जिस व्यक्ति के कारण आज कॉन्ग्रेस का शीर्ष परिवार अपने सरनेम में ‘गाँधी’ लगाता है, उस व्यक्ति को उसके जन्मदिवस और पुण्यतिथि पर उसीका परिवार याद नहीं करता। हम बात कर रहे हैं फ़िरोज़ गाँधी की, जिनके कारण इंदिरा का सरनेम नेहरू की जगह गाँधी हुआ। फ़िरोज़ इंदिरा गाँधी के पति थे। वह सोनिया गाँधी के ससुर थे और राहुल गाँधी के दादा थे। लेकिन, 8 सितम्बर को उनकी पुण्यतिथि पर न बहू ने याद किया और न ही पोते-पोती ने।
यहाँ तक कि जिस कॉन्ग्रेस पार्टी के वह सांसद थे, उस पार्टी ने भी उन्हें याद नहीं किया। अगर आप राहुल और प्रियंका का ट्विटर अकाउंट खँगालेंगे तो पाएँगे कि दोनों में से किसी ने भी अपने दादा को याद करने की जहमत नहीं उठाई। अगर कॉन्ग्रेस का शीर्ष परिवार सत्ता का भागी बना रहा तो उसमें ‘गाँधी’ सरनेम का भी योगदान था। लेकिन, उस व्यक्ति को भुला दिया गया जिसके कारण यह सरनेम मिला।
फ़िरोज़ गाँधी भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अभियान चलाने वाले अग्रणी नेताओं में से एक थे। नेहरू काल के दौरान भी उन्होंने विभिन्न घोटालों के विरोध में आवाज़ उठाई। एलआईसी कम्पनी में हुए घोटाले के ख़िलाफ़ फ़िरोज़ द्वारा आवाज़ उठाए जाने के कारण तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णमाचारी को इस्तीफा देना पड़ गया था। कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी अगर विदेश में छुट्टियाँ न मना रहे हों तो ट्विटर पर काफ़ी सक्रिय रहते हैं लेकिन फ़िरोज़ गाँधी को याद करने के लिए उनके पास समय नहीं है।
प्रियंका गाँधी ने फ़िरोज़ की पुण्यतिथि के दिन मोदी सरकार के विरोध में एक कविता शेयर की, अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता जताई लेकिन अपने ही दादा को उन्होंने याद नहीं किया। ऐसा नहीं है कि कॉन्ग्रेस का शीर्ष परिवार अपने निजी कार्यक्रमों की प्राइवेसी को लेकर कुछ ज्यादा ही सतर्क रहता है। राहुल, प्रियंका और सोनिया अक्सर इंदिरा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू और राजीव गाँधी को याद करते रहते हैं, उनके जन्मदिवस और पुण्यतिथि पर उनकी समाधी पर जाते रहे हैं।
I see that no one from the Congress paid tribute to Feroze Gandhi on his Punya Tithi yesterday!
— Gunja Kapoor (@gunjakapoor) September 9, 2019
Speaks a lot about how unforgiving & ruthless the Party is of those who dared to question unbridled power of lobbies.
Anyway…Sigh!
और फ़िरोज़ गाँधी की समाधी? वहाँ कोई नहीं जाता। वह न तो इंदिरा का ‘शक्ति स्थल’ जितना हाई प्रोफाइल है और न ही राजीव गाँधी की ‘वीर भूमि’ की तरह भव्य। कॉन्ग्रेस के शीर्ष परिवार के भाषणों में भी फ़िरोज़ गाँधी का नाम कहीं नहीं आता। उनका समाधी-स्थल लखनऊ-इलाहबाद हाइवे पर एक कोने में धूल फाँक रहा है। सोनिया गाँधी 2001 के बाद से वहाँ नहीं गईं। राहुल अंतिम बार 2011 में वहाँ गए थे। प्रियंका 2009 में वहाँ गई थीं।