रास्ता निकालने की बात कही गई है।